भारत और फिजी के बीच साझेदारी गहराने से इंडो-पैसिफिक में चीन की पकड़ पड़ी ढीली

फिजी में बसे भारतीय मूल के लोग जिन्हें गिरमिटिया वंशज कहा जाता है, वह भारत–फिजी संबंधों का सबसे मजबूत सेतु रहे हैं। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने अपनी वार्ता में इस साझा विरासत को रेखांकित किया और फिजी सरकार द्वारा “गिरमिट डे” घोषित किए जाने का स्वागत किया।
भारत और फिजी के रिश्ते लगातार गहराते जा रहे हैं। प्रधानमंत्री सिटिवेनी राबुका की भारत यात्रा ने इन संबंधों को न केवल सांस्कृतिक और ऐतिहासिक धरातल पर मज़बूत किया, बल्कि स्वास्थ्य, शिक्षा, रक्षा, कृषि, ऊर्जा और जलवायु परिवर्तन जैसे बहुस्तरीय क्षेत्रों में नई दिशा भी दी। देखा जाये तो यह साझेदारी केवल द्विपक्षीय स्तर पर सीमित नहीं है, बल्कि इसका रणनीतिक महत्व इंडो–पैसिफिक की भू-राजनीति में भी गहराई से जुड़ा हुआ है।
हम आपको बता दें कि फिजी में बसे भारतीय मूल के लोग जिन्हें गिरमिटिया वंशज कहा जाता है, वह भारत–फिजी संबंधों का सबसे मजबूत सेतु रहे हैं। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने अपनी वार्ता में इस साझा विरासत को रेखांकित किया और फिजी सरकार द्वारा “गिरमिट डे” घोषित किए जाने का स्वागत किया। भारतीय भाषाओं, साहित्य और परंपराओं का संरक्षण और अब फिजी विश्वविद्यालय में हिंदी व संस्कृत के शिक्षक की नियुक्ति, दोनों देशों की सांस्कृतिक आत्मीयता को और गहरा करेंगे। यह जुड़ाव चीन जैसी बाहरी शक्तियों के सांस्कृतिक प्रभाव को संतुलित करने का भी साधन है।
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इसके अलावा, फिजी में सुपर स्पेशलिटी अस्पताल, जन औषधि केंद्र, डायलिसिस यूनिट्स और जयपुर फुट शिविर जैसी परियोजनाएँ, भारत की “सॉफ्ट पावर” का उत्कृष्ट उदाहरण हैं। इससे न केवल फिजी की जनता में भारत के प्रति विश्वास बढ़ेगा, बल्कि चीन की तुलना में भारत को “मानव-केंद्रित विकास साझेदार” के रूप में देखा जाएगा। कृषि क्षेत्र में एग्री-ड्रोन, मोबाइल सॉइल टेस्टिंग लैब और Cowpea seeds जैसी सहायता फिजी की खाद्य सुरक्षा को मजबूत करेगी। हम आपको बता दें कि चीन जहाँ अक्सर संसाधनों के दोहन और ऋण-जाल (Debt Trap) कूटनीति के लिए आलोचित होता है, वहीं भारत का दृष्टिकोण साझा विकास और आत्मनिर्भरता का है।
इसके अलावा, फिजी हिंद-प्रशांत क्षेत्र में सामरिक दृष्टि से अहम स्थान रखता है। भारत ने फिजी की Maritime Security, साइबर सुरक्षा, और डिज़ास्टर रिस्पॉन्स क्षमताओं को मजबूत करने की दिशा में ठोस कदम उठाए हैं। जैसे कि फिजी में रक्षा अटैची पद की स्थापना की गयी है, साइबर सिक्योरिटी ट्रेनिंग सेंटर का गठन किया गया है और फिजी की सेनाओं को भारतीय सहयोग दिया जा रहा है। ये सभी संकेत हैं कि भारत इस क्षेत्र में सुरक्षा का स्थायी साझेदार बनने जा रहा है। यह सीधे-सीधे चीन की उस रणनीति को चुनौती देता है, जिसके तहत बीजिंग ने पिछले एक दशक में पैसिफिक द्वीप देशों में बंदरगाहों, सैन्य समझौतों और ऋण परियोजनाओं के माध्यम से अपनी पकड़ मजबूत करने की कोशिश की है।
हम आपको बता दें कि भारत और फिजी दोनों “फ्री, ओपन, इनक्लूसिव और सिक्योर इंडो–पैसिफिक” का समर्थन करते हैं। फिजी का भारत की Indo-Pacific Oceans Initiative (IPOI) में शामिल होना, चीन के “Pacific Island Outreach” पर प्रत्यक्ष कूटनीतिक झटका है। चीन की कोशिश रही है कि वह छोटे द्वीप देशों को ऋण और इंफ्रास्ट्रक्चर सहायता देकर अपनी रणनीतिक उपस्थिति बढ़ाए, लेकिन फिजी का भारत–केंद्रित रुख यह संदेश देता है कि पैसिफिक द्वीपों के लिए विकल्प मौजूद हैं। विशेषकर स्वास्थ्य, शिक्षा और सांस्कृतिक सहयोग के मानवीय आयाम चीन की रणनीति को कमजोर करते हैं, क्योंकि वहां अधिकतर परियोजनाएँ सुरक्षा और आर्थिक नियंत्रण पर केंद्रित रही हैं।
बहरहाल, भारत और फिजी का सहयोग केवल द्विपक्षीय नहीं है, बल्कि यह ग्लोबल साउथ की सामूहिक आकांक्षाओं का भी प्रतिनिधित्व करता है। दोनों देशों की साझेदारी एक ऐसे “विकास मॉडल” को बढ़ावा देती है, जो ऋण के बोझ के बजाय आत्मनिर्भरता, सांस्कृतिक सम्मान और साझा हितों पर आधारित है। स्पष्ट है कि भारत–फिजी संबंधों की मजबूती न केवल पैसिफिक क्षेत्र में चीन की कूटनीतिक महत्वाकांक्षाओं को संतुलित करेगी, बल्कि छोटे द्वीप देशों के लिए भी यह संदेश देगी कि वे स्वतंत्र रूप से साझेदार चुन सकते हैं और एक बहुध्रुवीय विश्व व्यवस्था में अपनी पहचान सुरक्षित रख सकते हैं। साथ ही भारत और फिजी का बढ़ता सहयोग चीन की “कुटिल मंशा” को इसलिए झटका देता है क्योंकि यह पैसिफिक क्षेत्र में मानव-केंद्रित, विश्वास-आधारित और स्थायी साझेदारी का विकल्प प्रस्तुत करता है, जबकि चीन का मॉडल नियंत्रण और ऋण पर टिका हुआ है।
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