Right to Education: सभी छात्रों के लिए एक समान कोर्स की मांग, सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर

Supreme Court
अंकित सिंह । Dec 23 2021 10:35AM

याचिका में यह भी कहा गया है कि आरटीई अधिनियम की धाराएं एक (चार) और एक (पांच) संविधान की व्याख्या करने में सबसे बड़ी बाधा हैं और मातृ में समान पाठ्यक्रम का नहीं होना अज्ञानता को बढ़ावा देता है।

देश में शिक्षा का अधिकार सभी को मिला हुआ है। हालांकि समय समय पर सभी छात्रों के लिए एक समान कोर्स की मांग उठती रहती है। एक बार फिर से यह मांग उठाई गई है। भाजपा नेता और वकील अश्विनी उपाध्याय ने इसको लेकर एक जनहित याचिका दायर की है। सुप्रीम कोर्ट में ‘शिक्षा के अधिकार अधिनियम-2009’ (आरटीई) की कुछ ‘‘मनमानी एवं तर्कहीन’’ धाराओं के खिलाफ और देशभर में सभी छात्रों के लिए समान पाठ्यक्रम अपनाए जाने का अनुरोध करने वाली यह जनहित याचिका दायर हुई है। याचिका में यह भी कहा गया है कि आरटीई अधिनियम की धाराएं एक (चार) और एक (पांच) संविधान की व्याख्या करने में सबसे बड़ी बाधा हैं और मातृ में समान पाठ्यक्रम का नहीं होना अज्ञानता को बढ़ावा देता है। 

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जनहित याचिका में कहा गया है कि समान शिक्षा प्रणाली लागू करना संघ का कर्तव्य है, लेकिन वह इस अनिवार्य दायित्व को पूरा करने में विफल रहा है और उसने 2005 के पहले से मौजूद राष्ट्रीय पाठ्यचर्या ढांचे (एनसीएफ) को अपना लिया है। याचिका में कहा गया है, ‘‘एक बच्चे का अधिकार केवल नि:शुल्क शिक्षा तक ही सीमित नहीं होना चाहिए, बल्कि बच्चे की सामाजिक आर्थिक एवं सांस्कृतिक पृष्ठभूमि के आधार पर भेदभावकिए बिना समान गुणवत्ता वाली शिक्षा भी उसका अधिकार होनी चाहिए। इसलिए, न्यायालय धाराओं एक (चार) और एक(पांच) को मनमाना, तर्कहीन और अनुच्छेद 14, 15, 16 और 21 का उल्लंघन घोषित कर सकता है और केंद्र को पूरे देश में पहली से आठवीं कक्षा तक के छात्रों के लिए समान पाठ्यक्रम लागू करने का निर्देश दे सकता है।

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याचिका में यह भी कहा गया है कि केंद्र ने मदरसों, वैदिक पाठशालाओं और धार्मिक शिक्षा प्रदान करने वाले शैक्षणिक संस्थानों को शैक्षणिक उत्कृष्टता से वंचित करने के लिए धारा एक (चार) और एक (पांच) को शामिल किया।’’ इसमें कहा गया है, ‘‘याचिकाकर्ता का कहना है कि धाराएं एक (चार) और एक (पांच) न केवल अनुच्छेद 14, 15, 16, 21, 21ए का उल्लंघन हैं, बल्कि ये अनुच्छेद 38, 39 एवं 46 और प्रस्तावना के भी विपरीत हैं।’’ याचिका में कहा गया है कि मौजूदा प्रणाली सभी बच्चों को समान अवसर प्रदान नहीं करती, क्योंकि समाज के प्रत्येक स्तर के लिए भिन्न पाठ्यक्रम है। 

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