5:40 मिनट पर होने वाला है बड़ा धमाका! धरती का पहरेदार, भारत का निसार, किस नए मिशन में NASA-ISRO बन गई साझेदार

इसरो आज अमेरिका की अंतरिक्ष एजेंसी नाय के साथ मिलकर तैयार किए गए ऐतिहासिक निसार सैटलाइट का प्रक्षेपण शाम 5:40 पर करेगा। यह मिशन न केवल तकनीकी दृष्टि से बेहद अहम है, -बल्कि भारत की वैश्विक स्पेस इंजीनियरिंग क्षमता को भी प्रदर्शित करेगा। $1.5 बिलियन के साथ यह सबसे महंगा अर्थ ऑब्जर्वेशन सैटलाइट है। इसरो के अनुसार, इस उपग्रह का प्रक्षेपण शाम 5:40 बजे आंध्र प्रदेश के श्रीहरिकोटा स्थित सतीश धवन स्पेस सेंटर से लॉन्च पैड नंबर दो से किया जाएगा।
नासा और इसरो मिलकर स्पेस में इतिहास रचने जा रहे हैं। दुनिया के दो बड़े स्पेस पॉवर एक साथ धरती को समझने आ रहे हैं। आप सोच रहे होंगे कि धरती को तो हम पहले से ही देखते आ रहे हैं तो इसमें नया क्या है? निसार हमारी धरती की सतह में होने वाले छोटे से छोटे बदलाव को भी पकड़ पाएगा। निसार के पास एक कमाल का एक सिंथेटिक अपर्चर रडार है। ये रडार बादलों को चीरता हुआ दिन हो या रात हर मौसम में धरती की हाई रिज्यल्यूशन तस्वीरें ले सकेगा। इसका मतलब ये है कि अब हमें धरती की चाल ढाल का ऐसा एक्स रे मिलेगा जो पहले कभी नहीं दिखा। इसरो आज अमेरिका की अंतरिक्ष एजेंसी नाय के साथ मिलकर तैयार किए गए ऐतिहासिक निसार सैटलाइट का प्रक्षेपण शाम 5:40 पर करेगा। यह मिशन न केवल तकनीकी दृष्टि से बेहद अहम है, -बल्कि भारत की वैश्विक स्पेस इंजीनियरिंग क्षमता को भी प्रदर्शित करेगा। $1.5 बिलियन के साथ यह सबसे महंगा अर्थ ऑब्जर्वेशन सैटलाइट है। इसरो के अनुसार, इस उपग्रह का प्रक्षेपण शाम 5:40 बजे आंध्र प्रदेश के श्रीहरिकोटा स्थित सतीश धवन स्पेस सेंटर से लॉन्च पैड नंबर दो से किया जाएगा।
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निसार क्यों स्पेशल है
इसकी लॉन्चिंग में जीएलएलवी मार्क टू का इस्तेमाल होगा। इस जीएलएलवी का वजन 420 टन है जबकी इसकी लंबाई 51 मीटर है। खास बात ये है कि इसमें देश में बने क्राइजेनिक ईंजन का इस्तेमाल होगा। निसार का वजन 2393 किलोग्राम है। इसमें 12 मीटर का एक खास एंटीन लगा है, जिसे नौ मीटर तक बूम किया जा सकता है। हर 12 दिन में इससे 240 किलोमीटर तक तस्वीरें मिलेंगी। पूरी धरती की तस्वीरें लेने में सक्षम है। ये मिशन पांच साल तक काम करेगा। खास बात ये है कि निसार से मिला डेटा सबके लिए मुफ्त और ओपन होगा। निसार करीब 13 हजार करोड़ रुपए की लागत से तैयार हुआ है।
भारत के निसार को धरती का पहरेदार क्यों कहा जा रहा है?
निसार कई अन्य कारणों से भी विशेष है। एक बार स्थापित होने के बाद, यह अंतरिक्ष में सबसे शक्तिशाली पृथ्वी अवलोकन उपग्रह होगा, जो डेटा और उच्च-रिज़ॉल्यूशन वाली तस्वीरें उत्पन्न करेगा जिससे विभिन्न क्षेत्रों में अनुसंधान में मदद मिलेगी। यह पहला उपग्रह है जिस पर दो सिंथेटिक अपर्चर रडार (SAR) लगे हैं, जो अलग-अलग आवृत्ति बैंड में काम करते हैं, एक ऐसी तकनीकी उपलब्धि जिसने इसे बेहद शक्तिशाली और उपयोगी बना दिया है। यह अब तक का सबसे महंगा उपग्रह भी है।
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दुनिया की नजर भारत और अमेरिका के ज्वाइंट मिशन पर क्यों?
इससे लागत भी काफ़ी बढ़ गई। यही वजह है कि दोनों प्रमुख अंतरिक्ष एजेंसियों के बीच सहयोग सार्थक रहा। एल-बैंड एसएआर, 12-मीटर एंटीना, और जीपीएस नियंत्रण सहित कई अन्य घटक और प्रणालियाँ नासा से आई हैं, जबकि इसरो ने एस-बैंड एसएआर, रॉकेट, अंतरिक्ष यान और उसकी उप-प्रणालियाँ प्रदान की हैं, और वे प्रक्षेपण को अंजाम देंगे। नासा और इसरो दोनों अपने-अपने ग्राउंड स्टेशनों से मिशन संचालन का संचालन करेंगे। कुल निवेश की बात करें तो, नासा ने लगभग 1.16 बिलियन डॉलर का योगदान दिया है, जबकि इसरो ने 90 मिलियन डॉलर का योगदान दिया है। निसार जैसे मिशन की अवधारणा 2007 में तब सामने आई जब एक अमेरिकी समिति ने भूमि, बर्फ या वनस्पति आवरण में हो रहे परिवर्तनों का अध्ययन करने के लिए एक अंतरिक्ष मिशन की सिफ़ारिश की। इस मिशन का उद्देश्य भूकंप, भूस्खलन और ज्वालामुखियों के अध्ययन को सुगम बनाने के लिए सतही विरूपण की निगरानी करना था, साथ ही ऐसे अवलोकन करना था जो जलवायु परिवर्तन, वैश्विक कार्बन चक्र, वनस्पति, जैवभार और हिम आवरण में परिवर्तन के अध्ययन में सहायक हों। नासा ने 2008 में इस परियोजना पर काम शुरू किया। इसरो चार साल बाद इस परियोजना में शामिल हुआ, जब उसने ऐसे वैज्ञानिक अध्ययनों और अनुप्रयोगों की पहचान की जो इस मिशन के प्राथमिक उद्देश्य के पूरक थे। नासा और इसरो पहले भी सहयोग कर चुके थे—इसरो के चंद्रयान-1 पर नासा का पेलोड था—लेकिन उन्होंने कभी भी संयुक्त रूप से किसी अंतरिक्ष मिशन का विकास या क्रियान्वयन नहीं किया। दोनों एजेंसियों ने 2014 में निसार पर एक समझौते पर हस्ताक्षर किए थे, और तब से इस मिशन के विकास में लगे हुए हैं।
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