Prabhasakshi NewsRoom: बहुमत की मजबूती से गठबंधन की मजबूरी में आने के बाद बदल गयी भाजपा, अब BJP नहीं, NDA संसदीय दल की होती हैं बैठकें

हम आपको याद दिला दें कि 2014 और 2019 में जब भाजपा को पूर्ण बहुमत मिला था, तब हर मंगलवार को आयोजित होने वाली संसदीय दल की बैठक सत्ता की आत्मविश्वासी और एकल निर्णयात्मक शैली का प्रतिबिंब थी।
भारतीय राजनीति में प्रतीक और प्रक्रियाओं दोनों का विशेष महत्व होता है— और संसद के सत्र के दौरान मंगलवार को होने वाली भाजपा संसदीय दल की बैठक भी लंबे समय से ऐसी ही एक सशक्त परंपरा रही है। यह न केवल पार्टी के भीतर संवाद, दिशा और अनुशासन का मंच होती थी, बल्कि सरकार की नीतियों के प्रचार और विपक्ष के आरोपों का जवाब तय करने का केंद्र भी थी। लेकिन वर्ष 2024 के लोकसभा चुनावों ने इस संतुलन को थोड़ा डिगा दिया। भाजपा पहली बार स्पष्ट बहुमत से दूर रही और केंद्र में सरकार बनाने के लिए उसे एनडीए घटक दलों के समर्थन पर निर्भर रहना पड़ा। अब, जब भाजपा संसदीय दल की बैठकों की जगह एनडीए संसदीय दल की बैठकें होने लगी हैं, तो यह केवल एक कार्यसूची परिवर्तन नहीं, बल्कि राजनीतिक यथार्थ की स्वीकृति और रणनीति में परिवर्तन का संकेत भी है।
हम आपको याद दिला दें कि 2014 और 2019 में जब भाजपा को पूर्ण बहुमत मिला था, तब हर मंगलवार को आयोजित होने वाली संसदीय दल की बैठक सत्ता की आत्मविश्वासी और एकल निर्णयात्मक शैली का प्रतिबिंब थी। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और अन्य वरिष्ठ नेता पार्टी सांसदों को मार्गदर्शन देते, जरूरी नीतिगत मसलों पर लाइन तय करते और कभी-कभी सांसदों को अनुशासन का पाठ भी पढ़ाते। इन बैठकों में सहयोगी दल आमंत्रित नहीं होते थे क्योंकि उस समय की भाजपा की सहयोगियों पर निर्भरता नहीं थी। मगर 2024 के लोकसभा चुनावों में भाजपा को 272 के जादुई आंकड़े से नीचे रुकना पड़ा। उसे सरकार बनाने के लिए एनडीए के घटक दलों— विशेषकर तेलुगू देशम पार्टी (TDP) और जनता दल (यूनाइटेड) के समर्थन की आवश्यकता पड़ी। इस गठबंधन की मजबूती और संतुलन बनाए रखना अब भाजपा की प्राथमिक ज़िम्मेदारी बन चुकी है।
इसे भी पढ़ें: Parliament Monsoon Session | NDA की बैठक में ‘ऑपरेशन सिंदूर’ को लेकर प्रधानमंत्री मोदी को सम्मानित किया गया
इस बदली हुई स्थिति में केवल भाजपा संसदीय दल की बैठक आयोजित करने की बजाय एनडीए संसदीय दल की बैठकें करना एक व्यावहारिक और रणनीतिक निर्णय है। इससे सहयोगी दलों को निर्णय-प्रक्रिया का हिस्सा बनाया जाता है, उन्हें सम्मान और मंच दिया जाता है, जिससे सरकार की स्थिरता सुनिश्चित होती है। आज एनडीए संसदीय दल की जो बैठक आयोजित की गई, वह इस बदलाव का स्पष्ट संकेतक है। यह बैठक भाजपा के ‘अपने सांसदों’ तक सीमित नहीं थी, बल्कि पूरे गठबंधन के सामूहिक नेतृत्व को सामने लाने का प्रयास थी। इससे यह संदेश भी जाता है कि सरकार केवल भाजपा की नहीं, एनडीए की सरकार है और इससे सहयोगी दलों को राजनीतिक सम्मान मिलता है। यह कदम उन दिनों की भी याद दिलाता है जब अटल बिहारी वाजपेयी के नेतृत्व में एनडीए की सरकार चलती थी और सभी घटक दलों को सामूहिक चर्चा में शामिल किया जाता था।
सवाल यह भी है कि क्या भाजपा संसदीय दल की बैठकें पूरी तरह बंद कर दी गई हैं या फिलहाल स्थगित हैं? संभव है कि भाजपा आंतरिक बैठकों को अन्य अनौपचारिक तरीकों से संचालित कर रही हो, या यह भी हो सकता है कि चुनावों के बाद पार्टी का फोकस फिलहाल गठबंधन को मज़बूत रखने पर हो। पर इतना तय है कि मौजूदा राजनीतिक समीकरण में "भाजपा का एकछत्र राज" वाली रणनीति फिलहाल स्थगित है, और उसके स्थान पर "साझा नेतृत्व और सहमति आधारित निर्णय" की शैली अपनाई जा रही है। भाजपा संसदीय दल की बैठक का न होना और एनडीए की बैठक का आयोजन केवल तकनीकी बदलाव नहीं, भाजपा की बदली हुई राजनीतिक यथार्थ को समझने और स्वीकार करने की रणनीति का प्रतीक है। यह मोदी सरकार की राजनीतिक परिपक्वता भी दर्शाता है, जो अब सहयोगियों को साथ लेकर चलने और उन्हें मंच देने की ज़रूरत को समझ रही है। अगले कुछ वर्षों में यह देखा जाना दिलचस्प होगा कि क्या यह नई शैली सिर्फ गठबंधन की मजबूरी है या नए दौर की स्थायी राजनीतिक कार्यप्रणाली बन जाएगी।
जहां तक आज की बैठक की बात है तो आपको बता दें कि इसमें एनडीए संसदीय दल ने प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी को ‘ऑपरेशन सिंदूर’ के तहत पहलगाम आतंकवादी हमले पर उनकी सरकार की कड़ी प्रतिक्रिया के लिए सम्मानित किया। ‘भारत माता की जय’ के नारों के बीच भाजपा और उसके सहयोगी दलों के वरिष्ठ नेताओं ने प्रधानमंत्री मोदी का सम्मान किया। बैठक में प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने अमित शाह की प्रशंसा करते हुए कहा कि वह अब सबसे लंबे समय तक सेवा देने वाले केंद्रीय गृह मंत्री हैं।
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की अध्यक्षता में आयोजित राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन (एनडीए) संसदीय दल की बैठक में सशस्त्र बलों के पराक्रम को नमन करते हुए एक प्रस्ताव भी पारित किया गया। प्रस्ताव में “ऑपरेशन सिंदूर” और “ऑपरेशन महादेव” के दौरान सशस्त्र बलों द्वारा दिखाए गए अद्वितीय साहस और अटूट प्रतिबद्धता को सलाम किया गया। बैठक में प्रधानमंत्री ने अपने संबोधन में संसदीय अवरोध पर चिंता जताते हुए विपक्ष को आड़े हाथ भी लिया।
अन्य न्यूज़













