बापू की भावनाओं पर कौन सी ताकत पड़ गई भारी? PM मोदी ने इतिहास की ऐसी-ऐसी परतें खोलीं, पूरी संसद बजाने लगी तालियां

PM ModiPM Modi
AI Image
अभिनय आकाश । Dec 8 2025 3:10PM

प्रधानमंत्री ने कहा कि जिन्ना के विरोध के पांच दिन बाद ही तत्कालीन कांग्रेस अध्यक्ष नेहरू ने नेताजी सुभाष चंद्र बोस को पत्र लिखा और उसमें जिन्ना की भावना से सहमति जताते हुए कहा ‘‘वंदे मातरम की आनंद मठ की पृष्ठभूमि मुसलमानों को इरिटेट (क्षुब्ध) कर सकती है।

संसद में राष्ट्रीय गीत वंदे मातरम की 150वीं वर्षगांठ के उपलक्ष्य में एक विशेष चर्चा हुई, जिसकी शुरुआत प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने लोकसभा में की। वंदे मातरम् का जो जनजन से जुड़ाव था, वह हमारे स्वतंत्रता संग्राम की एक लंबी गाथा की अभिव्यक्ति बन जाता है। जब भी किसी नदी की चर्चा होती है, तो उस नदी के साथ एक सांस्कृतिक धारा-प्रवाह, एक विकास-यात्रा की धारा-प्रवाह, एक जनजीवन की धारा-प्रवाह स्वतः जुड़ जाती है। लेकिन क्या कभी किसी ने सोचा है कि आजादी की जंग की पूरी यात्रा वंदे मातरम् की भावनाओं से होकर गुजरती थी? ऐसा भाव-काव्य शायद दुनिया में कहीं उपलब्ध नहीं होगा।

अंग्रेज समझ चुके थे कि 1857 के बाद भारत में लंबे समय तक टिक पाना उनके लिए मुश्किल होता जा रहा है। लोकसभा में वंदे मातरम के 150 वर्ष पूरे होने पर आयोजित चर्चा में पीएम मोदी ने वंदे मातरम के कहा कि जब वंदे मातरम् के 50 वर्ष पूरे हुए थे, तब देश गुलामी की जंजीरों में जकड़ा हुआ था जब इसके 100 वर्ष पूरे हुए, तब देश आपातकाल के अंधेरे में था

प्रधानमंत्री मोदी ने लोकसभा में 'वंदे मातरम्' की 150वीं वर्षगांठ पर कहा, "तुष्टीकरण की राजनीति के दबाव में कांग्रेस वंदे मातरम् के बंटवारे के लिए झुकी इसलिए कांग्रेस को एक दिन भारत के बंटवारे के लिए झुकना पड़ा... दुर्भाग्य से कांग्रेस की नीतियां वैसी की वैसी हैं, INC चलते-चलते MMC हो गया है।

जिस प्रकार के सपने लेकर वे आए थे, उन्हें यह साफ दिखने लगा कि जब तक भारत को बांटा नहीं जाएगा, लोगों को आपस में लड़ाया नहीं जाएगा, तब तक यहां राज करना कठिन है। तब अंग्रेज़ों ने ‘बांटो और राज करो’ का रास्ता चुना, और उन्होंने बंगाल को इसकी प्रयोगशाला बनाया। अंग्रेजों ने 1905 में बंगाल का विभाजन किया, तो वंदे मातरम् चट्टान की तरह खड़ा रहा। यह नारा गलीगली का स्वर बन गया। अंग्रेजों ने बंगाल विभाजन के माध्यम से भारत को कमजोर करने की दिशा पकड़ ली थी, लेकिन वंदे मातरम् अंग्रेजों के लिए चुनौती और देश के लिए शक्ति की चट्टान बनता गया। प्रधानमंत्री ने कहा कि बंकिम चंद्र चटर्जी द्वारा 1875 में लिखित वंदे मातरम् जब देश की ऊर्जा और प्रेरणा का मंत्र बन रहा था और स्वतंत्रता संग्राम का नारा बन गया था, तब मुस्लिम लीग की विरोध की राजनीति और मोहम्मद अली जिन्ना के दबाव में कांग्रेस झुक गई। उन्होंने कहा, ‘‘तब कांग्रेस के तत्कालीन अध्यक्ष नेहरू को अपना सिंहासन डोलता दिखा। नेहरू जी मुस्लिम लीग के आधारहीन बयानों पर करारा जवाब देते, मुस्लिम लीग के बयानों की निंदा करते, वंदे मातरम के प्रति खुद की और कांग्रेस पार्टी की निष्ठा को प्रकट करते, उसके बजाय उन्होंने वंदे मातरम् की ही पड़ताल शुरू कर दी।

बंगाल की एकता के लिए वंदे मातरम् गलीगली का नारा बन गया था, और यही नारा बंगाल को प्रेरणा देता था।1907 में जब वी.ओ. चिदंबरम पिल्लै ने स्वदेशी कंपनी का जहाज बनाया, तब उस पर भी ‘वंदे मातरम्’ लिखा था। राष्ट्रकवि सुब्रमण्यम भारती ने वंदे मातरम् का तमिल में अनुवाद किया। अंग्रेजों ने अखबारों पर रोक लगा दी, तो मैडम भीकाजी कामा ने पेरिस में एक अखबार निकाला, और उसका नाम उन्होंने वंदे मातरम रखा। हमारे जांबाज सपूत बिना किसी डर के फांसी के तख्त पर चढ़ जाते थे और आखिरी सांस तक वंदे मातरम् कहते थे। खुदीराम बोस, अशफ़ाक उल्ला ख़ान, राम प्रसाद बिस्मिल, रोशन सिंह, राजेन्द्रनाथ लाहिड़ी… हमारे अनगिनत स्वतंत्रता सेनानियों ने वंदे मातरम् कहते हुए फांसी को चूम लिया। यह अलग-अलग जेलों में होता था, लेकिन सबका एक ही मंत्र था, वंदे मातरम। चटगांव की स्वराज क्रांति में जिन युवाओं ने अंग्रेजों को चुनौती दी, वो भी इतिहास के चमकते हुए नाम थे। मास्टर सूर्यसेन को 1934 में जब फांसी दी गई तब उन्होंने अपने साथियों को एक पत्र लिखा और पत्र में एक ही शब्द की गूंज थी और वह शब्द था, वंदे मातरम।

इसे भी पढ़ें: PM Modi ने Doordarshan के ‘सुप्रभातम्’ कार्यक्रम की सराहना की

प्रधानमंत्री ने कहा कि जिन्ना के विरोध के पांच दिन बाद ही तत्कालीन कांग्रेस अध्यक्ष नेहरू ने नेताजी सुभाष चंद्र बोस को पत्र लिखा और उसमें जिन्ना की भावना से सहमति जताते हुए कहा ‘‘वंदे मातरम की आनंद मठ की पृष्ठभूमि मुसलमानों को इरिटेट (क्षुब्ध) कर सकती है।’’ इसके बाद कांग्रेस ने वंदे मातरम् के उपयोग की समीक्षा की घोषणा की जिससे पूरा देश हैरान था। मोदी ने कहा, ‘‘देशभक्तों ने इस प्रस्ताव के विरोध में देश के कोने कोने में प्रभात फेरियां निकालीं, वंदे मातरम् गीत गाया। लेकिन देश का दुर्भाग्य कि 26 अक्टूबर (1937) को कांग्रेस ने वंदे मातरम् पर समझौता कर लिया। वंदे मातरम् के टुकड़े करने के फैसले में नकाब यह पहना गया कि यह तो सामाजिक सद्भाव का काम है। लेकिन इतिहास इस बात का गवाह है कि कांग्रेस ने मुस्लिम लीग के सामने घुटने टेक दिए और मुस्लिम लीग के दबाव में यह किया।

इसे भी पढ़ें: LIVE | Parliament Winter Session Day 4: दिल्ली प्रदूषण के खिलाफ आज संसद में विपक्षी सांसद करेंगे प्रदर्शन

हमारा सपना है कि 2047 में देश विकसित भारत बनकर रहे। अगर आजादी के 50 साल पहले कोई देश की आजादी का सपना देख सकता था तो 25 साल पहले हम भी समृद्ध, विकसित भारत का सपना देख सकते हैं। मोदी ने कहा कि यहां कोई पक्ष, विपक्ष नहीं है। यहां बैठे हम सब लोगों के लिए सोचने का विषय है कि आजादी के आंदोलन के परिणामस्वरूप हम यहां बैठे हैं। हम जन प्रतिनिधियों के लिए वंदे मातरम के ऋण को स्वीकार करने का अवसर है

इसे भी पढ़ें: Vande Mataram Lok Sabha Discussion: नेहरू को अपना सिंहासन डोलता नजर आया... लोकसभा में बोले पीएम नरेंद्र मोदी

 प्रधानमंत्री ने वंदे मातरम् की रचना और इसके राष्ट्र गीत बनने में पश्चिम बंगाल की भूमिका का जिक्र करते हुए कहा कि अंग्रेजों ने सबसे पहले बंगाल के टुकड़े करने की दिशा में काम किया और उनका मानना था कि एक बार बंगाल टूट गया तो देश भी टूट जाएगा। उन्होंने कहा, 1905 में अंग्रेजों ने बंगाल का विभाजन किया। जब उन्होंने यह पाप किया तब वंदे मातरम् चट्टान की तरह खड़ा रहा। बंगाल की एकता के लिए वंदे मातरम गली-गली का नाद बन गया था। उन्होंने कहा कि हम देशवासियों को गर्व होना चाहिए कि दुनिया के इतिहास में कहीं भी ऐसा कोई काव्य नहीं हो सकता, ऐसा कोई भाव-गीत नहीं हो सकता जो सदियों तक एक लक्ष्य के लिए कोटि-कोटि लोगों को प्रेरित करता हो। मोदी ने कहा कि पूरे विश्व को पता होना चाहिए कि गुलामी के कालखंड में भी ऐसे लोग पैदा होते थे जो इस तरह के गीत रचते थे। उन्होंने कहा कि हम गर्व से कहेंगे तो दुनिया भी मानना शुरू कर देगी। प्रधानमंत्री ने कहा कि महात्मा गांधी ने दक्षिण अफ्रीका से प्रकाशित साप्ताहिक ‘इंडियन ओपिनियन’ में दो दिसंबर 1905 को लिखा था, गीत वंदे मातरम, जिसे बंकिम चंद्र ने रचा है, पूरे बंगाल में अत्यंत लोकप्रिय हो गया है। स्वदेशी आंदेलन के दौरान बंगाल में विशाल सभाएं हुईं, लाखों लोग एकत्रित हुए और सबने बंकिम का यह गीत गाया। उन्होंने कहा कि वंदे मातरम इतना महान था तो पिछली सदी में इसके साथ इतना बड़ा अन्याय क्यों हुआ ? वंदे मातरम के साथ विश्वासघात क्यों हुआ ? कौन सी ताकत थी जिसकी भावना बापू की भावना पर भारी पड़ गई, जिसने वंदे मातरम जैसी पवित्र भावना को भी विवादों में घसीट दिया।

All the updates here:

अन्य न्यूज़