Delhi Blast की जाँच से बड़ा खुलासा, आतंकियों ने आटा चक्की को बना डाला था बम बनाने की मशीन, बना रहे थे खतरनाक पाउडर!

Chemical explosives grinding
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इस पूरे प्रकरण ने तीन बड़े सुरक्षा जोखिम उजागर किए हैं। पहला है आम उपकरणों का दुरुपयोग। आटा चक्की, गैस सिलेंडर, साधारण रसायन, यानि ऐसी चीजें जिन्हें कोई भी सामान्य घर में देख कर संदेह नहीं करेगा, मगर अब यह आतंकी हथियारों के रूप में इस्तेमाल की जा रही हैं।

कश्मीर से निकल कर फरीदाबाद पहुँच कर आतंकवाद को देश में फैलाने की साजिश रचने वाले डॉक्टरों से जुड़े मामलों में रोजाना ऐसे खुलासे हो रहे हैं जो चौंकाने वाले हैं। हम आपको बता दें कि फरीदाबाद के धौज गांव के एक साधारण से घर में आतंक का पाउडर बनाया जा रहा था। ये खुलासा दिल्ली कार ब्लास्ट मामले की जांच में हुआ है। डॉक्टर मुजम्मिल और उसके सहयोगी उमर उन नबी पर आरोप है कि उन्होंने एक आटा चक्की को केमिकल ग्राइंडर में बदलकर विस्फोटक तैयार करने की तैयारी की थी। पुलिस द्वारा बरामद तस्वीरें और मशीनरी इस बात का भयावह संकेत हैं कि आतंकी मॉड्यूल कितनी बारीकी से रोजमर्रा के उपकरणों का दुरुपयोग कर रहे थे।

आम तौर पर अनाज पीसने वाली चक्की ठोस पदार्थों को महीन पाउडर में बदल देती है और जांच अधिकारियों के अनुसार यही तकनीक रसायनों को विस्फोटक रूप में बदलने में प्रयुक्त की गई। इससे भी ज्यादा चिंताजनक है कि घटनास्थल से करीब 3,000 किलो अमोनियम नाइट्रेट और अन्य रसायन बरामद किए गए, जो बड़े पैमाने पर विस्फोटों की योजना की ओर संकेत करते हैं। हम आपको बता दें कि मुजम्मिल ने यह कमरा मात्र ₹1,500 किराये पर लिया था और इसी कमरे से 2,600 किलो अतिरिक्त अमोनियम नाइट्रेट पहले ही बरामद हुआ था। दोनों आरोपियों के अड्डों पर मिले डायरी और नोटबुक, जिनमें 8 से 12 नवंबर तक के तारीखों पर “operation” शब्द बार-बार लिखा था, उससे स्पष्ट है कि कई हमलों की योजना बनाई जा रही थी। डायरी में 2,500 से अधिक नाम दर्ज पाए गए इनमें ज्यादातर जम्मू-कश्मीर, फरीदाबाद और आसपास के क्षेत्रों के हैं। हम आपको बता दें कि दोनों आरोपी 2021 के बाद अल-फलाह यूनिवर्सिटी से जुड़े थे और जांच एजेंसियों के अनुसार यह पूरा मॉड्यूल पिछले दो वर्षों से ‘सफेदपोश’ आवरण में संचालित था।

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देखा जाये तो इस पूरे प्रकरण ने तीन बड़े सुरक्षा जोखिम उजागर किए हैं। पहला है आम उपकरणों का दुरुपयोग। आटा चक्की, गैस सिलेंडर, साधारण रसायन, यानि ऐसी चीजें जिन्हें कोई भी सामान्य घर में देख कर संदेह नहीं करेगा, मगर अब यह आतंकी हथियारों के रूप में इस्तेमाल की जा रही हैं। यह सुरक्षा एजेंसियों के लिए जटिल चुनौती है। दूसरा जोखिम है- कैंपस और हॉस्टल आतंक के नए अड्डे बन रहे हैं। अल-फलाह यूनिवर्सिटी के हॉस्टल कमरों से बरामद विस्फोटक, डायरी और मशीनरी यह दर्शाते हैं कि शैक्षणिक परिसरों को सुरक्षित रखने के लिए नई रणनीति की जरूरत है। इसके अलावा तीसरा जोखिम है- लंबे समय तक चलने वाली ‘स्लीपर प्लानिंग’, देखा जाये तो यह मॉड्यूल दो वर्ष से अधिक समय तक सक्रिय रहा और कई स्तरों पर फैला था। इसका मतलब है कि यह केवल ‘एक हमला’ नहीं बल्कि श्रृंखलाबद्ध हमलों की योजना थी। इसका सबसे बड़ा निहितार्थ यह है कि सुरक्षा एजेंसियों को अब केवल हथियार बरामद करने पर ध्यान नहीं देना होगा, बल्कि ऐसे सामाजिक-तकनीकी नेटवर्क की पहचान करनी होगी, जो साधारण दिखते हैं पर बेहद खतरनाक क्षमता रखते हैं।

हम आपको यह भी बता दें कि दिल्ली और फरीदाबाद में उजागर हुए मॉड्यूल के बाद जम्मू-कश्मीर में सुरक्षा एजेंसियों ने सावधानी और सख्ती दोनों बढ़ा दी हैं। जम्मू, कठुआ और सांबा जिलों में भारत–पाकिस्तान सीमा के निकट बड़े पैमाने पर सुरक्षा अभ्यास किया गया। इसका उद्देश्य था— सीमा पर घुसपैठ रोकना, आतंकी गतिविधियों की संभावित श्रृंखलाओं को तोड़ना और सीमा ग्रिड की मजबूती का आकलन करना।

वहीं दिल्ली ब्लास्ट के सफेदपोश मॉड्यूल के उजागर होने के बाद श्रीनगर और अनंतनाग के सरकारी मेडिकल कॉलेजों में बड़े पैमाने पर चिकित्सकों और कर्मचारियों के लॉकरों की जांच आज भी जारी रही। देखा जाये तो दिल्ली ब्लास्ट और फरीदाबाद मॉड्यूल की जांच ने भारत में आतंकवाद की दिशा बदलते हुए दिखा दी है। आतंकी संगठन अब विश्वविद्यालयों, अस्पतालों, सामान्य घरों और सामाजिक प्रतिष्ठा वाले पेशों को अपनी आड़ के रूप में इस्तेमाल कर रहे हैं। कश्मीर से दिल्ली तक फैली हालिया कार्रवाइयों से साफ है कि सरकार अब इस खतरे को एक बड़े, संगठित नेटवर्क के रूप में देख रही है और उसी के अनुसार सख्ती बढ़ाई जा रही है।

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