परमवीर चक्र विजेता सोम नाथ शर्मा की प्रतिमा स्थापित करने के लिये 11 साल का लंबा इंतजार

 Som Nath Sharma

चामुंडा से सटे पालमपुर की ओर जाने वाले सडक मार्ग पर डाढ कस्बे में देश के पहले परम वीर चक्र विजेता मेजर सोम नाथ शर्मा की याद में यह स्मारक बनना था। इसके लिये 2011 में तत्कालीन भाजपा सरकार के मुख्यमंत्री प्रेम कुमार धूमल की ओर से इसे बनाने की घोषणा की गई थी। लेकिन 2012 में धूमल सरकार चुनावों में सत्ता से बाहर हो गई।

पालमपुर। भारतीय सेना के गौरवमयी इतिहास में मेजर सोमनाथ शर्मा का अपना एक विशिष्ट स्थान है। यह देश के पहले योद्धा रहे हैं,जिन्हें आजाद भारत का पहला परम वीर चक्र मिला।   मेजर सोमनाथ शर्मा की शहादत के मामले में राजनिति आडे आ गई है। 11 साल पहले की गई घोषणा को बदलती सरकारें अमली जामा नहीं पहना पाई हैं। जिससे स्थानीय लोगों में रोष है। लगता है। हिमाचल प्रदेश के जिला कांगडा के चामुंडा के पास उनकी याद में बनने वाले शहीद स्मारक की घोषणा सरकारी फाईलों में दफन हो गई है।

 

दरअसल, चामुंडा से सटे पालमपुर की ओर जाने वाले सडक मार्ग पर डाढ कस्बे में देश के पहले परम वीर चक्र विजेता मेजर सोम नाथ शर्मा की याद में यह स्मारक बनना था।  इसके लिये 2011 में तत्कालीन भाजपा सरकार के मुख्यमंत्री प्रेम कुमार धूमल की ओर से इसे बनाने की घोषणा की गई थी।  लेकिन 2012 में धूमल सरकार चुनावों में सत्ता से बाहर हो गई। और प्रदेश में कांग्रेस सरकार सत्तासीन हुई। लेकिन इसे अमली जामा पहनाने के बजाये नजरअंदाज कर दिया गया।  डाढ के बाशिन्दें राजेन्दर चौधरी बताते हैं कि ग्रामीण मेजर सोम नाथ शर्मा के अदम्य साहस व बलिदान को देखते हुये उनकी याद में यहां उनकी प्रतिमा स्थापित करने की मांग पिछले तीस साल से करते आ रहे हे। लेकिन सत्ता में विराजमान लोग उन्हें आशवास के सिवा कुछ भी नहीं दे पाये है।; इलाके में कई बार मुख्यमंत्री आये हमने यह मांग बार बार उठाई,लेकिन किसी भी सरकार ने इस मामले में कोई प्रयास नहीं किया। जिससे लोगों में गुस्सा है। 

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उन्होंने बताया कि हमारी पंचायत ने पिछले दिनों मेजर नाथ सोम नाथ शर्मा की याद में डाढ में एक भव्य प्रवेश द्धार बनाने के लिये बाकायदा एक प्रस्ताव पास किया था। हम चाहते हैं कि देश की सुरक्षा में दिये उनके बिलदान को आने वाली सदा ही याद रखें । वह देश के पहले परम वीर चक्र विजेता थे। लेकिन इसके बावजूद सरकार की ओर से मेमोरियल गेट बनाने के लिये धन उपलब्ध नहीं कराया गया। जिससे यह योजना भी अधर में लटकी है। 

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प्रेम कुमार धूमल केन्द्रिय सूचना एंव प्रसारण मंत्री अनुराग ठाकुर के पिता हैं। व भाजपा के कद्दावर नेताओं में शुमार हैं। लेकिन इसके बावजूद प्रदेश की वर्तमान जय राम सरकार भी इस घोषणा को अमली जामा नहीं पहना पाई है। 

इस मामले में सरकारी उपेक्षा को लेकर हर कोई हैरान है। सब जानते हैं कि देश की रक्षा में मेजर सोम नाथ शर्मा ने असाधारण वीरता दिखाई थी। उनके बलिदान को भुलाया नहीं जा सकता। 

मेजर सामनाथ शर्मा भी एक हैं। वहीं मेजर सोमनाथ शर्मा की शौर्यगाथा भारतीय सेना आज भी बडग़ाम की लड़ाई के रूप में याद करती है। 31 अक्टूबर 1947 को सोमनाथ शर्मा की डेल्टा कम्पनी को वायु सेना द्वारा श्रीनगर में उतारा गया।  यानि युद्ध शुरू होने के 10 दिन बाद।  मेजर सोमनाथ शर्मा को  22 फरवरी 1942 को सेना में कमीशन मिला। व  3 नवम्बर 1947 को मेजर सोमनाथ शर्मा की कम्पनी को कश्मीर घाटी में बडगाम की ओर फाइटिंग पट्रोल करते हुए आगे बढऩा था। पाकिस्तानी  कबिलाई लश्कर के 700 सैनिक भी गुलमर्ग की ओर से बडगाम की ओर बढ रहे थे।  थोड़े समय में ही मेजर सोमनाथ की कम्पनी तीन ओर से दुश्मनों से घिर चुकी थी, साथ ही गोली-बारी व मोर्टार हमले में भारी मात्रा में कम्पनी के सैनिक भी मरे गये।  मेजर सोमनाथ शर्मा को पता था की अगर वे दुश्मनों को नहीं रोक पाए तो पाकिस्तानी सेना सीधे श्रीनगर और हवाई अड्डा पर कब्ज़ा कर लेंगे, जहाँ से पुरे कश्मीर पर भी काबू पा लेंगे। और हवाई अड्डा हाथ से जाने पर भारतीय सेना का कश्मीर में आ पाना मुश्किल था। भारी गोली-बारी के बीच मेजर शर्मा अपने साथियों को बहादुरी से लडऩे के लिए प्रोत्साहित करने लगे और इस सब के लिए वे अपने आप को जोखिम में डाल कर अलग - अलग साथियों के पास जाते। जिन्होंने अलग - अलग जगह पर पोजीशन ले रखी थी।  जब मेजर सोमनाथ शर्मा के काफ़ी सैनिक हताहत हो गये और लड़ाई करना और मुश्किल होता जा रहा था। अद्भुत साहस के साथ मेजर शर्मा अँधा-धुंध गोलियो के बीच दुश्मनों के सामने आकर एक हाथ से ही गोलियां चलते गये साथ ही उस एक हाथ से ही लाइट मशीन गन गन की मैगज़ीन भी बदलते गये। बडगाम युद्ध में मेजर सोमनाथ शर्मा के एक हाथ की हड्डी टूटी हुई थी।  यह चोट उन्हें युद्ध से पहले हॉकी खेलते समय लगी थी।

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इसी लड़ाई के दौरान एक मोर्टार शैल उनके पास आकर फटा। मेजर सोमनाथ शर्मा ने  वीर गति को प्राप्त होने से कुछ समय पहले एक रेडियो संदेश दिया, दुश्मन हम से केवल 150 फीट की दुरी पर ही है, हमारे सैनिक बहुत अधिक संख्या में मरे गए है। हम बहुत ही विनाशकरी हालत में है।  मैं एक भी इंच पीछे नहीं हटूँगा बल्कि आखरी आदमी और आखरी गोली तक लडूंगा।

 

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इस तरह से लड़ते हुए मेजर सोमनाथ शर्मा ने दुश्मनों को 6 घंटे तक रोक लिया।  इन 6 घंटों में कुमाऊ रेजिमेंट की चौथी बटालियन भी बडगाम पहुच गई। इस युद्ध में 700 दुश्मनों सैनिकों ने भारतीय सेना के 200 को हताहत किया परन्तु इस लड़ाई के कारण दुश्मन 6 घंटे तक आगे नहीं बढ सके, और इतना समय काफ़ी था भारतीय सेना की बटालियन कुमाऊ रेजिमेंट को श्रीनगर से बडगाम पहुचने के लिये।  अगर मेजर सोम नाथ शर्मा दुश्मनों को 6 घंटे नहीं रोक पाते तो दुश्मन श्रीनगर पर कब्ज़ा कर लेते और उन्हें श्रीनगर से हटा पाना काफ़ी मुश्किल होता।  इस लिए मेजर सोम नाथ शर्मा ने पुरे श्रीनगर को बचाया।  मेजर सोमनाथ शर्मा को मरणोपरांत स्वतंत्र भारत के सर्वोच्च वीरता पुरुस्कार परमवीर चक्र  से नवाजा गया और वो इस पुरुस्कार को पाने वाले प्रथम भारतीय बने। 

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