कश्मीर में वाट्सएप समूहों संबंधी आदेश पर मिश्रित प्रतिक्रिया

श्रीनगर। कश्मीर में सोशल मीडिया का उपयोग करने वालों ने उस हालिया परिपत्र पर मिलीजुली प्रतिक्रियाएं दी हैं जिसमें जिला प्राधिकारियों ने कुपवाड़ा में खबरों का प्रचार प्रसार करने वाले ‘वाट्सएप’ समूहों के प्रशासकों को दस दिन के अंदर अपना पंजीकरण कराने का आदेश दिया है। कुपवाड़ा के जिला मजिस्ट्रेट आर. रंजन द्वारा जारी परिपत्र में कहा गया है कि जिले में वाट्सएप समाचार समूह के सभी प्रशासकों को दस दिन के अंदर संबंधित कार्यालय में उनके वाट्सएप समाचार समूहों का पंजीकरण कराने का आदेश दिया जाता है।
कश्मीर के संभागीय आयुक्त असगर समून ने सोमवार को कानून एवं व्यवस्था की समीक्षा के लिए हुई एक बैठक के दौरान सोशल मीडिया समूहों के ऑपरेटरों को खबरें पोस्ट करने के लिए संबद्ध उपायुक्त से समुचित अनुमति लेने का आदेश दिया था। जिला मजिस्ट्रेट ने इसके बाद ही परिपत्र जारी किया है। पिछले सप्ताह हंदवाड़ा और कुपवाड़ा शहरों में हिंसक प्रदर्शनों के दौरान सुरक्षा बलों की कार्रवाई में पांच व्यक्तियों के मारे जाने के बाद सोशल नेटवर्किंग साइटों पर फैल रही अफवाहों को रोकने के लिए ऐहतियाती तौर पर कश्मीर में प्राधिकारियों ने कई दिनों तक इंटरनेट सेवाएं निलंबित कर दी थीं।
परिपत्र के अनुसार, कुपवाड़ा के जिला मजिस्ट्रेट ने एक अधिकारी का नाम वाट्सएप समूहों के पंजीकरण के लिए सोशल मीडिया सेंटर के प्रमुख के तौर पर भी लिया है। अधिकारी को इन समाचार समूहों की गतिविधियों पर नजर रखने का जिम्मा भी सौंपा गया है। अगर किन्हीं टिप्पणियों के कारण अवांछित घटनाएं होती हैं तो इन टिप्पणियों के लिए समूह प्रशासकों को जिम्मेदार ठहराते हुए परिपत्र में कहा गया है कि सरकारी कर्मचारियों पर इन समूहों में सरकार की नीतियों पर टिप्पणियां करने पर रोक लगाई गई है। वाट्सएप के कई उपयोगकर्ताओं ने सरकार के परिपत्र की आलोचना की है लेकिन कुछ उपभोक्ता इसका समर्थन कर रहे हैं। उनका कहना है कि इससे खास तौर पर पिछले सप्ताह रही हंदवाड़ा जैसी अस्थिर स्थिति में झूठी और गलत सूचना के प्रसार पर रोक लग सकेगी।
ऑल इंडिया स्टूडेंट्स एसोसिएशन (एआईएसए) ने कुपवाड़ा जिले में वाट्सएप समूहों के पंजीकरण के लिए पत्रकारों को आदेश दिए जाने की निंदा की है। एआईएस द्वारा जारी एक बयान में कहा गया है कि यह फरमान अस्वीकार्य है। इससे सेंसरशिप लगती है और पत्रकारों की आवाज दबती है। बयान के अनुसार, कश्मीर में पत्रकार पहले से ही कठिन हालात में काम कर रहे हैं। बयान में आदेश को वापस लेने की मांग की गई है। दूसरी ओर, कुछ लोग इस आदेश का समर्थन कर रहे हैं। एक कारोबारी फैयाज अहमद ने कहा कि कश्मीर संवेदनशील स्थान है जहां हालात बहुत तेजी से बदलते हैं। ऐसे परिदृश्य में हमारे आसपास फैल रही खबरें विश्वसनीय एवं प्रमाणित होनी चाहिए। उन्होंने कहा ‘‘गैरजिम्मेदार पोस्ट से लोगों की जान पर बन सकती है जसा कि हमने हंदवाड़ा जैसे कुछ मामलों में देखा और कश्मीर की अर्थव्यवस्था भी प्रभावित हो सकती है।’’
एक वरिष्ठ सरकारी अधिकारी ने बताया कि समस्या तब शुरू होती है जब सोशल मीडिया समूहों पर उन लोगों की ओर से झूठी जानकारी दी जाती है जिन्हें सूचना का भरोसेमंद स्रोत समझा जाता है। उन्होंने कहा कि हंदवाड़ा मामले में प्रदर्शन के दौरान एक समूह प्रशासक ने मृतकों की संख्या छह बता दी यह प्रशासक स्वयं पत्रकार है। यहां तक कि उसने एक जीवित व्यक्ति को मृत भी बता दिया। अधिकारी ने कहा ‘‘सोचिये कि इस पोस्ट का घायल व्यक्ति के परिवार पर और उस इलाके में क्या असर पड़ेगा जहां वह रहता है। पहले ही स्थिति अशांत है और गलत सूचना से अधिक हिंसा हो सकती है।’’ अधिकारी के अनुसार, प्रशासन इस तरह की गैर जिम्मेदार खबरों का प्रसार रोकना चाहता है जिससे हालात और बिगड़ सकते हैं। बहरहाल, दूसरों का आरोप है कि यह अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता पर हमला है। कश्मीर विश्वविद्यालय के एक छात्र सज्जाद अहमद ने कहा ‘‘यह अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता पर सीधा हमला है। अब सरकार यह जानना चाहती है कि लोग अपने वाट्सएप समूहों पर क्या शेयर कर रहे हैं।’’ ऐसे ही एक समूह के सदस्य एक वरिष्ठ पत्रकार ने कहा कि यह आधिकारिक रोक अवांछित और अनावश्यक है। उन्होंने कहा कि मामूली चूक हो सकती है लेकिन आम तौर पर, कश्मीर में और जिला स्तर पर भी में पत्रकार काफी जिम्मेदार हैं।
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