बेसुध होकर बिस्तर पर पड़े हैं पद्म श्री के लिए चुने गए मोहम्मद शरीफ, परिवार को मदद का इंतजार
आज वहीं मोहम्मद शरीफ जिंदगी और मौत से जूझ रहे हैं। हालत ऐसी है कि इलाज कराने के लिए भी पैसे नहीं है। वह बहुत दिनों से बीमार हैं। दो कमरे वाले किराए के मकान में रहते हैं। फिलहाल में वह बेसुध होकर बिस्तर पर पड़े रहते हैं। हालत यह है कि उन्हें अब पुरानी बातें तक याद नहीं है।
उत्तर प्रदेश के फैजाबाद निवासी 83 वर्षीय मोहम्मद शरीफ के बारे में कौन नहीं जानता। मोहम्मद शरीफ पिछले 25 वर्षों से 25 हजार से ज्यादा लावारिस शवों का अंतिम संस्कार करवा चुके हैं। एक साल पहले तक शायद ही उन्हें कोई नहीं जानता होगा। पद्मश्री पुरस्कार से सम्मानित होने के ऐलान के बाद उन्हें हर कोई जाने लगा। लेकिन यह बात भी सच है कि पुरस्कार से सम्मानित होने का ऐलान हुए 1 साल से अधिक समय हो गया लेकिन अब तक ना तो उन्हें पदक मिली है और ना ही प्रशस्ति पत्र। मोहम्मद शरीफ के बेटे शगीर ने कहा कि उन्हें पिछले साल केंद्रीय गृह मंत्रालय से एक पत्र मिला था जिसमें उनके पिता को सूचित किया गया था कि उन्हें पद्म श्री पुरस्कार के लिए चुना गया है। शगीर ने कहा कि 31 जनवरी, 2020 की तिथि वाले पत्र में केंद्रीय गृह सचिव अजय कुमार भल्ला ने कहा कि पुरस्कार देने की तारीख जल्द बतायी जाएगी।
आज वहीं मोहम्मद शरीफ जिंदगी और मौत से जूझ रहे हैं। हालत ऐसी है कि इलाज कराने के लिए भी पैसे नहीं है। वह बहुत दिनों से बीमार हैं। दो कमरे वाले किराए के मकान में रहते हैं। फिलहाल में वह बेसुध होकर बिस्तर पर पड़े रहते हैं। हालत यह है कि उन्हें अब पुरानी बातें तक याद नहीं है। उन्हें यह बिल्कुल भी याद नहीं कि वे लावारिस शवों को कंधे पर लादकर मिलों पैदल चलते थे और उन्हें दफनाते थे। उन्हें तो यह तक पता नहीं है कि पिछले साल सरकार की ओर से पद्म अवार्ड देने की भी घोषणा की गई थी। मोहल्ला खिड़की अली बेग स्थित उनके घर पहुंचा तो वह बिस्तर पर पड़े हुए थे। मोहम्मद शरीफ को आस-पड़ोस के लोग शरीफ चाचा कहकर बुलाते हैं। उनके परिवार के सदस्यों ने कहा कि वे उनके पुरस्कार के मद्देनजर कुछ पेंशन की उम्मीद कर रहे थे ताकि वे उनका इलाज करा सकें।Ayodhya: Mohammad Sharif, who was named for Padma Shri for cremating unclaimed bodies, says he has yet to receive the award.
— ANI UP (@ANINewsUP) February 20, 2021
"I heard the news about it on TV but have not received the award so far. I fell ill nearly two months ago," he says. pic.twitter.com/JTCeFY17Ye
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जवानी के दिनों में शरीफ सच्चा साइकिल मरम्मत करने की दुकान चलाते थे जो कि एक टिन शेड के नीचे बना हुआ था। फिलहाल वह दुकान बंद पड़ी है। उनका परिवार पास में ही वक्फ बोर्ड के सदस्य के घर किराए पर रहता है। परिवार वालों की ओर से बताया गया कि उनका लिवर और किडनी खराब हो चुका है। पत्नी ने यह भी दावा किया कि उनके ऊपर काफी कर्ज हो गया है। साहूकार और दवा दुकानदारों के हजारों रुपए बकाया है। पद्म पुरस्कार ना मिल पाने की बात करते हुए उनकी पत्नी ने कहा कि अब तक यह पुरस्कार इसलिए नहीं मिला क्योंकि कोरोनावायरस के कारण पुरस्कार समारोह को स्थगित कर दिया गया था। वहीं बेटे मोहम्मद सगीर ने बताया कि जब उन्हें पता चला कि पिता को पद्मश्री के लिए चुना गया है और उन्हें दिल्ली जाना है तो ऐसे में परिवार ने 2500 उधार लेकर ट्रेन की टिकट करवाई थी। हालांकि बाद में यह रद्द हो गया। सगीर पेशे से ड्राइवर हैं और मुश्किल से घर वालों के लिए दो वक्त की रोटी का जुगाड़ कर पाते हैं।
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मोहम्मद शरीफ को ‘लावारिस लाशों के मसीहा’ के रूप में भी जाना जाता है। सगीर ने कहा कि उनके पिता को फैजाबाद से भाजपा सांसद लल्लू सिंह की सिफारिश पर पुरस्कार के लिए चुना गया था। पुरस्कार की स्थिति के बारे में पूछे जाने पर, सिंह ने भी आश्चर्य व्यक्त किया और सवाल किया, ‘‘क्या उन्हें अभी तक पुरस्कार नहीं मिला है?’’ उन्होंने वादा किया, ‘‘ठीक है, मैं इसे देखूंगा।’’ शगीर ने कहा कि वह एक निजी ड्राइवर के रूप में काम करते हैं और प्रति माह 7,000 रुपये कमाते हैं जबकि उनके पिता के इलाज में ही हर महीने 4,000 रुपये का खर्च आता है। उन्होंने कहा, ‘‘हम बहुत मुश्किल समय बिता रहे हैं। हम घरेलू खर्च भी पूरा नहीं कर पा रहे हैं। पैसे की कमी के कारण हम अपने पिता का उचित इलाज नहीं करा पा रहे हैं।’’ उन्होंने कहा, ‘‘हाल तक, हम उनके इलाज के लिए एक स्थानीय डॉक्टर पर निर्भर थे। हालांकि पैसे की कमी के कारण, हम वह भी खर्च नहीं उठा पा रहे हैं।
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