Prabhasakshi NewsRoom: सीमापार आतंक पर फिर प्रहार, Myanmar में Ulfa-I के ठिकानों पर India की Surgical Strike, 3 बड़े उग्रवादी कमांडर ढेर

India Myanmar Border Strike
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हम आपको बता दें कि उल्फा-आई के दावे के अनुसार भारतीय सेना ने इजरायली और फ्रांसीसी तकनीक वाले ड्रोन से सटीक हमला कर उनके सीनियर उग्रवादी नयन आसम, गणेश आसम और प्रदीप आसम को मार गिराया है।

पूर्वोत्तर भारत में दशकों से सक्रिय उग्रवादी संगठन उल्फा-आई (ULFA-I) के खिलाफ भारत ने एक बार फिर सख्त सैन्य कार्रवाई की है। हम आपको बता दें कि म्यांमार के सगाईंग क्षेत्र में स्थित उल्फा-आई के ठिकानों पर भारतीय सेना द्वारा सर्जिकल स्ट्राइक की रिपोर्टें हैं। हालांकि आधिकारिक तौर पर इस ऑपरेशन को लेकर सेना ने कुछ भी स्वीकार नहीं किया है, लेकिन यह साफ है कि भारत अब सीमा पार बैठकर पूर्वोत्तर में अस्थिरता फैलाने वाले गुटों को बख्शने के मूड में नहीं है।

हम आपको बता दें कि भारत और म्यांमार की सीमा बेहद जटिल और पहाड़ी है, जिससे उग्रवादी संगठनों को आसानी से छुपने और अपने अड्डे संचालित करने का मौका मिल जाता है। उल्फा-आई, एनएससीएन, पीएलए, केवाईकेएल, पीआरईपीएके जैसे संगठन वर्षों से म्यांमार की सीमा में अपने कैंप चलाते रहे हैं और भारत में घुसपैठ, हथियारों की तस्करी और सुरक्षाबलों पर हमलों की साजिश रचते रहे हैं। बताया जा रहा है कि भारतीय सुरक्षा एजेंसियां लंबे समय से इस गतिविधि पर गुप्त नजर रखे हुए थीं। बताया जा रहा है कि म्यांमार में चल रहे गृहयुद्ध और वहां की सेना की ढीली पकड़ का फायदा उठाकर इन गुटों ने वहां अपने अड्डे मजबूत कर लिए थे। लेकिन अब भारत ने स्पष्ट कर दिया है कि चाहे सीमा के उस पार हो या इस पार, राष्ट्रीय सुरक्षा के खिलाफ काम करने वाले सुरक्षित नहीं रह सकते।

हम आपको बता दें कि उल्फा-आई के दावे के अनुसार भारतीय सेना ने इजरायली और फ्रांसीसी तकनीक वाले ड्रोन से सटीक हमला कर उनके सीनियर उग्रवादी नयन आसम, गणेश आसम और प्रदीप आसम को मार गिराया है। यह हमला देर रात 2 से 4 बजे के बीच तीन चरणों में हुआ। पहले हमले में नयन आसम मारा गया और उसके अंतिम संस्कार के दौरान हुए दूसरे हमले में अन्य दो उग्रवादी मारे गए। इस हमले में लगभग 19 अन्य सदस्य घायल हुए। देखा जाये तो यह घटना इस बात का प्रमाण है कि भारत अब तकनीकी रूप से अत्याधुनिक तरीकों से आतंकवाद और उग्रवाद के ठिकानों को नष्ट कर रहा है, ताकि मानवीय नुकसान कम हो और दुश्मन को सटीक निशाना बनाया जा सके।

हम आपको बता दें कि म्यांमार में 1980 के दशक से ही पूर्वोत्तर भारत के उग्रवादी संगठनों के कैंप मौजूद हैं। वे भारत-म्यांमार के खुले और कठिन सीमा क्षेत्र का लाभ उठाकर लंबे समय से अपनी गतिविधियां संचालित कर रहे हैं। उल्फा-आई के मुख्य ठिकाने म्यांमार के सगाईंग के घने जंगलों में बताए जाते हैं। इनके अतिरिक्त इनके कैंप वकथम बस्ती, होयत बस्ती और हाकियोट में भी फैले हुए हैं, जो अरुणाचल के लोंगडिंग जिले के करीब हैं। कुछ कैंप पंगमी नागा आबादी वाले क्षेत्र और चीन-म्यांमार सीमा के आसपास भी हैं। इसी क्षेत्र में मणिपुर के उग्रवादी संगठन PLA, KYKL, PREPAK और RPF (जो PLA का राजनीतिक संगठन है) के कैंप भी मौजूद हैं। इसके अलावा, NSCN-K(YA) जैसे नागा गुट भी इसी इलाके में सक्रिय हैं और इनके कैंप अक्सर 6-10 किलोमीटर के भीतर ही उल्फा-आई के कैंप के आसपास होते हैं।

हम आपको बता दें कि म्यांमार के सैन्य और जातीय गुट अक्सर इन उग्रवादी संगठनों को समर्थन या संरक्षण देते रहे हैं। बदलते हालात के अनुसार इन कैंपों की स्थान बदलने की रणनीति अपनाई जाती है ताकि भारतीय सीमा से सैन्य कार्रवाई की स्थिति में बचा जा सके।

हम आपको यह भी बता दें कि असम के मुख्यमंत्री हिमंता बिस्वा सरमा, जिन्होंने उल्फा-आई को कई बार शांति वार्ता का प्रस्ताव दिया था, उन्होंने भी इस कार्रवाई पर अभी यही कहा है कि इस संबंध में अभी तक स्पष्ट सूचना नहीं है। वहीं भारतीय सेना और रक्षा मंत्रालय ने आधिकारिक रूप से किसी ऑपरेशन को स्वीकार नहीं किया है। यह सरकार की रणनीतिक चुप्पी का हिस्सा हो सकता है ताकि अंतरराष्ट्रीय स्तर पर म्यांमार की संवेदनशील स्थिति को लेकर कोई अनावश्यक विवाद न खड़ा हो।

वैसे, इस कार्रवाई से यह संदेश साफ गया है कि भारत अब सिर्फ बातचीत और आश्वासन की नीति नहीं, बल्कि ठोस सैन्य कार्रवाई की रणनीति पर भी तेजी से आगे बढ़ रहा है। म्यांमार के इन गुटों को अब स्पष्ट हो गया है कि सीमा पार छुपना कोई गारंटी नहीं है। यह कार्रवाई पूर्वोत्तर के भविष्य के लिए भी महत्वपूर्ण है, क्योंकि इससे वहां के युवाओं को यह संदेश मिलेगा कि हथियार उठाने और हिंसा के रास्ते पर चलने वालों के लिए कोई सुरक्षित ठिकाना नहीं बचा है।

बहरहाल, म्यांमार में उल्फा-आई के खिलाफ भारत की यह कथित कार्रवाई राष्ट्रीय सुरक्षा, क्षेत्रीय स्थिरता और भविष्य की आतंकवाद विरोधी नीति के लिहाज से बेहद महत्वपूर्ण मानी जा रही है। भारत का यह स्पष्ट संदेश है कि उग्रवाद और आतंक के विरुद्ध वह सीमाओं तक ही सीमित नहीं रहेगा, बल्कि जरूरत पड़ी तो सीमा पार जाकर भी कार्रवाई करेगा।

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