मोदी और शाह ने CAA लाकर गांधीजी का वादा पूरा कर दियाः आरिफ मोहम्मद खान

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[email protected] । Jan 13 2020 6:35PM

केरल के राज्यपाल आरिफ मोहम्मद खान ने यह स्वीकार किया कि नागरिकता संशोधन कानून (सीएए) को बेहतर तरीके से लोगों के सामने रखा जा सकता था। उन्होंने कहा- ''मैं मानता हूं हमारी कमी है, हमारी कमी है कि हम इस बात को ठीक से बता नहीं सके।''

प्रेस विज्ञप्ति। केरल के राज्यपाल आरिफ मोहम्मद खान ने नागरिकता संशोधन कानून की पुरजोर वकालत करते हुए कहा कि यह कानून पाकिस्तान में उत्पीड़न का सामना करने वाले अल्पसंख्यकों को नागरिकता देने के लिए महात्मा गांधी द्वारा किए गए 'वादों' को पूरा करता है।

इंडिया टीवी पर प्रसारित होने वाले शो आप की अदालत में रजत शर्मा के सवालों का जवाब देते हुए खान ने कहा, 'महात्मा गांधी ने 7 जुलाई, 1947 को लिखा था कि यदि हिंदू और सिख पाकिस्तान में नहीं रहना चाहते तो उन्हें पूरा हक है कि वे आकर भारत में रहें। यह भारत सरकार का कर्तव्य है कि वह उन्हें रोजगार, नागरिकता और अन्य सभी सुविधाएं मुहैया कराए जिससे वे भारत में एक अच्छी जिंदगी जी सकें।'

केरल के राज्यपाल ने कहा: 'सीएए केवल कानूनी शक्ल है उस वादे की, जो वादा महात्मा गांधी और दूसरे लीडरों ने पाकिस्तान के उन लोगों के साथ किया था जिन्होंने हमारे साथ मिलके आजादी की लडाई लड़ी थी, लेकिन वो हमारे उस फैसले के शिकार बन गए जिसमें हमने पाकिस्तान और देश के बंटवारे को स्वीकार कर लिया। उनसे किया हुआ वादा है जिसे हमने कानूनी शक्ल दिया है। सीएए को एनआरसी या एनपीआर के साथ मिलाकर नहीं देखा जाना चाहिए।'

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आरिफ मोहम्मद खान कहा कि 1950 में जब नेहरू-लियाकत पैक्ट हुआ तब दोनों देशों ने अपने-अपने यहां अल्पसंख्यकों को पूरी सुरक्षा देने का फैसला किया था। उस वक्त वेस्ट (पश्चिमी) पाकिस्तान में गैर-मुस्लिम आबादी 17 प्रतिशत थी, बांग्लादेश में गैर-मुस्लिम आबादी 30 प्रतिशत थी। वहीं हिन्दुस्तान में 4 करोड़ मुसलमान थे जबकि आज 20 करोड़ से ज्यादा मुसलमान भारत में हैं। 

आरिफ मोहम्मद खान ने कहा: ‘तो हमने अपनी जिम्मेदारी अदा की है या नहीं की ? ..और पाकिस्तान में क्या हो रहा है ? 2019 की रिपोर्ट कह रही है कि हजार से ज्यादा लड़कियों का हर साल अपहरण हो रहा है। पाकिस्तान के इस्लामाबाद हाईकोर्ट के जज पूछ रहे हैं कि आखिरकार सिर्फ यंग लड़कियों का ही जबरन इस्लाम में कन्वर्जन क्यों होता है ?’

केरल के राज्यपाल आरिफ मोहम्मद खान ने वर्ष 2003 में गृह मामलों पर संसदीय समिति की 107वीं रिपोर्ट का हवाला दिया जिसमें पाकिस्तानी और बांग्लादेशी 'अल्पसंख्यक शरणार्थियों' को भारत की नगारिकता देने की सिफारिश की गई थी। इस समिति ने इन अल्पसंख्यक शरणार्थियों को राष्ट्रीय पहचान पत्र जारी करने की भी सिफारिश की थी। खान ने कहा- '2003 में ये सिफारिश कर रहे थे कि नॉन मुस्लिम्स जो बांग्लादेश से आए हुए हैं उनको सिटिजनशिप दी जानी चाहिए तब ये कहां थे ?' उन्होंने कहा- 'प्रणब मुखर्जी इस समिति के चेयरमैन थे और इसमें कपिल सिब्बल, हंसराज भारद्वाज, अंबिका सोनी और मोतीलाल वोरा जैसे सदस्य थे।'

केरल के राज्यपाल ने यह स्वीकार किया कि नागरिकता संशोधन कानून (सीएए) को बेहतर तरीके से लोगों के सामने रखा जा सकता था। उन्होंने कहा- 'मैं मानता हूं हमारी कमी है, हमारी कमी है कि हम इस बात को ठीक से बता नहीं सके।'

वहीं केरल के राज्यपाल ने राष्ट्रीय नागरिकता रजिस्टर (एनआरसी) को लागू करने की वकालत करते हुए कहा- 'दुनिया के अर्थशास्त्री भविष्यवाणी कर रहे हैं कि भारत अगले 10-15 साल में एक बड़ी आर्थिक शक्ति के रूप में उभर रहा है। क्या ऐसी स्थिति में हमारे पास सिटिजनशिप रजिस्टर नहीं होना चाहिए? मुझे बताएं, कौन-सा दुनिया में ऐसा देश है जिसके पास अपने नागरिकों की गिनती नहीं है? "

एनआरसी पर मुस्लिम समुदाय के बीच संदेह को दूर करते हुए, आरिफ मोहम्मद खान ने बताया कि 1985 असम समझौते (राजीव गांधी के शासन के दौरान हस्ताक्षरित) में 1971 की वोटर लिस्ट को नागरिकता का आधार माना गया है। उन्होंने कहा -'हमारे यहां लोगों के बाप-दादा का वोटर लिस्ट में नाम नहीं है क्या? मुसलमानों के बीच भ्रामक प्रचार-प्रसार किया जा रहा है। किसी की नागरिकता नहीं जाने वाली है।'

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केरल के राज्यपाल ने कहा कि उत्पीड़न के कारण भारत में शरण लेने वालों और बेहतर आय की उम्मीद में अवैध रूप से भारत में प्रवेश करने वालों के बीच अंतर है।

गृह मंत्री अमित शाह द्वारा घुसपैठियों को 'दीमक' कहे जाने के सवाल पर खान ने कहा- गृह मंत्री के बयान के बारे में गलतफहमी फैलायी जा रही है। वैसे वो सक्षम हैं अपने आप को डिफेंड करने के लिए। ये शब्द उन्होंने उन लोगों के लिए कहा है जो इकोनॉमिक अपॉर्च्यूनिटी या बेहतर रोजगार के लिए गैरकानूनी तरीके से देश में आए हैं।'

28 दिसंबर को केरल के कन्नूर में भारतीय इतिहास कांग्रेस की घटना जिसमें वह प्रसिद्ध इतिहासकार इरफान हबीब से घिर गए थे, गवर्नर ने कहा: 'मैंने डेढ़ घंटे तक इन लोगों को बैठकर सुना, जिसमें बहुत ही भद्दे लफ्जों में सरकार की नीयत पर हमला किया गया। कश्मीर पर सरकार की आलोचना की, सीएए को कहा कि संविधान की आत्मा की हत्या हुई है,..वगैरह..वगैरह। मैं खामोश बैठा सुनता रहा। फिर मैं बोलने के लिए खड़ा हुआ। मैंने कहा, मेरा निश्चित मत है कि इस मामले में जो राय देने जा रहा हूं वो सही है, लेकिन मैं इससे अनभिज्ञ नहीं हूं कि मेरी राय गलत भी हो सकती है, मेरा निश्चित मत है कि आपने जो आलोचना की है वो गलत है, लेकिन मैं इससे अनभिज्ञ नहीं हूं कि आपने जो कुछ कहा है वो सही भी हो सकता है। फिर मैंने मौलाना आजाद, महात्मा गांधी, नेहरु को कोट किया और सीएए पर राय देने लगा। इस आदमी (इरफान हबीब) ने मुझे रोकने की कोशिश की।'

जब रजत शर्मा ने कहा, ‘वे आपको नाथूराम गोडसे को कोट करने के लिए बोल रहे थे’, खान ने कहा- 'वो तय करेंगे कि मैं किसको कोट करूं ?'

'मैंने सात मिनट ही बोला कि उन्होंने मेरे उपर हमला करने का प्रय़ास किया जिसे मेरे ADC ने रोक दिया। ADC की कमीज उन्होंने खींच दी, उसका ceremonial badge गिर गया, बटन खुल गए। वाइस चांसलर और कुछ सुरक्षाकर्मियों ने भी खड़े होकर उन्हें रोक दिया। आप वीडिय़ो देख लीजिए मुझे कुछ कहने की जरूरत नहीं है। मैं AMU यूनियन का अध्यक्ष उनकी (हबीब) मुखालफत के बावजूद हुआ था। मेरी उनसे कोई व्यक्तिगत प्रतिद्वंद्विता नहीं है, वैचारिक तौर पर वे मेरे मुखालिफ हैं।

आरिफ मोहम्मद खान ने कहा, 'इस बीच नीचे जो अलीगढ़ (AMU) वाले बैठे थे, उन्होंने गालियों का इस्तेमाल किया। तब मैंने कहा कि आपका यही तौर तरीका है जिसकी वजह से मौलाना आजाद 1949 में ये कहने पर मजबूर हुए थे कि देश का विभाजन एक सैलाब की सूरत में आया और वो अपने साथ गंदगी बहा ले गया (पाकिस्तान में)। लेकिन तुम्हारा व्यवहार देख के मुझे लगता है कि कुछ गड्ढों में वो पानी रुका रह गया है और उसमें से बदबू आ रही है। ये मौलाना आजाद ने 1949 में अलीगढ़ में मुस्लिम लीग के यूथ विंग के लिए कहा था जिन्होंने एक स्टेशन पर प्लेटफार्म से गंदगी उठा कर ट्रेन में मौलाना की दाढ़ी में मला था। अब वही मुस्लिम लीगी देश में कम्यूनिस्ट बन गए और इनकी अलगाववादी सोच वही ज्यों की त्यों बनी रही।'

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