प्रधानमंत्री ने पराली ना जलाने को लेकर पंजाब के किसानों की सराहना की

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[email protected] । Oct 28 2018 4:45PM

मोदी ने कहा कि पंजाब के नाभा जिले के कल्लर मजरा के लोग पराली जलाने की बजाए, अपने खेत जोतकर उसे रेत में मिला देते हैं और इस प्रक्रिया के लिए जरूरी तकनीक अपनाते हैं।

नयी दिल्ली। राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र में बढ़ते वायु प्रदूषण को लेकर जारी चिंताओं के बीच प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने रविवार को पंजाब के उन किसानों की सराहना की जो खेतों में पराली नहीं जलाते।उन्होंने साथ ही कहा कि जहां दुनिया में खासकर पश्चिम में पर्यावरण संरक्षण पर चर्चा की जा रही है और एक संतुलित जीवन शैली अपनाने के लिए नये तरीके तलाशने की कोशिश की जा रही है, वहीं भारत भी इसी तरह की समस्या से जूझ रहा है।मोदी ने कहा, ‘‘लेकिन इसके निदान के लिए हमें अपने भीतर ही झांकना होगा, अपने गौरवशाली अतीत एवं समृद्ध परंपराओं की तरफ देखना होगा और खासकर अपने आदिवासी समुदायों की जीवनशैली समझनी होगी।’’ 

उन्होंने अपने मासिक रेडियो संबोधन ‘मन की बात’ में जैविक कृषि में ‘‘शानदार प्रगति’’ करने के लिए पूर्वोत्तर के राज्यों की सराहना की।प्रधानमंत्री ने खेतों में पराली जलाने से होने वाले भीषण वायु प्रदूषण के मुद्दे की तरफ संकेत करते हुए पंजाब के एक किसान गुरबचन सिंह का उल्लेख किया जिसने अपने होने वाले सास-ससुर से यह वादा करने के लिए कहा कि वे अपने खेतों में पराली नहीं जलाएंगे।उन्होंने कहा, ‘‘आप इस बयान की सामाजिक ताकत की अच्छे से कल्पना कर सकते हैं। गुरबचन सिंह जी ने जो बात रखी, वह काफी साधारण लगती है लेकिन इससे पता चलता है कि उनका व्यक्तित्व कितना बड़ा और मजबूत है तथा हमने देखा है कि हमारे समाज में ऐसे कई परिवार हैं जो व्यापक रूप में अपने व्यक्तिगत मामलों को समाज के लाभ से जोड़ देते हैं।’’

मोदी ने कहा कि पंजाब के नाभा जिले के कल्लर मजरा के लोग पराली जलाने की बजाए, अपने खेत जोतकर उसे रेत में मिला देते हैं और इस प्रक्रिया के लिए जरूरी तकनीक अपनाते हैं। उन्होंने कहा, ‘‘भाई गुरबचन सिंह जी को बधाई। कल्लर मजरा और उन सभी जगहों के लोगों को बधाई जो पर्यावरण को स्वच्छ और प्रदूषण मुक्त बनाए रखने के लिए अपनी तरफ से सर्वश्रेष्ठ कोशिश कर रहे हैं। आप सभी एक सच्चे उत्तराधिकारी के रूप में स्वस्थ जीवनशैली की भारतीय परंपरा को आगे ले जा रहे हैं। जिस तरह कोई सागर छोटी छोटी बूंदों से बनता है, उसी तरह एक सकारात्मक पर्यावरण बनाने में छोटे छोटे रचनात्मक कदम महत्व रखते हैं।’’

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