ओम बिरला ने संसदीय समितियों के प्रमुखों से कहा- समिति की बैठकों में नियमों का करें पालन
निर्देश 55 बैठकों की गोपनीयता के बारे में बताता है जबकि नियम 270 में समिति की ओर से व्यक्ति या दस्तावेज उपलब्ध कराने की प्रासंगिकता पर जोर दिया गया है तथा कहा गया है कि अगर कोई ऐसा सवाल उत्पन्न होता है तब इसे स्पीकर के पास भेजा जाए और उनका फैसला अंतिम होगा।
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पत्र में कहा गया है, ‘‘इसलिये यह जरूरी है कि संसदीय समितियां और सरकार सौहार्द के साथ काम करे ताकि लोगों के कल्याण के लक्ष्य को और प्रभावी ढंग से हासिल किया जा सके।’’ समितियों की बैठकें आयोजित करने के लोकसभा के नियमों का जिक्र करते हुए लोकसभा अध्यक्ष ने खास तौर पर निर्देश 55 और नियम 270 का उल्लेख किया। निर्देश 55 बैठकों की गोपनीयता के बारे में बताता है जबकि नियम 270 में समिति की ओर से व्यक्ति या दस्तावेज उपलब्ध कराने की प्रासंगिकता पर जोर दिया गया है तथा कहा गया है कि अगर कोई ऐसा सवाल उत्पन्न होता है तब इसे स्पीकर के पास भेजा जाए और उनका फैसला अंतिम होगा। नियम 270 में कहा गया है कि सरकार इस आधार पर दस्तावेज उपलब्ध कराने से मना कर सकती है कि इसका खुलासा करना देश के हित या सुरक्षा के लिये हानिकारक होगा।
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समितियों की बैठकें आयोजित करने के लिये इन दो निर्देशों का हवाला देते हुए बिरला ने कहा, ‘‘मेरा यह मत है कि भविष्य में संसदीय समितियों की बैठकें आयोजित करते समय इन सभी मुद्दों पर ध्यान दिया जा सकता है। मुझे विश्वास है कि आप भारत की संसद और भारतीय लोकतंत्र को मजबूत बनाने के लिये काम करना जारी रखेंगे और इस प्रकार हमारे संसद की गरिमा एवं प्रतिष्ठा को बढ़ायेंगे।’’ उन्होंने इशारा किया कि चलन के अनुरूप, समिति कोई ऐसा मामला विचार के लिये नहीं लेती हैं जो मुद्दा अदालत में लंबित हो। गौरतलब है कि बिरला के पत्र का महत्व ऐसे में बढ़ गया है जब शशि थरूर की अध्यक्षता वाली सूचना प्रौद्योगिकी से संबंधित संसदीय समिति की बैठक 1 और 2 सितंबर को निर्धारित है। भाजपा सांसद एवं समिति के सदस्य निशिकांत दूबे ने हाल ही में थरूर को समिति के अध्यक्ष पद से हटाने की मांग की थी और यह दावा किया था कि वह इस मंच का इस्तेमाल राजनीतिक एजेंडे के लिये कर रहे हैं।
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