Malegaon Blast Case पर अदालती फैसला Digvijay Singh और Chidambaram जैसे कांग्रेसियों के मुँह पर करारा तमाचा है

Digvijay Chidambaram
ANI

हम आपको याद दिला दें कि कांग्रेस के वरिष्ठ नेता दिग्विजय सिंह और पी. चिदंबरम ने मालेगांव की घटना को आधार बनाकर ‘भगवा आतंकवाद’ या ‘हिंदू आतंकवाद’ जैसी परिभाषाओं को सार्वजनिक विमर्श में लाने का प्रयास किया।

मालेगांव बम धमाकों का मामला केवल एक आपराधिक प्रकरण नहीं था, बल्कि इसके साथ राजनीतिक, सामाजिक और वैचारिक विमर्श भी गहराई से जुड़ गया था। हम आपको बता दें कि वर्ष 2008 में हुए इस विस्फोट मामले में सात लोगों पर गैरकानूनी गतिविधियां (रोकथाम) अधिनियम के तहत आतंकवादी कृत्य को अंजाम देने और भारतीय दंड संहिता (आईपीसी) के तहत हत्या एवं आपराधिक साजिश रचने के आरोप में मुकदमे चलाये गये। अभियोजन पक्ष ने आरोप लगाया था कि यह विस्फोट दक्षिणपंथी चरमपंथियों ने किया था और उनका उद्देश्य ‘आर्यावर्त’ (हिंदू राष्ट्र) की स्थापना करना था। इस मामले में कुल 14 लोगों को गिरफ्तार किया गया था, लेकिन केवल सात लोगों पर ही मुकदमा चला, क्योंकि आरोप तय होने के समय बाकी सात को बरी कर दिया गया था। विशेष अदालत ने आज फैसला सुनाते हुए भाजपा की पूर्व सांसद प्रज्ञा सिंह ठाकुर और लेफ्टिनेंट कर्नल प्रसाद पुरोहित समेत सभी सात आरोपियों को बरी कर दिया तथा कहा कि उन्हें (आरोपियों को) दोषी साबित करने के लिए (पर्याप्त) सबूत नहीं है।

देखा जाये तो अदालत का यह फैसला कांग्रेस पार्टी के मुँह पर करारा तमाचा है क्योंकि उसने हिंदू आतंकवाद और भगवा आतंकवाद शब्द गढ़ने का प्रयास किया था। हम आपको याद दिला दें कि कांग्रेस के वरिष्ठ नेता दिग्विजय सिंह और पी. चिदंबरम ने इस घटना को आधार बनाकर ‘भगवा आतंकवाद’ या ‘हिंदू आतंकवाद’ जैसी परिभाषाओं को सार्वजनिक विमर्श में लाने का प्रयास किया। इस शब्दावली ने न केवल राजनीतिक बहस को तेज किया बल्कि समाज में गहरे विभाजन की आशंका भी पैदा कर दी थी। मगर अब आया अदालत का आदेश उन सभी लोगों के लिए एक बड़ा झटका है जिन्होंने बिना न्यायिक निष्कर्ष के पूरे एक समुदाय या विचारधारा को आतंकवाद से जोड़ने की कोशिश की थी।

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हम आपको यह भी याद दिला दें कि चिदंबरम ने आतंकवाद को ‘भगवा’ रंग से जोड़कर उस समय विवाद खड़ा किया था जब आतंकवाद को रोकने में तत्कालीन यूपीए सरकार पूरी तरह विफल नजर आ रही थी। 2010 में नई दिल्ली में राज्यों के पुलिस महानिदेशकों और पुलिस महानिरीक्षकों के तीन दिवसीय सम्मेलन का उद्घाटन करते हुए तत्कालीन गृह मंत्री चिदम्बरम ने कह दिया था कि हाल ही में हुए कई बम विस्फोटों से ‘भगवा आतंकवाद’ का नया स्वरूप सामने आया है। देखा जाये तो जो भगवा रंग जीवन के लिए महत्वपूर्ण सूर्योदय, अग्नि सहित भारतीय संस्कृति का भी प्रतीक है, उसे आतंकवाद के साथ ‘राजनीतिक स्वार्थवश’ जोड़ कर समाज को बांटने का प्रयास किया गया था। अब अदालत के फैसले के बाद दिग्विजय सिंह और चिदम्बरम जैसे राजनीतिज्ञों को समझ लेना चाहिए कि आतंकवाद का कोई रंग नहीं होता। यदि आतंकवाद से किसी रंग को जोड़ने की बाध्यता ही है तो उसे काले रंग से जोड़ दें क्योंकि आतंकवाद जहां भी कहर बरपाता है वहां सिर्फ काला अध्याय ही छोड़ता है।

हम आपको यह भी याद दिला दें कि ‘भगवा आतंकवाद’ संबंधी टिप्पणी करते समय चिदम्बरम के जेहन में सिर्फ साध्वी प्रज्ञा, कर्नल पुरोहित और देवेंद्र गुप्ता के ही नाम आए थे। पुणे धमाके के आरोपियों- यासीन भटकल, रियाज भटकल और बंगलुरु धमाके के आरोपी मदनी का नाम लेना वह भूल गये थे। बहरहाल, जो लोग कहते हैं हि ‘बांटो और राज करो’ की नीति अंग्रेजों के जमाने में थी वह गलत हैं क्योंकि यह नीति कांग्रेस के शासनकाल तक भारत में चली।

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