दलितों के खिलाफ बढ़ रहे अपराध, हितों की रक्षा करने वाले पद खाली

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राष्ट्रीय अनुसूचित जाति आयोग के दफ्तर में शिकायती खतों के अंबार लग चुके हैं। लेकिन 31 मई से अध्यक्ष, उपाध्यक्ष और तीन सदस्यों के पद खाली हैं। दलितों के अधिकारों की बात करने वाली सरकार अभी तक इन पदों को भरने में नाकाम रही है।

नयी दिल्ली। हाथरस सामूहिक दुष्कर्म मामले को लेकर देशभर में उबाल है और राजनीतिक पार्टियां भी पीड़िता को न्याय दिलाने की बात करते हुए राजनीति करने में जुटी हुई हैं। दलितों के खिलाफ बढ़ते अत्याचार की खबरें रोजाना पढ़ने को मिलती हैं लेकिन गुहार लगाने वाले स्थान में मुखिया ही नहीं है। हम बात कर रहे हैं राष्ट्रीय अनुसूचित जाति आयोग (एनसीएससी) की। 

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राष्ट्रीय अनुसूचित जाति आयोग के दफ्तर में शिकायती खतों के अंबार लग चुके हैं। लेकिन 31 मई से अध्यक्ष, उपाध्यक्ष और तीन सदस्यों के पद खाली हैं। चार महीने का समय बीत चुका है और दलितों के अधिकारों की बात करने वाली सरकार अभी तक इन पदों को भरने में नाकाम रही है। वहीं, इसके पीछे कोरोना वायरस महामारी को जिम्मेदार ठहराया जा रहा है।

राष्ट्रीय अनुसूचित जाति आयोग के अध्यक्ष, उपाध्यक्ष और सदस्यों की नियुक्ति राष्ट्रपति द्वारा की जाती है और इनका कार्यकाल तीन साल का होता है। बता दें कि अध्यक्ष पद के लिए केंद्रीय मंत्री, उपध्याक्ष के लिए राज्य मंत्री तबके के लोगों को नियुक्त किया जाता है और यह एक मात्र आयोग है जिसके सदस्यों के पास सिविल जज की ताकत होती है। 

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पद खाली होने से पहले अध्यक्ष भाजपा सांसद रामशंकर कठेरिया, उपाध्यक्ष एल मुरूगन और के रामुलु, योगेंद्र पासवान और स्वराज विदवान सदस्य थे। खाली पदों को कब भरा जाएगा इस संबंध में केंद्रीय सामाजिक न्याय एवं अधिकारिता मंत्रालय से अभी तक कोई संकेत नहीं मिले हैं।

राष्ट्रीय अनुसूचित जाति आयोग में अध्यक्ष, उपाध्यक्ष और सदस्यों का पद खाली होने का मतलब है कि इसे नौकरशाही द्वारा चलाया जा रहा है। हालांकि, सूत्रों से मिली जानकारी के मुताबिक पैनल मुख्यालय और लखनऊ दफ्तर ने दलित लड़की के साथ हुए सामूहिक बलात्कार मामले में हाथरस जिला प्रशासन और प्रदेश की योगी आदित्यनाथ सरकार से स्टेटस रिपोर्ट मांगने के लिए नोटिस जारी किया है। 

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वहीं, नेशनल क्राइम रिकॉर्ड ब्यूरो का डेटा बताता है कि साल 2019 में देश के 9 राज्यों में दलितों के साथ 84 फीसदी अपराध हुए हैं। इन राज्यों में अनुसूचित जाति की कुल आबादी के 54 फीसदी लोग रहते हैं। हालांकि, दलितों के खिलाफ अपराध पर सजा दिलाने के मामले में उत्तर प्रदेश टॉप पर है जबकि मध्य प्रदेश को दूसरा स्थान प्राप्त हुआ है।

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