संघ के एजेंडे में फिलहाल नहीं है मथुरा और काशी, समान नागरिक संहिता पर ये है राय
राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ की तरफ से फिलहाल ऐसा लगता नहीं कि काशी और मथुरा के मंदिरों के 'उद्धार' की मांग उठाएगा। इसके अलावा आरएसएस में यह सोच भी बढ़ रही है कि समान नागरिक संहिता लाने से पहले जनता को इसके लिए तैयार करना चाहिए।
अयोध्या में राम मंदिर जन्मभूमि शिलान्यास के बाद काशी और मथुरा पर भी दावा ठोकने की तैयारी है। लेकिन इस तैयारी को यही पर ही रोक देने या फिर फिलहाल के लिए टाल देने की कोशिश भी शुरू हो गई है। प्रयागराज के बाघंबरी गद्दी मठ परिसर में बीते दिनों 7 सितंबर को अखिल भारतीय अखाड़ा परिषद की पहली बैठक आयोजित हुई। बैठक में सभी 13 अखाड़ों के प्रतिनिधि शामिल हुए। बैठक में अखाड़ा परिषद के सदस्यों ने काशी और मथुरा के मंदिरों को मुक्त कराने के लिए विश्व हिंदू परिषद (विहिप) और राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ (आरएसएस) के साथ अन्य हिंदूवादी संगठनों की मदद से एक बड़ा आंदोलन खड़ा करने का निर्णय किया।
लेकिन इस निर्णय से इतर राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ की तरफ से फिलहाल ऐसा लगता नहीं कि काशी और मथुरा के मंदिरों के 'उद्धार' की मांग उठाएगा। इसके अलावा आरएसएस में यह सोच भी बढ़ रही है कि समान नागरिक संहिता लाने से पहले जनता को इसके लिए तैयार करना चाहिए। कयास ये लगाए जा रहे हैं कि संघ काशी विश्वनाथ और कृष्ण जन्मभूमि के मसले पर पहले जनता की भावनाओं को परखना चाहती है।
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समान नागरिक संहिता
तीन तलाक के बाद जहां समान नागरिक संहिता को लेकर बहस छिड़ी है। अनुच्छेद 370, तीन तलाक, सीएए के बाद से यह अटकल जोरों पर रही है कि क्या इसके बाद सरकार की समान नागरिक संहिता लाने की तैयारी है। हालांकि संघ का मानना है कि इसे लागू करने से पहले व्यापक बहस होनी चाहिए। समाज के अंदर ही इस पर सहमति बनानी चाहिए, वरना झगड़े शुरू हो जाएंगे। इसके साथ ही संघ के सूत्रों का तर्क है कि समान नागरिक संहिता का असर सिर्फ अल्पसंख्यकों पर ही नहीं अपितु दूसरे समुदायों के पारंपरिक रीतिरिवाज भी प्रभावित होंगे, जिनमें हिंदू भी शामिल हैं।
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