जानिए दुश्मन देश की जासूसी करने से लेकर पीएम मोदी के भरोसेमंद अधिकारी बने Ajit Doval की कहानी

अजीत डोभाल प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के 5वें और वर्तमान राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार हैं। भारत के सबसे जाबांज जासूस रहे डोभाल 2004 से 2005 तक इंटेलिजेंस ब्यूरो (IB) के निदेशक के रूप में कार्य कर चुके हैं। वे IPS कैडर के सेवानिवृत्त अधिकारी हैं। अजीत डोभाल को इंटेलिजेंस का एक मांझा हुआ खिलाड़ी माना जाता है।
'भारत का जेम्स बॉन्ड' के नाम से पूरे देश में विख्यात अजीत डोभाल प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के 5वें और वर्तमान राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार हैं। भारत के सबसे जाबांज जासूस रहे डोभाल 2004 से 2005 तक इंटेलिजेंस ब्यूरो (IB) के निदेशक के रूप में कार्य कर चुके हैं। वे IPS कैडर के सेवानिवृत्त अधिकारी हैं। अजीत डोभाल को इंटेलिजेंस का एक मांझा हुआ खिलाड़ी माना जाता है। जिनका जीवन किसी लगभग किसी एडवेंचर फिल्म की कहानी जैसा ही है। डोभाल 7 साल तक पाकिस्तान में जासूस रहे। उन्होंने अपने जीवन में कई चुनौतियों का सामना किया है। आज उनका नाम सुनकर दुश्मन कांप जाते हैं।
पुलिस अधिकारी के रूप में निभाया देश सेवा का कर्तव्य
डोभाल का जन्म उत्तराखंड के पौड़ी गढ़वाल में आज ही दिन 20 जनवरी 1945 को हुआ था। उनके पिता भी भारतीय सेना में अधिकारी थे। इसी वजह से अजीत डोभाल की पढ़ाई लिखाई आर्मी स्कूल में हुई। उन्होंने आगरा यूनिवर्सिटी से पोस्ट ग्रेजुएशन की पढ़ाई की। इसके बाद 1968 में केरल कैडर IPS बन गए। पुलिस अधिकारी के रूप में चार साल सेवा देने के बाद 1972 में उन्होंने इंटेलिजेंस ब्यूरो (IB) ज्वॉइन कर लिया। अपनी जासूसी के काम से IB में उन्होंने कई सीक्रेट ऑपरेशन को अंजाम दिया। 2005 में वो IB डायरेक्टर के पद से रिटायर हुए। एनएसए के रूप में आज भी वो देश की सुरक्षा के लिए ढाल बने खड़े रहते हैं।
कीर्ति चक्र से हो चुके हैं सम्मानित
राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार अजीत डोभाल को देश के कई बड़े सम्मान से नवाजा जा चुके है। वे देश के इकलौते ऐसे नौकरशाह हैं, जिन्हें कीर्ति चक्र और शांतिकाल में मिलने वाले गैलेंट्री अवॉर्ड मिला है। डोभाल को जासूसी और राष्ट्रीय सुरक्षा का करीब 40 साल का अनुभव है। उन्हें 31 मई 2014 को भारत का राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार बनाया गया। उनके नेतृत्व में भारत ने पाकिस्तान पर सर्जिकल स्ट्राइक जैसे बड़े मिशन को अंजाम दिया। कहा जाता है कि पिछले साल जब आतंकी संगठन पीएफआई पर रातों-रात बैन लगाया गया तो इसकी पूरी योजना भी डोभाल के नेतृत्व में की गई।
लंबे समय तक पाकिस्तान में की जासूसी
एनएसए बनने के बाद डोभाल की कहानी तो ज्यादातर लोग जानते हैं। लेकिन बहुत कम लोग ही उनके जीवन का सबसे बड़ा जासूसी का किस्सा जानते हैं जो पाकिस्तान से जुड़ा हुआ है। डोभाल पहली बार 1972 में जासूस बनकर पाकिस्तान गए थे। उन्होंने वहां 7 साल गुजारे और कई खूफियां जानकारियां हासिल की। वे पाकिस्तान में मुस्लिम बनकर रहे और उर्दू भाषा में महारथ हासिल की। उन्हें पाकिस्तान के कई खुफिया राज पता है, इसलिए आज भी पाकिस्तान उनके नाम से घबराता है।
ऑपरेशन ब्लू स्टार में निभाई अपनी भूमिका
अजीत डोभाल ने अमृतसर स्वर्ण मंदिर से खालिस्तान समर्थक सिख उग्र वादियों के खात्मे के लिए दो ऑपरेशन किए गए। उस समय वो एक रिक्शा चालक बनकर वहां गए और बड़ी चतुरता से पूरे मिशन को अंजाम दिया। उन्होंने सुरक्षा बलों को आतंकियों की पूरी जानकारी दी, उस खबर के आधार पर ही सैनिकों को खालिस्तानियों को मंदिर से बाहर निकालने में काफी मदद मिली। इस मिशन को ऑपरेशन ब्लू स्टार कहा जाता है। इस पूरे ऑपरेशन में डोभाल नायक बने।
साल 1990 में कंधार प्लेन हाईजैक के दौरान हुए ऑपरेशन ब्लैक थंडर में भी डोभाल मुख्य भूमिका में थे। वह उस टीम को लीड कर रहे थे, जो आतंकियों से निगोसिएशन कर रही थी। इसके अलावा जम्मू-कश्मीर में कई आतंकियों को भी उन्होंने सरेंडर कराया। 2015 में हुई सर्जिकल स्ट्राइक ऑपरेशन के हेड प्लानर भी डोभाल ही थे। वो न केवल प्रधानमंत्री मोदी की सरकार में देश की सुरक्षा में तैनात हैं, बल्कि इंदिरा गांधी की सरकार में हुए ऑपरेशन ब्लू स्टार में भी उनकी प्रमुख भूमिका थी।
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