बोम्मई ने कहा कि सीमा विवाद पर महाराष्ट्र विधानमंडल का प्रस्ताव गैर जिम्मेदाराना, संघीय ढांचे के खिलाफ है

Basavaraj Bommai
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यहां पत्रकारों से बोम्मई ने कहा कि कर्नाटक अपने रुख पर दृढ़ और स्पष्ट है कि वह एक इंच भी जमीन नहीं छोड़ेगा तथा उनकी सरकार सीमा के दूसरी तरफ कन्नड़ भाषियों के हितों की रक्षा के लिए प्रतिबद्ध है।

कर्नाटक के मुख्यमंत्री बसवराज बोम्मई ने सीमा मुद्दे पर महाराष्ट्र विधानमंडल के प्रस्ताव को ‘‘गैर जिम्मेदाराना और संघीय ढांचे’’ के खिलाफ बताते हुए दोहराया कि राज्य की एक इंच जमीन भी नहीं दी जाएगी। उन्होंने उच्चतम न्यायालय में न्याय मिलने का भरोसा जताया। बोम्मई ने कहा, ‘‘हम महाराष्ट्र के प्रस्ताव की कड़ी निंदा करते हैं, राज्य पुनर्गठन अधिनियम 1956 को आए हुए काफी समय हो गया है और दोनों तरफ के लोग शांति से रह रहे हैं। महाराष्ट्र में वहां की राजनीति के लिए ऐसे बयान देने और प्रस्ताव लाने का चलन है।’’

यहां पत्रकारों से बोम्मई ने कहा कि कर्नाटक अपने रुख पर दृढ़ और स्पष्ट है कि वह एक इंच भी जमीन नहीं छोड़ेगा तथा उनकी सरकार सीमा के दूसरी तरफ कन्नड़ भाषियों के हितों की रक्षा के लिए प्रतिबद्ध है। मुख्यमंत्री ने कहा, ‘‘हमारे और उनके प्रस्ताव के बीच अंतर देखें, हम कह रहे हैं कि हम अपनी जमीन नहीं देंगे, जबकि वे हमारी जमीन लेना चाहते हैं। जब मामला उच्चतम न्यायालय के समक्ष है तो ऐसी बातों का कोई मतलब नहीं है। हम न्याय मिलने के बारे में आश्वस्त हैं क्योंकि हमारा रुख संवैधानिक और कानूनी दोनों है।’’

दोनों राज्यों में सीमा विवाद के बीच महाराष्ट्र विधानमंडल ने कर्नाटक के 865 मराठी भाषी गांवों को राज्य में शामिल करने के लिए मंगलवार को सर्वसम्मति से एक प्रस्ताव पारित किया। मुख्यमंत्री एकनाथ शिंदे ने महाराष्ट्र विधानमंडल के दोनों सदनों में यह प्रस्ताव पेश किया। इस प्रस्ताव में कहा गया कि कर्नाटक विधानमंडल ने जानबूझकर सीमा विवाद को हवा देने के लिए इस मुद्दे पर एक प्रस्ताव पारित किया था और कर्नाटक के रुख की निंदा की गई। कर्नाटक के प्रस्ताव को संवैधानिक और कानूनी बताते हुए बोम्मई ने कहा, ‘‘महाराष्ट्र का प्रस्ताव इसके विपरीत है। पूरा देश देख रहा है। यह संघीय ढांचे के खिलाफ है। यह गैर जिम्मेदाराना है और हम इसकी निंदा करते हैं।’’

कर्नाटक विधानसभा ने पिछले सप्ताह महाराष्ट्र के साथ लगी सीमा को लेकर सर्वसम्मति से एक प्रस्ताव पारित किया था, जिसमें राज्य के हितों की रक्षा करने और अपने पड़ोसी राज्य को एक इंच जमीन नहीं देने का संकल्प लिया गया था। कर्नाटक विधानसभा में नेता प्रतिपक्ष सिद्धरमैया ने कहा कि महाराष्ट्र को इस तरह का प्रस्ताव लाने का कोई अधिकार नहीं है और इसकी कोई उपयोगिता नहीं है, क्योंकि सीमा मुद्दे पर महाजन आयोग की रिपोर्ट अंतिम है। महाराष्ट्र पर राजनीति के लिए बार-बार सीमा मुद्दे को तूल देने का आरोप लगाते हुए उन्होंने कहा कि पड़ोसी राज्य द्वारा उच्चतम न्यायालय में दायर किया गया मामला विचारणीय नहीं है।

कांग्रेस की कर्नाटक इकाई के अध्यक्ष डी के शिवकुमार ने महाराष्ट्र विधानसभा में पारित, कर्नाटक के मराठी भाषी गांवों को शामिल करने के प्रस्ताव की निंदा करते हुए कहा कि पड़ोसी राज्य को एक भी गांव नहीं दिया जाएगा। शिवकुमार ने कहा कि इस मुद्दे पर पूरा कर्नाटक एकजुट है और महाराष्ट्र विधानसभा द्वारा पारित प्रस्ताव की कड़ी निंदा करता है। बेलगावी में तनावपूर्ण माहौल के बीच पिछले कुछ हफ्तों में सीमा विवाद तेज हो गया है।

हालिया समय में दोनों राज्यों के नेताओं की बयानबाजी बढ़ने के साथ दोनों ओर वाहनों को निशाना बनाया गया, और कन्नड़ तथा मराठी कार्यकर्ताओं को पुलिस ने हिरासत में लिया था। भाषाई आधार पर राज्यों के पुनर्गठन के बाद सीमा का मुद्दा 1957 का है। महाराष्ट्र बेलगावी पर दावा करता है जो तत्कालीन ‘बॉम्बे प्रेसीडेंसी का हिस्सा’ था, क्योंकि यहां अच्छी खासी मराठी भाषी आबादी है। महाराष्ट्र ने 800 से अधिक मराठी भाषी गांवों पर भी दावा किया है जो वर्तमान में कर्नाटक का हिस्सा हैं।

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