लोकतंत्र में संस्थाओं के बीच विचारों में मतभेद हो सकते हैं: लोकसभा अध्यक्ष बिरला

Lok Sabha Speaker Birla

पीठासीन अधिकारियों के 80वें अखिल भारतीय सम्मेलन को संबोधित करते हुए उन्होंने कहा कि संविधान संसद व विधान मंडलों को जन भावनाओं के अनुरूप काम करने का आधार प्रदान करता है।

केवडिया, (गुजरात)। लोकसभा अध्यक्ष ओम बिरला ने बुधवार को लोकतंत्र के तीनों स्तंभों विधायिका, कार्यपालिका और न्यायपालिका के बीच आदर्श समन्वय की आवश्यकता पर बल दिया और कहा कि लोकतंत्र में संस्थाओं के बीच मतांतर हो सकते हैं। पीठासीन अधिकारियों के 80वें अखिल भारतीय सम्मेलन को संबोधित करते हुए उन्होंने कहा कि संविधान संसद व विधान मंडलों को जन भावनाओं के अनुरूप काम करने का आधार प्रदान करता है। उन्होंने कहा,‘‘जनप्रतिनिधि के रूप में हमें संवैधानिक मूल्यों के प्रति दृढ़ रहकर कर्तव्यों का निर्वहन करते हुए समाज के आखिरी व्यक्ति के उत्थान के लिए प्रयत्नशील रहना चाहिए।’’ बिरला ने कहा कि लोकतंत्र की यात्रा में संस्थाओं में मतान्तर सामने आते हैं लेकिन संवैधानिक प्रावधानों व लोकतांत्रिक प्रणाली के तहत प्रक्रियाओं में सुधार कर उनका समाधान निकाला जा सकता है। उन्होंने कहा, ‘‘लोकतंत्र के तीनों स्तंभों विधायिका, कार्यपालिका और न्यायपालिका के बीच आदर्श समन्वय आवश्यक है। तीनों संस्थाओं का मकसद जनता के हितों का संरक्षण है तथा तीनों के पास काम करने के लिए पर्याप्त शक्तियां उपलब्ध हैं।’’  

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लोकसभा अध्यक्ष ने कहा कि जनप्रतिनिधि देश की जनता के हितों, चिंताओं, आशाओं और आकांक्षाओं का प्रतिनिधित्व करते हैं। उन्होंने कहा, ‘‘हमारी लोकतांत्रिक संस्थाएं संविधान से ही अपनी शक्तियां प्राप्त करती हैं। एक सशक्त, किंतु संवेदनशील विधायिका भी इसी संविधान की अनुपम देन है। संसद व विधान मंडलों को संविधान, जन भावनाओं के अनुरूप काम करने का आधार प्रदान करता है।

डिस्क्लेमर: प्रभासाक्षी ने इस ख़बर को संपादित नहीं किया है। यह ख़बर पीटीआई-भाषा की फीड से प्रकाशित की गयी है।


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