मुआवजा केवल वित्तीय राहत नहीं बल्कि सामाजिक न्याय का प्रतीक : उच्च न्यायालय

 High Court
ANI

न्यायालय ने कहा कि न्यायाधिकरण का निर्णय कानूनी रूप से सही और संतुलित है। फैसले में इस बात पर भी जोर दिया गया कि मोटर दुर्घटना मुआवजे के मामलों में अदालतों को उदार और मानवीय दृष्टिकोण अपनाना चाहिए।

उत्तराखंड उच्च न्यायालय ने मोटर दुर्घटना मुआवजे से संबंधित एक मामले में बीमा कंपनी की अपील को खारिज कर दिया तथा नैनीताल जिला न्यायालय के 53.93 लाख रु के मुआवजे के फैसले को उचित और न्यायोचित ठहराया।

मामले की सुनवाई न्यायमूर्ति आलोक माहरा की खंडपीठ के सामने हुई। बीमा कंपनी ने मोटर दुर्घटना दावा न्यायाधिकरण (एमएसीटी), नैनीताल द्वारा नवंबर 2024 में पारित किए गए आदेश को चुनौती दी थी।

न्यायाधिकरण ने निर्देश दिया था कि मृतक के परिवार को छह फीसदी वार्षिक ब्याज के साथ कुल 53.93 लाख रु का मुआवजा दिया जाए। बीमा कंपनी ने इस निर्णय के विरुद्ध अपील की और दावा किया कि यह राशि बहुत ज्यादा और कानूनी रूप से अनुचित है।

हांलांकि, न्यायालय ने कहा कि मोटर वाहन अधिनियम एक कल्याणकारी कानून है जिसका उद्देश्य पीड़ितों को शीघ्र और पर्याप्त मुआवजा प्रदान करना है। यह प्यार, स्नेह और पारिवारिक समर्थन की हानि की भरपाई करता है।

न्यायालय ने कहा कि न्यायाधिकरण का निर्णय कानूनी रूप से सही और संतुलित है। फैसले में इस बात पर भी जोर दिया गया कि मोटर दुर्घटना मुआवजे के मामलों में अदालतों को उदार और मानवीय दृष्टिकोण अपनाना चाहिए। न्यायालय ने कहा कि मुआवजा केवल वित्तीय राहत नहीं है बल्कि यह सामाजिक न्याय का भी प्रतीक है।

डिस्क्लेमर: प्रभासाक्षी ने इस ख़बर को संपादित नहीं किया है। यह ख़बर पीटीआई-भाषा की फीड से प्रकाशित की गयी है।


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