चंद्रमा पर तिरंगा लहराने वाले ISRO के वैज्ञानिक आखिर कितना धन कमाते हैं?

ISRO scientists
ANI

जहां तक भारतीय अंतरिक्ष एजेंसी के वैज्ञानिकों की पगार की बात है तो आपको बता दें कि यह विकासित देशों के वैज्ञानिकों के वेतन का पांचवां हिस्सा है और शायद यही कारण है कि वे अंतरिक्ष अन्वेषण के लिए किफायती तरीके तलाश सके।

भारत के चंद्रयान-3 मिशन की सफलता से हर भारतीय प्रसन्न है। सभी के मन में यह जानने की इच्छा है कि इस समय चंद्रमा पर हमारा चंद्रयान क्या कर रहा है साथ ही सभी यह भी जानना चाहते हैं कि इस मिशन को कामयाब बनाने वाले वैज्ञानिकों या इसरो के अन्य वैज्ञानिकों को आखिर कितनी तनख्वाह मिलती होगी? इस सवाल का जवाब भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (इसरो) के पूर्व प्रमुख जी माधवन नायर ने दिया है जिसे सुनकर निश्चित ही आप सभी चौंक जाएंगे। चौंकना स्वाभाविक भी है क्योंकि जब छोटी से छोटी उपलब्धि हासिल करने पर लोग बड़े से बड़ा पारिश्रमिक या ईनाम चाहते हैं तो वहीं दूसरी ओर हमारे वैज्ञानिकों को धन की कोई चाह ही नहीं होती। वैज्ञानिक इतने साधारण तरीके से रहते हैं कि आप कल्पना भी नहीं कर सकते। एक ओर जहां हॉलीवुड फिल्मों का बजट 1000 करोड़ रुपए और बॉलीवुड फिल्मों का बजट 500-600 करोड़ रुपए से ज्यादा का होने लगा है तो वहीं हमारे वैज्ञानिकों ने मात्र 615 करोड़ रुपए में चंद्रयान को चांद पर पहुँचा दिया है।

जहां तक भारतीय अंतरिक्ष एजेंसी के वैज्ञानिकों की पगार की बात है तो आपको बता दें कि यह विकासित देशों के वैज्ञानिकों के वेतन का पांचवां हिस्सा है और शायद यही कारण है कि वे अंतरिक्ष अन्वेषण के लिए किफायती तरीके तलाश सके। इसरो के पूर्व प्रमुख जी माधवन नायर ने कहा है कि अन्य देशों की तुलना में बेहद कम कीमत वाले साधनों के जरिए अंतरिक्ष में खोज का भारतीय अंतरिक्ष एजेंसी का इतिहास है। उन्होंने कहा कि इसरो में वैज्ञानिकों, तकनीशियनों और अन्य कर्मियों को जो वेतन भत्ते मिलते हैं वे दुनिया भर में इस वर्ग के लोगों को मिलने वाले वेतन भत्तों का पांचवां हिस्सा है। उन्होंने कहा कि इसका एक लाभ भी है। उन्होंने कहा कि इसरो के वैज्ञानिकों में कोई भी लखपति नहीं है और वे बेहद सामान्य जीवन जीते हैं। नायर ने कहा, ''हकीकत यह है कि वे धन की कोई परवाह भी नहीं करते, उनमें अपने मिशन को लेकर जुनून और प्रतिबद्धता होती है। इस तरह हम ऊंचा मुकाम हासिल करते हैं।’’

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उन्होंने कहा कि इसरो के वैज्ञानिक बेहतरीन योजना बना कर और दीर्घ कालिक दृष्टिकोण के जरिए ये उपलब्धि हासिल कर सके। इसरो के पूर्व प्रमुख जी माधवन नायर के अनुसार, ''हम एक-एक कदम से सीखते हैं। जो हमने अतीत में सीखा है, हम अगले मिशन में उसका इस्तेमाल करते हैं। हमने करीब 30 वर्ष पहले ध्रुवीय उपग्रह प्रक्षेपण यान के लिए जो इंजन बनाया था उसी का इस्तेमाल भूस्थैतिक उपग्रह प्रक्षेपण यान में भी किया जाता है।’’ उन्होंने कहा कि भारत अपने अंतरिक्ष अभियानों के लिए घरेलू तकनीक का उपयोग करता है और इससे उन्हें लागत को काफी कम करने में मदद मिली है। भारत के अंतरिक्ष मिशन की लागत अन्य देशों के अंतरिक्ष अभियानों की तुलना में 50 से 60 प्रतिशत कम है। जी माधवन नायर ने कहा कि हमने अच्छी शुरुआत की है और बड़ी उपलब्धि हासिल की है। पूर्व इसरो प्रमुख माधवन नायर ने कहा कि देश के पास पहले से ही यूरोप और अमेरिका के साथ कई वाणिज्यिक अनुबंध हैं और अब चंद्रयान-3 की सफलता के साथ ये बढ़ेंगे।

दूसरी ओर, इसरो के वर्तमान प्रमुख एस. सोमनाथ की बात करें तो वह भी बेहद सरल और सहज हैं। एक छोटी-सी उपलब्धि पर भी कोई अधिकारी या व्यक्ति जहां अहंकार प्रदर्शित करने लगता है वहीं सरल स्वभाव के धनी सोमनाथ इस सफलता का श्रेय इसरो नेतृत्व और वैज्ञानिकों की पीढ़ियों की मेहनत को दे रहे हैं। चंद्रयान-3 की सफलता के बाद इसरो के अध्यक्ष एस. सोमनाथ ने कहा कि चंद्रयान-3 की सफलता इसरो नेतृत्व और वैज्ञानिकों की पीढ़ियों की मेहनत का नतीजा है। उन्होंने कहा कि यह सफलता ‘बहुत बड़ी’ और ‘प्रोत्साहित करने वाली’ है। सोमनाथ ने मिशन की सफलता के लिए प्रार्थना करने वाले सभी लोगों का और इसरो के पूर्व प्रमुख एएस किरन कुमार समेत अन्य वैज्ञानिकों का भी आभार जताया। सोमनाथ ने कहा कि चंद्रयान-3 की सफलता का जश्न बनाने के साथ चंद्रयान-1 और चंद्रयान-2 बनाने वाली पूरी टीम के योगदान को भी याद किया जाना चाहिए और धन्यवाद ज्ञापित करना चाहिए।

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