ब्राह्मणों को साधने के लिए मायावती ने खेला एक और दांव, खुशी दुबे के सहारे चुनाव पार लगाने की योजना

Mayawati

उत्तर प्रदेश के चुनावों में किसी से भी छिपा नहीं है कि ब्राह्मण वोट बैंक कितना महत्वपूर्ण है। साल 2007 में मायावती ब्राह्मणों और दलितों के वोटों की मदद से ही सत्ता के शिखर तक पहुंची थी और सतीश चंद्र मिश्र हुकुम का एक्का साबित हुए थे।

लखनऊ। उत्तर प्रदेश में आगामी विधानसभा चुनाव को लेकर राजनीतिक दलों ने अपनी-अपनी रणनीतियां बनाना शुरू कर दिया है। एक बार फिर से प्रदेश के ब्राह्मण वोट बैंक को साधने का प्रयास किया जा रहा है। जहां मायावती की पार्टी बहुजन समाज पार्टी (बसपा) ने ब्राम्हणों के जरिए फिर से सत्ता से बैठने का सपना देखा है। वहीं अखिलेश यादव के नेतृत्व वाली समाजवादी पार्टी ने भी (कवायद) तेज कर दी है। 

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उत्तर प्रदेश के चुनावों में किसी से भी छिपा नहीं है कि ब्राह्मण वोट बैंक कितना महत्वपूर्ण है। साल 2007 में मायावती ब्राह्मणों और दलितों के वोटों की मदद से ही सत्ता के शिखर तक पहुंची थी और सतीश चंद्र मिश्र हुकुम का एक्का साबित हुए थे। ऐसे में मायावती ने फिर से सतीश चंद्र मिश्र को ब्राह्मणों को लुभाने का काम सौंप दिया है। जिसकी शुरुआत उन्होंने भगवान राम के गढ़ अयोध्या से की।

उन्होंने ब्राह्मण सम्मेलन की शुरुआत की है। अयोध्या से शुरू होने वाला सम्मेलन सभी मंडल मुख्यालयों में आयोजित होने वाला है। इसी बीच बसपा ने ब्राह्मणों को अपनी तरफ खींचने के लिए एक और दांव खेला है। जिसकी वजह से पार्टी की चौतरफा चर्चा हो रही है। दरअसल, बसपा ने 'खुशी दुबे' को जेल से बाहर निकालने का प्रण लिया है। पार्टी ने यह काम सतीश चंद्र मिश्र को सौंपा है। अब वह ही खुशी दुबे का केस लड़ेंगे और उसे जेल से बाहर निकालेंगे।

खुशी दुबे कौन हैं?

उत्तर प्रदेश का बिकरू कांड तो आप सभी को याद ही होगा और यह भी याद होगा कि मध्य प्रदेश से उत्तर प्रदेश लाते समय कैसे पुलिस अधिकारियों की गाड़ी पलट गई और गैंगस्टर विकास दुबे का एनकाउंटर हो गया। तो बस आपके लिए समझना आसान होगा कि खुशी दुबे कौन हैं और उनका चुनावों से क्या संबंध है जो उनकी चर्चा होने लगी। 

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पुलिस ने बिकरू में गैंगस्टर विकास दुबे को पकड़ने की योजना बनाई थी तब विकास दुबे और उसके सहयोगियों ने पुलिस पर घात लगाकर हमला कर दिया था। इस हमले में आठ पुलिसकर्मियों की मौके पर ही मौत हो गई थी और कुछ पुलिसकर्मी अपनी जान बचाने में सफल हो गए थे। लेकिन पुलिसकर्मियों की हत्या करने के बाद कैसे विकास दुबे और उसके गैंग के अपराधी बच जाते। अगली सुबह पुलिस ने जवाबी कार्रवाई करते हुए विकास दुबे के गैंग के कई अपराधियों को ढेर कर दिया।

जिसमें विकास दुबे का शूटर अमर दुबे भी शामिल था। इसी अमर दुबे की पत्नी खुशी दुबे है। जिससे कुछ वक्त पहले ही अमर दुबे ने शादी की थी। इस घटनाक्रम के बाद पुलिस ने कई गंभीर धाराओं के तहत खुशी दुबे के खिलाफ मुकदमा दर्ज किया और उसे जेल भेज दिया। खुशी दुबे की धाराओं इतनी ज्यादा गंभीर हैं कि उन्हें कोरोना की दूसरी लहर के दौरान भी जमानत नहीं मिल सकी। ऐसे में बसपा ने खुशी दुबे को बाहर निकालने का प्रण लिया है।

बसपा को लगता है कि खुशी दुबे की लड़ाई लड़कर वह नाराज ब्राह्मणों को अपने पाले में कर सकती है। क्योंकि अमर दुबे के एनकाउंटर के कुछ दिन पहले ही दोनों की शादी हुई थी और लोगों का मानना है कि इतने कम समय में खुशी अमर दुबे के परिवार को ही सही ढंग से नहीं जान पाई होगी। ऐसे में भला वह कैसे विकास दुबे की गैंग का हिस्सा हो सकती है। इतना ही नहीं प्रदेश की सत्ताधारी पार्टी के नेता भी खुशी दुबे की रिहाई की आवाज उठा चुके हैं 

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प्राप्त जानकारी के मुताबिक भाजपा नेता उमेश द्विवेदी ने खुशी दुबे की रिहाई की मांग को लेकर एक पत्र लिखा था। हालांकि, कुछ बात नहीं बन सकी थी। लेकिन प्रदेश चुनाव से पहले सतीश चंद्र मिश्र खुशी दुबे को जमानत दिलाने का प्रयास करेंगे।

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