कोरोना महामारी के बीच साल 2020 में इन राजनीतिक घटनाक्रमों का गवाह बना देश

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अंकित सिंह । Dec 24 2020 2:00PM

कोरोना संकट काल में ही एक ओर जहां बिहार में विधानसभा चुनाव हुए तो वहीं साल की शुरुआत दिल्ली विधानसभा चुनाव से हुई थी। कांग्रेस के अंदर भी हमने संकट देखें। एक ओर जहां उसके केंद्रीय नेतृत्व पर सवाल उठे तो वही मध्य प्रदेश में सत्ता गंवानी पड़ी और राजस्थान में अंतर्कलह से जूझना पड़ा।

साल 2020 खत्म होने वाला है। यह साल चुनौतियों भरा रहा। कोरोना वायरस की विषम परिस्थितियों में भी देश कई राजनीतिक घटनाक्रमों का गवाह रहा। कोरोना संकट काल में ही एक ओर जहां बिहार में विधानसभा चुनाव हुए तो वहीं साल की शुरुआत दिल्ली विधानसभा चुनाव से हुई थी। कांग्रेस के अंदर भी हमने संकट देखें। एक ओर जहां उसके केंद्रीय नेतृत्व पर सवाल उठे तो वही मध्य प्रदेश में सत्ता गंवानी पड़ी और राजस्थान में अंतर्कलह से जूझना पड़ा। चलिए आपको बताते हैं इस साल की 10 बड़ी राजनीतिक घटनाक्रम:- 

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बिहार विधानसभा चुनाव

इस साल के बड़े राजनीतिक घटनाक्रमों में बिहार विधानसभा चुनाव प्रमुख है। कोरोना महामारी की विषम परिस्थितियों के बीच बिहार में हुए 243 सीटों पर विधानसभा चुनाव में एनडीए गठबंधन 125 सीटों के साथ सरकार बनाने में कामयाब रही। नीतीश कुमार ने सातवीं बार बिहार के मुख्यमंत्री के रूप में शपथ ली। हालांकि चुनाव के दौरान एक ओर जहां नीतीश को लेकर लोगों में नाराजगी दिखी तो वहीं तेजस्वी यादव बड़े नेता के तौर पर उभरे। इसी चुनाव में एनडीए से बाहर होकर चिराग पासवान ने अलग ताल ठोकी। हालांकि नतीजों में कुछ खास असर नहीं दिखा। इस चुनाव में आरजेडी और भाजपा जहां ज्यादा सीटें हासिल करने में कामयाब रही तो वहीं नीतीश कुमार की पार्टी जदयू को काफी नुकसान हुआ।

दिल्ली विधानसभा चुनाव

2020 के फरवरी महीने में दिल्ली में विधानसभा चुनाव संपन्न हुए। यह चुनाव ऐसे समय में हुआ जब दिल्ली का शाहीन बाग सीएए के खिलाफ हो रहे विरोध प्रदर्शन का केंद्र बन गया था। इस चुनाव से भाजपा को काफी उम्मीदें थी कि वह शायद इस सब बार अरविंद केजरीवाल की पार्टी आम आदमी पार्टी को हरा सके। चुनाव प्रचार में दोनों ही दलों के बीच जबरदस्त टक्कर देखने को मिली। इस चुनाव में जहां 62 सीटों के साथ अरविंद केजरीवाल ने एक बार फिर से जोरदार तरीके से सत्ता में वापसी की तो वहीं भाजपा मेहनत के बावजूद सिर्फ और सिर्फ 8 सीटों पर ही जीत हासिल कर सकी। इस बार के भी विधानसभा चुनाव में कांग्रेस अपना खाता नहीं खोल सकी।

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ममता बनाम केंद्र और भाजपा

अगले साल पश्चिम बंगाल में होने वाले विधानसभा चुनाव के मद्देनजर इस साल भाजपा और तृणमूल कांग्रेस के बीच कांटे की टक्कर रही। ऐसे कई मौके आए जब दोनों ही दलों के कार्यकर्ताओं के बीच पश्चिम बंगाल में भिड़ंत देखी गई। इसके अलावा ममता बनर्जी लगातार केंद्र पर पश्चिम बंगाल में दखल देने का आरोप लगाती रहीं। ममता के गढ़ में भाजपा के बड़े नेताओं का दौरा इस साल लगातार जारी रहा। वहीं, ममता भी भाजपा के खिलाफ दूसरे दलों को एकत्र करने में जुटी रहीं। पश्चिम बंगाल में तृणमूल कांग्रेस में भी काफी उठापटक देखने को मिली। कई कद्दावर नेताओं ने पार्टी का दामन छोड़ भाजपा के साथ जाने का फैसला किया। भाजपा ने लगातार ममता सरकार और कानून व्यवस्था को लेकर सवाल उठाए। दोनों ही दलों के बीच कड़वाहट इतनी बढ़ गई कि लॉकडाउन और कोरोना वायरस को लेकर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी द्वारा बुलाए गए कई बैठक में भी ममता शामिल नहीं हुईं। इस साल राज्यपाल के साथ ममता की तनातनी भी चर्चा में रही।

मध्यप्रदेश में कांग्रेस सरकार का पतन

साल के सबसे बड़े राजनीतिक घटनाक्रम की बात करें तो वह मध्य प्रदेश में सत्ता परिवर्तन है। दरअसल, कांग्रेस से बगावत करने के बाद ज्योतिरादित्य सिंधिया के 22 समर्थक विधायक कमलनाथ सरकार से अपना समर्थन वापस ले लिया जिसके बाद सरकार चली गई। राजनीतिक सरगर्मियां के बीच कभी कांग्रेस के कद्दावर नेता रहे ज्योतिरादित्य सिंधिया भाजपा में शामिल हो गए। उनके साथ उनके समर्थक विधायकों ने भी भाजपा का दामन थाम लिया। बाद में भाजपा की ओर से सरकार बनाने की कवायद तेज हुई। 2018 में बहुत ही कम सीटों से पिछड़ने के बाद भाजपा एक बार फिर से 2020 में शिवराज सिंह चौहान के नेतृत्व में मध्य प्रदेश में सरकार बनाने में कामयाब रही। वहीं, ज्योतिरादित्य सिंधिया भाजपा कोटे से राज्यसभा पहुंचे। बाद में कांग्रेस के कई और विधायकों ने भी पार्टी का साथ छोड़ दिया और भाजपा के साथ जुड़ गए। नवंबर महीने में हुए उपचुनाव में भाजपा ने यहां शानदार प्रदर्शन करते हुए 28 में से 19 सीटों पर जीत दर्ज की।

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राजस्थान में कांग्रेस संकट

कांग्रेस को इस साल एक और उठापटक का सामना करना पड़ा। राजस्थान में मुख्यमंत्री अशोक गहलोत और उप मुख्यमंत्री सचिन पायलट के बीच जबरदस्त मनमुटाव देखने को मिला। लगभग 1 महीने तक चले राजनीतिक घटनाक्रम के बाद सचिन पायलट को कांग्रेस मनाने में कामयाब रही। हालांकि एक समय ऐसा लग रहा था कि ऐसा ना हो कि मध्यप्रदेश की ही तरह राजस्थान में भी कांग्रेस की सरकार गिर जाए। सचिन पायलट के समर्थक विधायक कई दिनों तक गायब रहे। एक महीने तक सचिन पायलट और अशोक गहलोत के बीच बयानबाजी अपने चरम पर थी। मनमुटाव यहां तक पहुंच गया था कि ना सिर्फ अशोक गहलोत ने सचिन पायलट को अपने मंत्रिमंडल से निष्कासित किया बल्कि कांग्रेस ने भी उन्हें प्रदेश अध्यक्ष पद से हटा दिया। इस दौरान देश के कई युवा कांग्रेसी नेता सचिन पायलट के समर्थन में खड़े रहे जिसका दबाव आलाकमान पर भी पड़ा।

कांग्रेस के केंद्रीय टीम में संकट

नेतृत्व संकट से जूझ रही कांग्रेस के लिए यह साल किसी बुरे दौर से कम नहीं था। जहां मध्य प्रदेश में सरकार चली गई तो वही राजस्थान के राजनीतिक संकट ने पार्टी को कमजोर कर दिया। इतना ही नहीं, देश के कई हिस्सों में हुए उपचुनाव में भी पार्टी कुछ खास प्रदर्शन नहीं कर सकी। इसके अलावा दिल्ली और बिहार विधानसभा चुनाव में पार्टी का प्रदर्शन खराब रहा। कांग्रेस की वर्तमान स्थिति को लेकर ही पार्टी के 23 नेताओं ने आलाकमान के खिलाफ सार्वजनिक तौर पर अपनी नाराजगी जताई। इन नेताओं में कपिल सिब्बल, गुलाम नबी आजाद, अनंत शर्मा, शशि थरूर, जयराम रमेश जैसे बड़े नेता शामिल थे। यह नेता पार्टी में सक्रियता चाहते हैं। पार्टी अध्यक्ष को लेकर चुनाव चाहते हैं। पार्टी एक बार फिर से मजबूती से खड़ी हो सके, इसकी लगातार मांग कर रहे हैं। आपको बता दें कि लोकसभा चुनाव में मिली हार की जिम्मेदारी लेते हुए राहुल गांधी ने पार्टी अध्यक्ष पद से इस्तीफा दे दिया था। इसके बाद वर्तमान समय में सोनिया गांधी कांग्रेस की अंतरिम अध्यक्ष बनी हुई हैं।

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भाजपा शिरोमणि अकाली दल का गठबंधन से अलग होना

इस साल लगभग 22 साल तक चली भाजपा और अकाली दल की दोस्ती टूट गई। दरअसल, कृषि कानूनों के विरोध में अकाली दल की ओर से मोदी मंत्रिमंडल में शामिल हरसिमरत कौर बादल ने 17 सितंबर 2020 को अपना इस्तीफा दे दिया। हालांकि तब अकाली दल की ओर से कहा गया कि एनडीए को उसका समर्थन जारी रहेगा। लेकिन बाद में अकाली दल के अध्यक्ष सुखबीर सिंह बादल ने साफ तौर पर एनडीए से अलग होने का ऐलान कर दिया। इतना ही नहीं, सुखबीर बादल जुबानी तौर पर भी भाजपा पर बरसते रहे। पंजाब में दोनों ही दलों का रिश्ता काफी पुराना है। 1992 तक अकाली दल और भाजपा वहां अकेले चुनाव लड़ते थे लेकिन चुनाव के बाद साथ आ जाते थे। हालांकि, 1997 में आधिकारिक तौर पर दोनों पार्टियों ने एक साथ चुनाव लड़ा। दोनों दलों के बीच रिश्ते इतने मजबूत थे कि मोदी और अमित शाह के युग में भी भाजपा ने पंजाब में अपने आप को इतना मजबूत नहीं किया जितना उसने बाकी राज्यों पर ध्यान दिया।

जम्मू कश्मीर में डीडीसी चुनाव होना

इस साल की प्रमुख राजनीतिक घटनाओं में जम्मू कश्मीर में डीडीसी का चुनाव होना भी है। धारा 370 हटने के बाद यह पहला मौका है जब वहां लोकतांत्रिक प्रक्रिया बहाल हुई है। इस चुनाव में वहां की आम जनता ने बढ़ चढ़कर भाग लिया और वोटिंग प्रतिशत 51 से भी ज्यादा रही। सबसे बड़ी बात है कि पिछले एक डेढ़ महीने पहले तक जो पर्टियां यह कहते दिखी कि वह धारा 370 को वापस लागू किए बिना राजनीतिक गतिविधियों में शामिल नहीं होंगे, उन्होंने भी यह चुनाव लड़ा। इस चुनाव में भाजपा सबसे बड़े दल के रूप में उभरी। भगवा पार्टी के लिए अच्छी खबर यह भी रही कि घाटी में उसका खाता खुला।


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हैदराबाद में कमल

हिंदी बेल्ट की पार्टी कही जाने वाली भाजपा अब दक्षिण भारत में भी अपना कमाल दिखाने लगी है। इस साल हुए ग्रेटर हैदराबाद नगर निगम चुनाव को भाजपा ने प्रतिष्ठा का विषय बना लिया था। अमित शाह, जेपी नड्डा जैसे वरिष्ठ नेता भी नगर निगम चुनाव में प्रचार के लिए उतरे। पार्टी को इसका फायदा हुआ। भाजपा 150 में से 49 सीटों के साथ दूसरे नंबर पर रही। वही, सत्ताधारी टीआरएस सिर्फ 56 सीटें ही जीत सकी जबकि ओवैसी की पार्टी सिर्फ और सिर्फ 44 सीटों पर सिमट गई। कांग्रेस 2 सीटें ही हासिल कर सकी। खास बात यह है कि 2016 के निकाय चुनाव में भाजपा को 4 सीटें ही मिली थी लेकिन 2020 के चुनाव में उसने इसमें काफी इजाफा कर लिया।

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राम मंदिर निर्माण की नींव पड़ना

अगर आप भाजपा कि राजनीतिक एजेंडों को देखें तो उसमें राम मंदिर प्रमुख रहा है। भाजपा राम मंदिर निर्माण के वादे के साथ ही देश की राजनीति की मुख्यधारा में आई थी। हालांकि, पिछले साल कानूनी तौर पर राम मंदिर निर्माण से जुड़ी अड़चने तो खत्म हो गई लेकिन फिर भी लगातार भाजपा से सवाल किया जा रहा था कि राम मंदिर कब बनाओगे? तो कहीं ना कहीं अपने आलोचकों को इस साल भाजपा ने जवाब देते हुए 5 अगस्त को पड़े राम मंदिर निर्माण की नींव को अपनी उपलब्धि बताती रही। भाजपा ने इस मौके को खूब भुनाया। पार्टी के सबसे प्रमुख नेता और देश के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने राम मंदिर निर्माण की नींव रखी। इसके बाद भाजपा के नेता लगातार यह दावा करते दिखे कि अब हमने राम मंदिर निर्माण की तारीख बता दी है। 

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मणिपुर विधायक मामला

इस साल मणिपुर में भी राजनीतिक उठापटक देखने को मिली। मणिपुर में गठबंधन सरकार का नेतृत्व करने वाली भाजपा खतरे में थी। दरअसल, मुख्यमंत्री एन बीरेन सिंह से नाराज होकर सहयोगी एनपीपी के कई विधायकों ने सरकार से अपना समर्थन वापस ले लिया था। हालांकि बाद में हिमंत बिस्वा सरमा और राष्ट्रीय अध्यक्ष जेपी नड्डा की दखलंदाजी के बाद इस मसले को सुलझाया गया। बाद में पार्टी के ही कुछ विधायकों ने एन बीरेन सिंह के खिलाफ मोर्चा खोल दिया। इसे भी पार्टी की ओर से शांत करने की कोशिश की गई।

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