हुकुम सिंह: पहले चीन के खिलाफ युद्ध लड़ा फिर वकालत की और अंत में कैराना का उद्धार करने के लिए राजनीति में आ गए

Hukum Singh Final Pic
प्रतिरूप फोटो

हुकुम सिंह का जन्म 5 अप्रैल, 1938 को कैराना में मान सिंह और लीलावती के घर में हुआ था। वो बचपन से ही पढ़ाई में काफी होशियार थे। कैराना में 12वीं तक की पढ़ाई करने के बाद उन्होंने इलाहाबाद विश्वविद्यालय से आगे की पढ़ाई पूरी करने का मन बनाया और फिर उन्होंने वहां से बीए और एलएलबी की डिग्री हासिल की।

नयी दिल्ली। भारतीय जनता पार्टी के कद्दावर नेता हुकुम सिंह किसी पहचान के मोहताज नहीं थे। 3 फरवरी, 2018 को लंबी बीमारी के बाद नोएडा के एक निजी अस्पताल में हुकुम सिंह का निधन हो गया था। उन्होंने ग्रैंड ओल्ड पार्टी (कांग्रेस) से अपने राजनीतिक जीवन की शुरुआत की और फिर जनता पार्टी में चले गए लेकिन अंतत: उन्हें भारतीय जनता पार्टी ही रास आई। उन्होंने साल 1995 में भाजपा का दामन थामा था और तब से लेकर अब तक उत्तर प्रदेश के कैराना में एक ही नाम गूंजता आया है हुकुम सिंह... हालांकि उनकी बेटी मृगांका सिंह ने अभी तक कोई खास नाम नहीं कमाया है लेकिन उत्तर प्रदेश की जनता उन्हें उनके पिता के नाम से बखूबी जानती है। 

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कौन थे हुकुम सिंह ?

हुकुम सिंह का जन्म 5 अप्रैल, 1938 को कैराना में मान सिंह और लीलावती के घर में हुआ था। वो बचपन से ही पढ़ाई में काफी होशियार थे। कैराना में 12वीं तक की पढ़ाई करने के बाद उन्होंने इलाहाबाद विश्वविद्यालय से आगे की पढ़ाई पूरी करने का मन बनाया और फिर उन्होंने वहां से बीए और एलएलबी की डिग्री हासिल की। साल 1958 में हुकुम सिंह शादी के पवित्र बंधन में रेवती सिंह के साथ बंध गए और फिर उन्होंने वकालत भी शुरू कर दी।

वकालत करते हुए हुकुम सिंह ने उत्तर प्रदेश की न्यायिक सेवा की परीक्षा भी पास की। लेकिन जज बनने की जगह उन्होंने सेना में जाना बेहतर समझा और फिर उन्होंने 1965 में चीन के साथ हुए युद्ध में हिस्सा भी लिया। हालांकि 1969 में उन्होंने सेना को अलविदा कहते हुए अपने पुराने पेशे वकालत की तरफ लौट गए और उन्होंने 1970 में बार के अध्यक्ष पद का चुनाव भी लड़ा, जिसमें उन्हें जीत मिली।

हुकुम सिंह ने 1974 में सक्रिय राजनीति में आने का मन बना लिया। इस दौरान उन्होंने कई सार जनआंदोलनों में हिस्सा लेना शुरू कर दिया था। उस वक्त हाल ऐसा हो गया था कि कांग्रेस और लोकदल दोनों ही उन्हें विधानसभा चुनाव लड़ाना चाहते थे लेकिन उन्होंने ग्रैंड ओल्ड पार्टी के साथ जाना बेहतर समझा। उन्हें विधानसभा चुनाव में जीत मिली और वो विधानसभा पहुंचने में कामयाब हुए। हुकुम सिंह कांग्रेस के टिकट पर दो बार विधानसभा पहुंचे। इसके बाद उन्होंने जनता पार्टी की टिकट पर चुनाव लड़ा था जिसमें भी उन्हें कामयाबी मिली लेकिन अंतत: उन्होंने 1995 में भाजपा की सदस्यता ग्रहण की और फिर 4 बार विधायक चुने गए। 

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जब दिए थे नफरत भरे बयान

हुकुम सिंह ने साल 2009 में भाजपा की टिकट पर कैराना से लोकसभा चुनाव लड़ा था लेकिन उन्हें हार का सामना करना पड़ा था। इसके बाद साल 2013 में हुए मुजफ्फरनगर दंगे में हुकुम सिंह ने काफी सुर्खियां बटोरी थीं और फिर साल 2014 के लोकसभा चुनाव में उन्होंने अपनी पूरी ताकत भी झोंक दी। जिसका उन्हें फायदा मिला और वह चुनाव जीत गए। हालांकि हुकुम सिंह केंद्रीय मंत्रिमंडल में अपनी जगह बना पाने में कामयाब नहीं हो पाए थे। अब उनकी विरासत को आगे बढ़ाना का जिम्मा उनकी बेटी मृंगाका सिंह के कंधों पर है।

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