Jammu Kashmir Assembly में विपक्ष ने Omar Abdullah सरकार को जमकर घेरा, मचा हंगामा, कार्यवाही अनिश्चिकाल के लिए स्थगित

विधानसभा सत्र में पांच सरकारी विधेयक पारित हुए और दो गैर-सरकारी प्रस्तावों पर चर्चा हुई। हालांकि 41 गैर-सरकारी विधेयक सूचीबद्ध थे, पर उनमें से केवल आठ पर ही चर्चा हो सकी। विपक्ष का कहना है कि सरकार ने गैर-सरकारी प्रस्तावों को “औपचारिकता” में बदल दिया है।
जम्मू-कश्मीर विधानसभा का शरदकालीन सत्र आज अनिश्चित काल के लिए स्थगित कर दिया गया, लेकिन सत्र के अंतिम दिन विपक्ष ने उमर अब्दुल्ला सरकार को जमकर घेरा। हम आपको बता दें कि नौ दिवसीय सत्र अपेक्षाकृत शांतिपूर्ण रहा, परंतु अंतिम चरण में विपक्षी दलों ने सरकार पर जनहित से जुड़े मुद्दों को अनदेखा करने का आरोप लगाते हुए तीखी टिप्पणियाँ कीं। उधमपुर से भाजपा विधायक पवन गुप्ता द्वारा बाढ़ पीड़ितों की समस्याओं पर चर्चा के लिए लाए गए स्थगन प्रस्ताव को विधानसभा अध्यक्ष अब्दुल रहीम राथर ने अस्वीकार कर दिया, जिसके विरोध में भाजपा विधायकों ने सदन से वॉकआउट किया। विपक्ष ने आरोप लगाया कि सरकार जन-समस्याओं को नज़रअंदाज़ कर “औपचारिक विधायी कार्यवाही” में उलझी रही।
हम आपको बता दें कि विधानसभा सत्र में पांच सरकारी विधेयक पारित हुए और दो गैर-सरकारी प्रस्तावों पर चर्चा हुई। हालांकि 41 गैर-सरकारी विधेयक सूचीबद्ध थे, पर उनमें से केवल आठ पर ही चर्चा हो सकी। विपक्ष का कहना है कि सरकार ने गैर-सरकारी प्रस्तावों को “औपचारिकता” में बदल दिया है और जनहित के विषयों से दूरी बना ली है। सत्र के दौरान एक अन्य विवाद ने भी माहौल को गर्मा दिया जब नेशनल कॉन्फ्रेंस (नेकां) विधायक जावेद मिर्चल का एक वीडियो सोशल मीडिया पर वायरल हुआ, जिसमें वह विधानसभा कार्यवाही के दौरान मोबाइल पर “रील देखते” नज़र आए। इस पर सदन में हंगामा मच गया। मिर्चल ने आरोप लगाया कि एक पत्रकार ने “अनुचित ढंग से” वीडियो बनाया और उनके चरित्र पर प्रश्न खड़े किए।
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गुरेज से नेकां विधायक नजीर अहमद खान गुरेजी ने पत्रकार के खिलाफ विशेषाधिकार हनन का प्रस्ताव लाने की घोषणा की। विधानसभा अध्यक्ष राथर ने हस्तक्षेप करते हुए कहा कि “इसके लिए जिम्मेदार व्यक्ति के खिलाफ उचित कार्रवाई की जाएगी।” सत्र के अंत में अध्यक्ष ने सभी सदस्यों को सहयोग के लिए धन्यवाद दिया, लेकिन विपक्ष ने साफ कहा कि “जनता के मुद्दों को दबाया नहीं जा सकता।”
देखा जाये तो जम्मू-कश्मीर विधानसभा का यह शरदकालीन सत्र ऐसे समय में संपन्न हुआ है जब राज्य की राजनीति एक बार फिर “जनहित बनाम सत्ता हित” के द्वंद्व में फंसी हुई दिखाई दी। उमर अब्दुल्ला सरकार ने विधायी कार्यों को प्राथमिकता दी, पर विपक्ष ने सवाल उठाया कि इन विधेयकों में आम नागरिक की समस्याओं के समाधान का कोई ठोस रोडमैप नहीं था। बाढ़ पीड़ितों की दुर्दशा, सीमांत इलाकों में रोजगार संकट, बिजली और जल आपूर्ति की दिक्कतें, ये वो मुद्दे हैं जिन पर विपक्ष ने सरकार को कटघरे में खड़ा किया। पवन गुप्ता का स्थगन प्रस्ताव खारिज होना इस असंतोष की प्रतीकात्मक झलक बन गया।
दूसरी ओर, एक विधायक के मोबाइल पर रील देखने और पत्रकार पर कार्रवाई की मांग ने संसदीय गरिमा और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता, दोनों को विवाद के केंद्र में ला दिया। अगर विधायक वाकई कार्यवाही के दौरान लापरवाह थे, तो यह लोकतांत्रिक मर्यादाओं का उल्लंघन है; लेकिन अगर पत्रकार की रिपोर्टिंग पर ही दंडात्मक कार्रवाई की जाएगी, तो यह लोकतंत्र के “स्वतंत्र चौथे स्तंभ” पर चोट होगी। यह सत्र यह भी याद दिलाता है कि विधानसभा केवल विधेयक पारित करने की जगह नहीं, बल्कि जनता की आवाज़ सुनने का मंच है। विपक्ष का यह प्रयास— चाहे वॉकआउट हो या बहस में तीखापन, यह संदेश देता है कि जम्मू-कश्मीर की राजनीति में अब जनहित के प्रश्न दोबारा केंद्र में लौट रहे हैं। सवाल यह है कि क्या उमर सरकार इस शोर के भीतर जनता की वास्तविक पुकार को सुन पाएगी, या फिर यह सत्र भी विधायी औपचारिकताओं की सूची में एक और संख्या बनकर रह जाएगा?
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