Vanakkam Poorvottar: दशकों पुराने Border Dispute को सुलझाने की दिशा में आगे बढ़े Assam और Arunachal Pradesh

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ANI

हम आपको बता दें कि असम के धेमाजी ज़िले और अरुणाचल प्रदेश के लोअर सियांग और ईस्ट सियांग ज़िलों की प्रतिनिधि क्षेत्रीय समितियों की पांचवीं बैठक गोगामुख स्थित भारतीय कृषि अनुसंधान संस्थान में आयोजित हुई।

मोदी सरकार पूर्वोत्तर में शांति को बनाये रखने और समृद्धि लाने के लिए लगातार प्रयासरत है। इसके लिए पूर्वोत्तर में विकास की तमाम परियोजनाएं तो चलाई ही जा रही हैं साथ ही दशकों पुराने सीमा विवादों को भी आपसी सहमति से खत्म करवाया जा रहा है ताकि भाईचारे की भावना बढ़े और समन्वित प्रयासों से विकसित भारत का संकल्प पूरा हो। इस कड़ी में असम और अरुणाचल प्रदेश के मंत्रियों ने एक महत्वपूर्ण बैठक में हिस्सा लिया, जिसका उद्देश्य दोनों राज्यों के बीच 74 साल पुराने सीमा विवाद को सुलझाना था। यह बैठक दोनों राज्यों के बीच दशकों से चले आ रहे प्रशासनिक विवादों को शांतिपूर्ण तरीके से हल करने की दिशा में एक और ठोस कदम मानी जा रही है।

हम आपको बता दें कि असम के धेमाजी ज़िले और अरुणाचल प्रदेश के लोअर सियांग और ईस्ट सियांग ज़िलों की प्रतिनिधि क्षेत्रीय समितियों की पांचवीं बैठक गोगामुख स्थित भारतीय कृषि अनुसंधान संस्थान में आयोजित हुई। बैठक की संयुक्त अध्यक्षता असम के मंत्री जयन्त मल्ला बरुआ और अरुणाचल के मंत्री केन्तो जीनी ने की। इस दौरान दोनों पक्षों ने 13 अनसुलझे सीमा विवादों पर चर्चा की और उन्हें समयबद्ध तरीके से सुलझाने के लिए रूपरेखा तैयार करने पर सहमति जताई। बैठक के बाद असम के मंत्री जयन्त मल्ला बरुआ ने कहा, “सहमति बनी है और हम सौहार्द्रपूर्ण समाधान की ओर बढ़ रहे हैं।” वहीं अरुणाचल प्रदेश के मंत्री केन्तो जीनी ने कहा, “बातचीत सार्थक रही। हमें विश्वास है कि दोनों मुख्यमंत्रियों के दूरदर्शी नेतृत्व में हम अगले दो महीनों में स्थायी समाधान तक पहुँचेंगे।”

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हम आपको बता दें कि यह बैठक जुलाई 2022 में हुए ऐतिहासिक 'नमसाई घोषणा पत्र' का परिणाम है, जिसे असम के मुख्यमंत्री हिमंत बिस्वा सरमा और अरुणाचल के मुख्यमंत्री पेमा खांडू ने हस्ताक्षरित किया था। इस घोषणा पत्र में 86 गांवों से संबंधित 804 किलोमीटर लंबी सीमारेखा पर चल रहे विवादों को सुलझाने की रूपरेखा तय की गई थी। हम आपको याद दिला दें कि अप्रैल 2023 में असम और अरुणाचल प्रदेश की सरकारों ने दोनों राज्यों के बीच पांच दशक से भी पुराने सीमा विवाद को खत्म करने के लिए केन्द्रीय गृहमंत्री अमित शाह के समक्ष एक समझौते पर हस्ताक्षर किये थे। दरअसल अरुणाचल प्रदेश द्वारा स्थानीय आयोग के समक्ष 2007 में जिन 123 गांवों पर दावा किया था, उनमें से 71 पर सौहार्दपूर्ण समाधान 2023 में निकल आया था। इन 71 गांवों में 15 जुलाई 2022 को ‘नामसाई घोषणापत्र’ पर हस्ताक्षर के दौरान निकले 27 गांवों के समाधान और 2023 के समझौते के तहत निकले 34 गांवों के समाधान शामिल थे। इन 71 में से अरुणाचल प्रदेश में से एक गांव को असम में शामिल किया गया, 10 गांव असम में ही बने रहे और 60 गांवों को असम से लेकर अरुणाचल प्रदेश में शामिल किया गया। बाकी बचे 52 गांवों में से 49 गांवों की सीमाएं क्षेत्रीय समितियों द्वारा तय किये जाने की बात कही गयी थी। हम आपको यह भी बता दें कि मोदी सरकार के कार्यकाल में पूर्वोत्तर में कई राज्यों के दशकों पुराने सीमा विवाद सुलझाये गये हैं। असम का मेघालय के साथ भी पुराना विवाद सुलझ चुका है।

दोनों राज्यों के बीच सीमा विवाद के इतिहास की बात करें तो आपको बता दें कि असम-अरुणाचल सीमा विवाद की जड़ें 1951 में हैं, जब नॉर्थ-ईस्ट फ्रंटियर ट्रैक्ट (NEFT) को असम से प्रशासनिक रूप से अलग कर अरुणाचल प्रदेश नाम दिया गया, लेकिन उस समय सीमाओं को स्पष्ट रूप से परिभाषित नहीं किया गया था। 1987 में अरुणाचल को पूर्ण राज्य का दर्जा मिलने के बाद भी यह विवाद बना रहा, जिससे सीमावर्ती इलाकों में तनाव और प्रशासनिक अस्थिरता बनी रही।

हम आपको यह भी बता दें कि दोनों राज्यों ने सहयोगात्मक मॉडल अपनाया है जोकि एक बड़ा बदलाव है क्योंकि पहले जहां सीमावर्ती विवाद टकराव और राजनीतिक बयानबाज़ी से घिरे रहते थे, वहीं अब संयुक्त समितियाँ, साझा नेतृत्व और समान प्रतिनिधित्व के माध्यम से समाधान की कोशिश हो रही है। बताया जा रहा है कि बैठक के अगले चरण में विवादित क्षेत्रों का सीमांकन और संयुक्त प्रशासन की व्यावहारिक व्यवस्था पर ध्यान केंद्रित किया जाएगा। यदि प्रक्रिया सफल रही तो यह पूर्वोत्तर भारत के सबसे पुराने सीमा विवादों में से एक को स्थायी समाधान की ओर ले जाएगी।

बहरहाल, देखा जाये तो असम और अरुणाचल प्रदेश के बीच जारी बातचीत न केवल क्षेत्रीय स्थिरता के लिए महत्वपूर्ण है, बल्कि यह भारत के अन्य अंतर-राज्यीय सीमा विवादों के समाधान के लिए आदर्श मॉडल भी प्रस्तुत करती है। यकीनन सौहार्द्र, संवाद और साझा नेतृत्व के इस मार्ग से भाईचारे और एकता की भावना को भी बल मिलेगा।

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