India-Australia Defence Agreement से शुरू हुआ नया रक्षा अध्याय, अब सहयोग केवल कूटनीति तक नहीं, बल्कि ऑपरेशन स्तर तक होगा

Rajnath Singh Australia Visit
ANI

परस्पर पनडुब्बी बचाव सहयोग करार (Mutual Submarine Rescue Support Agreement)— इस करार से दोनों देशों की नौसेनाओं को आपात स्थिति में पनडुब्बी बचाव के लिए तकनीकी और मानवीय सहायता उपलब्ध कराने की सुविधा होगी।

ऑस्ट्रेलिया की राजधानी कैनबरा में भारत के रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह और ऑस्ट्रेलियाई उपप्रधानमंत्री व रक्षा मंत्री रिचर्ड मार्ल्स के बीच हुई ऐतिहासिक बैठक ने दोनों देशों के द्विपक्षीय रक्षा सहयोग को एक नए युग में प्रवेश करा दिया है। बारह वर्षों बाद किसी भारतीय रक्षा मंत्री की यह पहली आधिकारिक यात्रा थी, जिसने भारत–ऑस्ट्रेलिया के बीच न केवल रक्षा उद्योग सहयोग बल्कि सामरिक विश्वास की नई बुनियाद रखी है।

इस दौरे के दौरान दोनों देशों के बीच कई महत्वपूर्ण समझौते और घोषणाएँ हुईं, जिनमें प्रमुख बिंदु इस प्रकार हैं—

परस्पर पनडुब्बी बचाव सहयोग करार (Mutual Submarine Rescue Support Agreement)— इस करार से दोनों देशों की नौसेनाओं को आपात स्थिति में पनडुब्बी बचाव के लिए तकनीकी और मानवीय सहायता उपलब्ध कराने की सुविधा होगी। यह सहयोग हिंद महासागर क्षेत्र में दोनों देशों की परिचालनिक विश्वसनीयता को बढ़ाएगा।

वायु-से-वायु ईंधन पुनर्भरण समझौते को लागू करने की दिशा में प्रगति—  यह व्यवस्था दोनों वायुसेनाओं की पारस्परिक संचालन क्षमता को नई ऊंचाई देगी।

संयुक्त स्टाफ वार्ता (Joint Staff Talks) की शुरुआत— थल, जल, वायु और अंतरिक्ष के सभी परिचालन क्षेत्रों में समन्वय को बढ़ाने के लिए यह एक संस्थागत तंत्र तैयार करेगा।

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प्रशिक्षण सहयोग का विस्तार— भारतीय अधिकारियों को 2026 से ऑस्ट्रेलियाई डिफेंस कॉलेज में प्रशिक्षण दिया जाएगा और 2027 में पहली बार एक भारतीय अधिकारी ऑस्ट्रेलियाई डिफेंस फोर्स एकेडमी में स्थायी पद पर तैनात होगा।

आधुनिक रक्षा तकनीकों पर सहयोग— दोनों देशों ने मानवरहित विमान प्रणाली (UAS), काउंटर-UAS, एकीकृत वायु एवं मिसाइल रक्षा, सुरक्षित संचार प्रणाली आदि में साझा अनुसंधान और उत्पादन की सहमति दी।

नौसैनिक रखरखाव में भारत की भूमिका— भारत ने ऑस्ट्रेलियाई नौसेना के जहाजों की मरम्मत और परिचालन कार्य (MRO) भारतीय शिपयार्डों में करने का प्रस्ताव दिया है। इससे भारत के रक्षा विनिर्माण उद्योग को अंतरराष्ट्रीय स्तर पर बड़ी बढ़त मिलेगी।

संयुक्त समुद्री सुरक्षा सहयोग रोडमैप— हिंद-प्रशांत में सामूहिक निगरानी, समुद्री मार्गों की सुरक्षा और अवैध गतिविधियों की रोकथाम के लिए विस्तृत कार्ययोजना तैयार की गई है।

संयुक्त समुद्री गश्त और पनडुब्बी-रोधी अभ्यास— दोनों नौसेनाएँ हिंद महासागर क्षेत्र में संयुक्त गश्त और ASW (Anti-Submarine Warfare) अभ्यास जारी रखेंगी।

एक-दूसरे के क्षेत्रों से समुद्री विमान संचालन— दोनों देशों ने एक-दूसरे के एयरबेस से समुद्री विमान तैनाती की अनुमति देने पर सहमति जताई है, जो सामरिक विश्वास का स्पष्ट संकेत है।

क्वॉड सहयोग की पुनर्पुष्टि— दोनों पक्षों ने क्वॉड समूह (भारत, ऑस्ट्रेलिया, जापान, अमेरिका) के तहत समन्वय को और मजबूत करने की घोषणा की तथा 2025 में ‘मालाबार अभ्यास’ के दौरान दूसरी क्वॉड समुद्री जागरूकता गतिविधि आयोजित करने का निर्णय लिया।

वार्षिक रक्षा संवाद का विस्तार— यह तय हुआ कि रिचर्ड मार्ल्स 2026 में भारत की यात्रा करेंगे ताकि वार्षिक रक्षा मंत्रिस्तरीय संवाद को और आगे बढ़ाया जा सके।

देखा जाये तो इन करारों का सामरिक प्रभाव बहुआयामी है। सबसे पहले, यह भारत-ऑस्ट्रेलिया संबंधों को ‘कॉम्प्रिहेन्सिव स्ट्रेटेजिक पार्टनरशिप’ के स्तर से आगे बढ़ाकर एक ‘ऑपरेशनल पार्टनरशिप’ की दिशा में ले जाता है। अब दोनों देशों की सेनाएँ केवल संयुक्त अभ्यास तक सीमित नहीं रहेंगी, बल्कि वास्तविक परिचालन स्तर पर भी एक-दूसरे की सहायता करने में सक्षम होंगी।

साथ ही हिंद-प्रशांत क्षेत्र में चीन के बढ़ते प्रभाव और आक्रामक रुख के बीच यह साझेदारी संतुलन के नए समीकरण तैयार करती है। भारत और ऑस्ट्रेलिया, दोनों ही लोकतांत्रिक, समुद्री और संसाधन-संपन्न राष्ट्र हैं, जिनकी सुरक्षा चिंताएँ समान हैं, विशेष रूप से दक्षिण चीन सागर, अंडमान सागर और दक्षिण-पश्चिमी प्रशांत के क्षेत्रों में। यह गठजोड़ उस "रूल-बेस्ड ऑर्डर" की रक्षा के लिए निर्णायक कदम है, जिसकी पैरवी भारत लंबे समय से करता रहा है।

इसके साथ ही वैश्विक परिप्रेक्ष्य में यह करार केवल द्विपक्षीय संबंधों का विस्तार नहीं है, बल्कि क्वॉड और इंडो-पैसिफिक रणनीति की ठोस अभिव्यक्ति भी है। इससे अमेरिका, जापान और अन्य लोकतांत्रिक देशों के लिए यह संकेत गया है कि हिंद-प्रशांत में सुरक्षा सहयोग का नया केंद्र तेजी से बन रहा है।

दूसरी ओर, यह करार चीन को भी यह स्पष्ट संदेश देता है कि भारत और ऑस्ट्रेलिया अब सामरिक दृष्टि से स्वतंत्र, परंतु परस्पर सहयोगी रणनीति अपना रहे हैं। इससे क्षेत्रीय शक्ति-संतुलन में परिवर्तन संभावित है।

देखा जाये तो रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह की यह यात्रा भारत की रक्षा कूटनीति का एक नया अध्याय है। "मेक इन इंडिया" और "डिफेंस इंडस्ट्रियल कोऑपरेशन" के माध्यम से भारत अब केवल रक्षा उपकरणों का उपभोक्ता नहीं, बल्कि निर्माता और साझेदार के रूप में उभर रहा है।

बहरहाल, ऑस्ट्रेलिया के साथ यह करार न केवल हिंद-प्रशांत की सुरक्षा को सुदृढ़ करेगा, बल्कि भारत की वैश्विक रणनीतिक स्थिति को भी नई प्रतिष्ठा प्रदान करेगा। आने वाले वर्षों में यदि यह सहयोग रक्षा उत्पादन, प्रौद्योगिकी हस्तांतरण और सामुद्रिक निगरानी के क्षेत्र में वास्तविक रूप लेता है, तो यह भारत को न केवल क्षेत्रीय शक्ति बल्कि एक वैश्विक सुरक्षा प्रदाता के रूप में स्थापित कर सकता है।

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