भारतीय डेयरी उद्योग पोषण और आर्थिक विकास का एक स्तंभ है: मगनभाई पटेल

भारतीय डेयरी उद्योग पोषण और आर्थिक विकास का एक मजबूत स्तंभ है। "श्वेत क्रांति" के माध्यम से कभी दूध की कमी से जूझने वाला भारत आज विश्व का सबसे बड़ा दूध उत्पादक देश बन गया है, जो लाखों लोगों को रोजगार प्रदान करता है और वैश्विक स्तर पर निर्यात भी करता है।
भारत दुनिया का सबसे बड़ा डेयरी उत्पाद उत्पादक देश है,जो विश्व के कुल दूध उत्पादन का 13% से अधिक उत्पादन करता है और डेयरी उद्योग के लिए दुनिया का सबसे बड़ा पशुधन भी यहां उपलब्ध है। आज डेयरी उद्योग देश में कृषि के बाद सबसे बड़ा रोजगार सृजन क्षेत्र है। आज़ादी के समय देश दूध की भारी कमी से जूझ रहा था। उस समय देश में सालाना 21 मिलियन टन से भी कम दूध का उत्पादन होता था। वर्ष 1950-51 में प्रति व्यक्ति दूध की उपलब्धता मात्र 124 ग्राम प्रतिदिन थी।वर्ष 1965 में एक महत्वपूर्ण मोड़ आया जब राष्ट्रीय डेयरी विकास बोर्ड (एनडीडीबी) का गठन किया गया और डॉ. वर्गीज कुरियन, जिन्हें “श्वेत क्रांति” के जनक के रूप में जाना जाता है उन्हें इसका नेतृत्व करने के लिए नियुक्त किया गया। इसने ऑपरेशन फ्लड (1970-1996) की नींव रखी,जो दुनिया के सबसे बड़े ग्रामीण विकास कार्यक्रमों में से एक था। ऑपरेशन फ्लड के अंत तक 73,000 से ज़्यादा डेयरी सहकारी समितियां स्थापित की गई जिससे देश के 700 शहरों में प्रतिदिन गुणवत्तापूर्ण दूध होने लगा। भारत दूध के मामले में आत्मनिर्भर हो गया और दुनिया भर के देशों को दूध उत्पादों का निर्यात करने लगा। 13 जनवरी, 1970 को भारत के राष्ट्रीय डेयरी विकास बोर्ड (एनडीडीबी) द्वारा शुरू की गई "श्वेत क्रांति" नामक परियोजना ने भारत को दूध की कमी वाले देश से दुनिया के सबसे बड़े दूध उत्पादक देश में बदल दिया।
भारत में डेयरी उद्योग के लिए 30 करोड़ से ज़्यादा पशुधन हैं। भारत में 30 करोड़ से ज़्यादा गायें हैं, जो 18.7 करोड़ टन से ज़्यादा दूध का उत्पादन करती हैं। दूध उत्पादन और खपत, दोनों ही मामलों में भारत दुनिया के सभी देशों में पहले स्थान पर है।अधिकांश दूध की खपत स्थानीय स्तर पर ही हो जाती है, हालांकि इसका एक छोटा हिस्सा निर्यात भी किया जाता है। आज देश में उत्तर भारतीय व्यंजनों में मक्खन और पनीर जैसे कई डेयरी उत्पाद शामिल हैं, जबकि दक्षिण भारतीय व्यंजनों में दही और दूध का अधिक उपयोग होता है। डेयरी उत्पाद, खासकर दूध, इस उपमहाद्वीप में कम से कम वैदिक काल से ही उपयोग में लाए जाते रहे हैं। इससे पहले भारत में दूध का उत्पादन मुख्यतः घरेलू उपभोग के लिए होता था। भारत में डेयरी उद्योग का आर्थिक प्रभाव महत्वपूर्ण है। यहां उत्पादित अधिकांश दूध भैंसों से आता है; गाय का दूध दूसरे और बकरी का दूध तीसरे स्थान पर है। भारत में भैंसों से पनीर, मक्खन, घी और दही जैसे कई प्रकार के डेयरी उत्पाद उत्पादित होते हैं। भारत में डेयरी उत्पादों का आयात नगण्य है और इस पर शुल्क लगता है। घरेलू उद्योग का विनियमन पशुपालन, डेयरी एवं मत्स्य पालन मंत्रालय; राष्ट्रीय डेयरी विकास बोर्ड और भारतीय खाद्य सुरक्षा एवं मानक प्राधिकरण द्वारा किया जाता है।
स्वर्गीय केशुभाई पटेल साहब जब गुजरात के मुख्यमंत्री थे, तब उन्होंने गुजरात में कृषि तालाब, चेक डैम, स्प्रिंकलर, ड्रिप सिंचाई, जल संचयन जैसी परियोजनाएं शुरू की थीं। बाद में,जब माननीय प्रधानमंत्री नरेंद्रभाई मोदी साहब गुजरात के मुख्यमंत्री बने, तो उनकी टीमने इन परियोजनाओं को पूरा किया,जिन पर दुनिया के देशोंने ध्यान दिया। सौराष्ट्र जल क्रांति ट्रस्ट के मथुरभाई सवाणी के साथ-साथ अन्य NGOs भी इस क्षेत्र में शामिल थे और उनके विकासोन्मुखी कार्यों के लिए मथुरभाई सवाणी को "पद्म" पुरस्कार से सम्मानित किया गया।
डेयरी विकास पर राष्ट्रीय सेमिनार
हाल ही में,भारतीय डेयरी एसोसिएशन (पश्चिम क्षेत्र) और विक्रम विश्वविद्यालय, उज्जैन, मध्य प्रदेश द्वारा दिनांक : 4-5 जुलाई,2025 को डेयरी डेवलपमेंट पर एक राष्ट्रीय संगोष्ठी का आयोजन किया गया।जिसमें डेयरी डेवलपमेंट फेडरेशन चेयरमैन मगनभाई पटेलने डेयरी टेक्नोक्राफ्ट मैनेजर राकेशभाई भेसदरिया और प्रकाशभाई व्यास को इस सेमिनार में भाग लेने के लिए भेजा। यहां महत्वपूर्ण बात यह है कि जतिन ग्रुप ऑफ इंडस्ट्रीज, शाम इंडस्ट्रीज और फ्लोस्टर इंजीनियर्स प्राइवेट लिमिटेड के चेयरमैन मगनभाई पटेल और उनके परिवारने देश के डेयरी क्षेत्र को और मजबूत करने के लिए बिना किसी सरकारी मदद के अपने खर्च पर डेयरी उद्योग शुरू करके एक क्रांतिकारी कदम उठाया है। जिसमें भारतीय डेयरी संघ (IDA) और विक्रम विश्वविद्यालय के सेवानिवृत्त प्रोफेसरों, तकनीशियनों और अधिकारियों से चर्चा कर देश के डेयरी उद्योग को वैश्विक पटल पर ले जाने का संकल्प लिया है। इससे देश की उन महिलाओं को रोजगार मिलेगा, जिन्होंने डेयरी उद्योग की नींव रखने में महत्वपूर्ण योगदान दिया है और निःसंदेह ग्रामीण क्षेत्रों के विकास में योगदान मिलेगा। डीडीएफ के अध्यक्ष मगनभाई पटेल का मानना है कि रोजगार के लिए ग्रामीण क्षेत्रों से शहरी क्षेत्रों की ओर पलायन करनेवाले लोगों की वर्तमान प्रवृत्ति में भी सुधार देखने को मिलेगा, जिससे ग्रामीण क्षेत्रों में बड़ी मात्रा में रोजगार पैदा होगा। इस संगोष्ठी में भारतीय डेयरी संघ (आईडीए) के अध्यक्ष डॉ. जे.बी. प्रजापति, उपाध्यक्ष डॉ. जे.वी. पारेख और के. सैजू, डेयरी विज्ञान एवं खाद्य प्रौद्योगिकी महाविद्यालय के डीन डॉ. सुधीर उपीत, विक्रम विश्वविद्यालय के समन्वयक डॉ. कमलेश देशोरा सहित अन्य पदाधिकारी बड़ी संख्या में उपस्थित थे।
इस सेमिनार में 700 से ज़्यादा लोगों ने भाग लिया, जिनमें से लगभग 60% किसान थे। इस सेमिनार का उद्देश्य किसान परिवारों को डेयरी विज्ञान महाविद्यालय में अध्ययन के लिए प्रोत्साहित करना और डेयरी उद्योग को विकसित करना था। यहां यह बताना ज़रूरी है कि इस सेमिनार में मौजूद भारतीय डेयरी संघ (पश्चिम क्षेत्र) के पदाधिकारियों और आमंत्रित वक्ताओं ने अंग्रेज़ी में व्याख्यान दिए और किसानों की समस्याओं को नज़रअंदाज़ किया। जब ज़्यादातर किसान कार्यक्रम का बहिष्कार करके चले गए, तो इस सेमिनार में हिस्सा लेने गए जतिन ग्रुप ऑफ़ इंडस्ट्रीज के डेयरी टेक्नोक्राफ्ट के प्रबंधक राकेशभाई भेसदरिया और प्रकाशभाई व्यास के समझाने पर वे कार्यक्रम में वापस आए और आयोजकों व आमंत्रित वक्ताओं से सेमिनार हिंदी में आयोजित करने का अनुरोध किया। इसके बाद पूरा कार्यक्रम हिंदी में आयोजित किया गया।इस मामले को गंभीरता से लेते हुए डीडीएफ के अध्यक्ष मगनभाई पटेल ने कहा कि जिस प्रकार आज देश के कुछ भागों में भाषा विवाद चल रहा है, देश में आयोजित किसी भी प्रकार की संगोष्ठी उस राज्य की स्थानीय भाषा अर्थात मातृभाषा या हमारी राष्ट्रभाषा हिंदी में ही होनी चाहिए।हमारे यशस्वी प्रधानमंत्री नरेन्द्रभाई मोदी जब विश्व भर के देशों का दौरा करते हैं तो वहां उपस्थित भारतीय समुदाय के साथ-साथ उस देश की सरकार के कार्यक्रमों में भी वे अपना भाषण हिंदी में ही देते हैं, जो हम सभी के लिए गर्व की बात है। यदि हम सभी अपनी राष्ट्रभाषा हिंदी का भरपूर प्रयोग करें तो देश के 140 करोड़ लोगों के बीच संवादहीनता कुछ हद तक समाप्त हो सकती है, इसमें कोई संदेह नहीं है।
इस सेमिनार में डेयरी उद्योग में किसानों के सामने आनेवाली कठिनाइयों और समस्याओं पर चर्चा के लिए एक प्रश्नोत्तर सत्र भी आयोजित किया गया, जिसके संतोषजनक उत्तर भी दिए गए। इस सेमिनार में अजमेर डेयरी राजस्थान के अध्यक्ष ने एक अन्य विषय पर चर्चा करते हुए कहा कि पशुओं की अच्छी देखभाल की जानी चाहिए ताकि दूध उत्पादन क्षमता में वृद्धि हो सके।उन्होंने आगे कहा, "अगर हम दूध उत्पादक किसानों को ज़्यादा पैसा देंगे, तो वे अपने दुधारू पशुओं की बेहतर देखभाल कर पाएंगे और गुणवत्ता बनाए रखते हुए ज़्यादा मात्रा में दूध का उत्पादन कर पाएंगे। उन्होंने इसे लागू किया और आज राजस्थान जैसे शुष्क क्षेत्र में सबसे ज़्यादा दूध उत्पादन हो रहा है और राजस्थान देश का दूसरा सबसे बड़ा दूध उत्पादक राज्य है।" आज राजस्थान में प्रति लीटर दूध की कीमत 50 रूपये से अधिक है, जिससे राजस्थान के किसानों की आर्थिक स्थिति मजबूत हुई है।
भारत में डेयरी उद्योग के प्रबंधन में महिला शक्ति महत्वपूर्ण भूमिका निभा रही है। दुनिया के अन्य देशों में डेयरी उद्योग में महिलाओं की भागीदारी नहीं है, यह केवल भारत में ही देखने को मिलता है। हमारे देश में डेयरी उद्योग में 70 प्रतिशत से अधिक भागीदारी महिलाओं की है। महिलाओं को आत्मनिर्भर बनाने और उनकी सामाजिक व आर्थिक स्थिति में बदलाव लाने में डेयरी क्षेत्र का विशेष महत्व है। इन महिलाओं को समान अधिकार और निर्णय लेने तथा नेतृत्व प्रदान करने के अवसर प्राप्त हों, इसके लिए उन्हें शिक्षा, प्रशिक्षण और कौशल विकास के अधिक अवसर प्रदान किए जाने की आवश्यकता है।डेयरी फार्मिंग में महिलाओं को उद्यमी बनाने के लिए आसान ऋण और बाज़ार की सुविधा होनी चाहिए। गाय और अन्य पशुधन भारतीय समाज और परंपराओं का अभिन्न अंग रहे हैं, इसलिए हम महिलाओं के योगदान को नकार नहीं सकते। घरेलू ज़िम्मेदारियों के साथ-साथ, देश में महिलाओं की ज़िम्मेदारियां दुधारू पशुओं की देखभाल, संवारने और खेती-बाड़ी में भी हैं। साथ ही, कृषि में पशुओं के गोबर और मूत्र का उपयोग करके जैविक खेती में भी हम अभी भी अग्रणी हैं। हालांकि, डेयरी उद्योग के ऐसे सेमिनारों में महिलाओं की उपस्थिति कम होती है, जिस पर सरकार और डेयरी मंत्रालय के संबंधित अधिकारियों को विशेष ध्यान देने की आवश्यकता है। हमें उम्मीद है कि भारतीय डेयरी एसोसिएशन इस मामले पर गंभीरता से ध्यान देगा और भविष्य में इस तरह के सम्मेलनों में महिलाओं को आमंत्रित करेगा।
भारत अपने दूध उत्पादन का लगभग पूरा हिस्सा खपत कर लेता है, इसलिए वर्ष 2000 से पहले भारत न तो डेयरी उत्पादों का सक्रिय आयातक था, न ही निर्यातक और न ही यह बड़ा उपभोक्ता था। हालांकि, ऑपरेशन फ्लड कार्यक्रम के लागू होने के बाद, स्थिति में उल्लेखनीय बदलाव आया और डेयरी उत्पादों के आयात में उल्लेखनीय कमी आई। वर्ष 2001 से भारत डेयरी उत्पादों का शुद्ध निर्यातक बन गया है और वर्ष 2003 से डेयरी आयात में गिरावट आई है जबकि निर्यात में तेज़ी से वृद्धि हुई है। हालांकि, वैश्विक डेयरी व्यापार में देश का हिस्सा अभी भी निर्यात और आयात के मामले में क्रमशः 0.3 और 0.4 प्रतिशत के साथ छोटा बना हुआ है। इसका कारण उत्पादक परिवारों द्वारा तरल दूध की प्रत्यक्ष खपत के साथ-साथ प्रसंस्कृत डेयरी उत्पादों की मांग है, जो आय के स्तर में वृद्धि के साथ बढ़ी है, जिससे निर्यात के लिए डेयरी अधिशेष बहुत कम बचा है। हालांकि, भारत खाद्य प्रसंस्करण या दवाइयों के लिए कैसिइन जैसे विशिष्ट उत्पादों का निर्यात जारी रखे हुए है। भारतीय डेयरी क्षेत्र अन्य डेयरी उत्पादक देशों से इसलिए भी अलग है क्योंकि भारत गाय और भैंस दोनों के दूध पर ज़ोर देता है। वर्ष 2010 में सरकार और राष्ट्रीय डेयरी विकास बोर्ड ने एक राष्ट्रीय डेयरी योजना (एनडीडीपी) बनाई, जिसमें भारत के दूध उत्पादन को लगभग दोगुना करने का प्रस्ताव है।इस योजना का उद्देश्य देश की दुग्ध उत्पादकता को बढ़ाना, गुणवत्तापूर्ण चारे तक पहुंच में सुधार करना तथा किसानों को संगठित बाजारों से जोड़ना है। ये गतिविधियां सहकारी सदस्यता बढ़ाने और पूरे भारत में दूध भंडारण सुविधाओं के नेटवर्क का विस्तार करने पर केंद्रित हैं। एक अनुमान के अनुसार, भारतीय डेयरी उत्पादन लगभग चार प्रतिशत प्रति वर्ष की दर से बढ़ रहा है, जबकि उपभोक्ता मांग लगभग दोगुनी दर से बढ़ रही है। दूध और डेयरी उत्पादों की तेज़ी से बढ़ती मांग के अलावा, ग्रामीण क्षेत्रों में पशु आहार की बढ़ती लागत और डेयरी फार्मों में श्रमिकों की सीमित उपलब्धता जैसे अन्य कारकों ने भी उत्पादन लागत में वृद्धि में योगदान दिया है। दूसरी ओर, यूरोपीय संघ द्वारा अपने बाजार को खोलने के लिए दबाव तथा ऑस्ट्रेलिया और न्यूजीलैंड के साथ प्रस्तावित मुक्त व्यापार समझौते भी भारत के डेयरी क्षेत्र को खतरे में डाल सकते हैं।अपने डेयरी उद्योग के विकास को बनाए रखने के लिए, कई क्षेत्रों पर ध्यान केंद्रित करने की आवश्यकता है।पशु स्वास्थ्य देखभाल और प्रजनन सुविधाओं में सुधार, पशु उत्पादकता में वृद्धि और डेयरी पशुओं के प्रबंधन के माध्यम से उत्पादन लागत को कम करना होगा। भारतीय डेयरी उद्योग को एक उपयुक्त डेयरी उत्पादन, प्रसंस्करण और विपणन अवसंरचना विकसित करने की आवश्यकता है जो अंतर्राष्ट्रीय गुणवत्ता आवश्यकताओं को पूरा करने में सक्षम हो।
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