वन अधिकार के दावे और भूमि की मान्यता देने में छत्तीसगढ़ देश का दूसरा राज्य बना

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[email protected] । Aug 13 2019 6:19PM

सरकारी विज्ञप्ति में बताया गया है कि भारत सरकार के जनजातीय कार्य मंत्रालय के आंकड़ों के अनुसार वनाधिकार पत्रकों के वितरण के मामले ओडिशा और वन भूमि की मान्यता प्रदान करने के मामले में महाराष्ट्र राज्य पहले स्थान पर है। जबकि इन दोनों ही मामले में छत्तीसगढ़ राज्य का पूरे देश में दूसरा स्थान है।

रायपुर। वन अधिकार के दावे और भूमि की मान्यता देने में छत्तीसगढ़ देश में दूसरा राज्य बन गया है। वनाधिकार पत्रकों के वितरण के मामले ओडिशा और वन भूमि की मान्यता प्रदान करने के मामले में महाराष्ट्र पहले स्थान पर है। राज्य सरकार द्वारा जारी विज्ञप्ति के अनुसार अनुसूचित जनजातियों तथा अन्य परंपरागत वन निवासियों को उनके काबिज वन भूमि की मान्यता देने के मामले में छत्तीसगढ़ पूरे देश में दूसरा राज्य बन गया है। विज्ञप्ति के अनुसार राज्य में चार लाख से अधिक व्यक्तिगत वन अधिकार पत्रकों का वितरण कर तीन लाख 42 हजार हेक्टेयर वनभूमि पर मान्यता प्रदान की जा चुकी है।

वहीं सामुदायिक वनाधिकारों के 24 हजार से अधिक प्रकरणों में सामुदायिक वनाधिकार पत्रकों का वितरण करते हुए नौ लाख 50 हजार हेक्टेयर भूमि पर सामुदायिक अधिकारों की मान्यता दी गई है। सरकारी विज्ञप्ति में बताया गया है कि भारत सरकार के जनजातीय कार्य मंत्रालय के आंकड़ों के अनुसार वनाधिकार पत्रकों के वितरण के मामले ओडिशा और वन भूमि की मान्यता प्रदान करने के मामले में महाराष्ट्र राज्य पहले स्थान पर है। जबकि इन दोनों ही मामले में छत्तीसगढ़ राज्य का पूरे देश में दूसरा स्थान है। विज्ञप्ति में कहा गया है कि मुख्यमंत्री भूपेश बघेल ने लगातार वन अधिकारों के क्रियान्वयन की समीक्षा की थी। मुख्यमंत्री ने इस दौरान कहा था कि सभी पात्र दावाकर्ताओं को उनका वनाधिकार मिले यह राज्य सरकार की प्राथमिकता है। समीक्षा के दौरान जानकारी मिली थी कि प्रक्रियागत कमियों की वजह से बड़ी संख्या में वन अधिकार के दावे निरस्त हुए है।

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जिसके बाद मुख्यमंत्री बघेल ने अस्वीकृत आवेदनों की समीक्षा करने और अन्य परंपरागत वन निवासियों को भी पात्रतानुसार वनाधिकार प्रदान करने का निर्देश दिया था। साथ ही पर्याप्त संख्या में सामुदायिक वनाधिकारों को मान्यता देने के लिए विशेष प्रयास करने के लिए भी कहा गया था। विज्ञप्ति में बताया गया है कि राज्य के मुख्य सचिव ने सभी जिला कलेक्टरों को वन अधिकारों के समुचित क्रियान्वयन के लिए विस्तृत दिशा-निर्देश जारी किया है। जिसमें ग्राम स्तर पर वन अधिकार समितियों का पुनर्गठन करने के लिए कहा गया है। इसके साथ ही अनुभाग और जिला स्तरीय समितियों के गठन के लिए राज्य शासन द्वारा आदेश जारी कर कर दिया गया है।

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इन समिमियों के पुनर्गठन और इनके प्रशिक्षण के बाद प्राप्त सभी दावों पर पुनर्विचार कर उनका निराकरण किया जाएगा। पहले चरण में उन दावों को लिया जाएगा जिन्हें पूर्व में अस्वीकृत किया गया है। राज्य में ऐसे दावों की संख्या चार लाख से भी अधिक है। दूसरे चरण में ऐसे दावों की समीक्षा की जाएगी जिनमें वन अधिकार पत्रक वितरित तो किए गए है लेकिन दावा की गई भूमि और मान्य की गई भूमि के रकबे में अंतर है।

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