'मोदी मुक्त भारत' का सपना ख्याली पुलाव से कम नहीं, ममता को मजबूती के लिए कांग्रेस के साथ नहीं करनी चाहिए रस्सा-कशी

PM Modi Mamata
प्रतिरूप फोटो

भारतीय राजनीतिज्ञ पश्चिम बंगाल को दो अलग-अलग नजरिए देखते हैं। एक नजरिया कहता है कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का '2 मई ममता गई' वाला दावा धरा-का-धरा रह गया। ममता बनर्जी ने 2021 के विधानसभा चुनाव को रिकॉर्ड मतो से जीत लिया और फिर तीसरा मोर्चा बनाने के लिए बंगाल से बाहर निकलना शुरू कर दिया।

नयी दिल्ली। भारतीय राजनीति में साल 2014 बदलाव की गाथा को सभी के समक्ष रखता है। यह वो साल है जब देश ने 'सिंह इज किंग' को ठुकरा दिया और भ्रष्टाचार के खिलाफ एक नई लड़ाई के लिए 'कांग्रेस मुक्त भारत' का सपना देखना शुरू कर दिया। साल 2014 संयुक्त प्रगतिशील गठबंधन के पतन की शुरुआत के सालों में एक था। साल 2014 में केंद्र में नरेंद्र मोदी के नेतृत्व वाली एनडीए की सरकार बनी और फिर 2019 के लोकसभा चुनाव में पिछली जीत को भी पछाड़ते हुए एनडीए ने नया इतिहास लिखा। लेकिन पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री और तृणमूल कांग्रेस (टीएमसी) प्रमुख ममता बनर्जी ने यूपीए को दरकिनार कर एनडीए को ध्वस्त करने की रणनीति बनाना शुरू कर दिया और विपक्षी दलों को एकजुट करने लगीं। 

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बंगाल में लगा झटका या बढ़ोत्तरी हुई ?

भारतीय राजनीतिज्ञ पश्चिम बंगाल को दो अलग-अलग नजरिए देखते हैं। एक नजरिया कहता है कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का '2 मई ममता गई' वाला दावा धरा-का-धरा रह गया। ममता बनर्जी ने 2021 के विधानसभा चुनाव को रिकॉर्ड मतो से जीत लिया और फिर तीसरा मोर्चा बनाने के लिए बंगाल से बाहर निकलना शुरू कर दिया। दिल्ली की यात्रा के दौरान उन्होंने आते रहने की बात कही और दिल्ली आई भी लेकिन बंगाल चुनाव परिणाम के बाद दूसरी बार दिल्ली आकर ममता बनर्जी ने कांग्रेस को जरा सी भी तवज्जो नहीं दी। जबकि पहली बार 10 जनपथ पहुंच कर कांग्रेस अध्यक्षा सोनिया गांधी से मुलाकात की थी।

दूसरा नजरिया कहता है कि पश्चिम बंगाल में भले ही भाजपा सरकार बना पाने में कामयाब नहीं हो पाई है लेकिन पिछले विधानसभा चुनाव के मुकाबले उसका वोट प्रतिशत बढ़ा है और कांग्रेस-वामदलों का सफाया हुआ है। ऐसे में भाजपा ने 'कांग्रेस मुक्त भारत' के सपने में एक कदम और आगे बढ़ा दिया। 

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चुनावों को लेकर रस्सा-कस्सी तेज

विश्व के सबसे बड़े लोकतंत्र में से एक 'भारत' अधिकतर समय चुनावों में ही रहता है। ऐसे में आगामी विधानसभा चुनावों को लेकर रस्सा-कस्सी तेज हो गई है। जहां उत्तर प्रदेश में योगी आदित्यनाथ को सत्ता से हटाने के लिए समाजवादी पार्टी प्रमुख अखिलेश यादव ने तमाम छोटे दलों को एकजुट करना शुरू कर दिया है। वहीं दूसरी तरफ भाजपा ने पूर्ववर्ती सरकार के दौरान फैले माफियाओं के वर्चस्व की कहानी सभी के सामने रखी है। गोवा में प्रमोद सावंत पिछले चुनाव की तुलना में भाजपा का वोटबैंक बढ़ाने के लिए मुस्लिमों को साधने की रणनीति बना रहे तो कांग्रेस भीतरघात का सामना कर रही है। ममता की पार्टी कांग्रेस के नेताओं को तोड़ने में जुटी हुई है और आम आदमी पार्टी भी गोवा में पैर पसार चुकी है। ऐसे में एक पार्टी को हराने के लिए तीन और पार्टियां एकजुट होने की बजाय आपस में ही लड़-भिड़ रही हैं। पिछले चुनाव में कांग्रेस सबसे बड़ी पार्टी बनकर उभरी थी लेकिन सरकार बना पाने में सफल नहीं हुई थी।

केंद्रीय कृषि कानूनों की वजह से किसानों का विरोध सह रही भाजपा की स्थिति कानून वापसी के बाद सुधरी है और पंजाब चुनाव से पहले अमरिंदर सिंह के साथ हाथ भी मिला लिया है। लेकिन शिरोमणि अकाली दल (शिअद) के साथ भाजपा की बात अभी तक नहीं बन पाई है। लेकिन कांग्रेस की राह भी आसान नहीं होने वाली है क्योंकि अपमानित होकर कांग्रेस को अलविदा कहने वाले अमरिंदर सिंह कांग्रेस के लिए बड़ी चुनौती साबित होने वाले हैं। कुछ ऐसा ही हाल उत्तराखंड और मणिपुर में भी देखने को मिल सकता है। 

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गठबंधन की राजनीति क्या हो पाएगी सफल ?

क्या है यूपीए ? यह बयान खुद ममता बनर्जी ने दिया था। लेकिन दूसरे विपक्षी दलों ने यह स्पष्ट कर दिया था कि कांग्रेस के बिना यूपीए संभव नहीं है। वहीं दूसरी तरफ चुनावी रणनीतिकार प्रशांत किशोर का मानना था कि नेतृत्व बदल सकता है। राजनीतिक गलियारों में चर्चा है कि ममता बनर्जी कांग्रेस के साथ मिलकर अगर आगे बढ़ती हैं तो भाजपा को चुनौती दे सकती हैं और अगर ऐसा नहीं होता है तो भाजपा के खिलाफ वोट तमाम विपक्षी दलों के बीच बट जाएंगे। ऐसे में सत्ताधारी पार्टी को ध्वस्त करने का सपना देखना ख्याली पुलाब से कम नहीं लग रहा है।

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