इंदिरापुरम: जलजमाव से निजात के लिए सीवर-ड्रेनेज सिस्टम के पोस्टमार्टम की है जरूरत

इंदिरापुरम की नालियों के रिफॉर्मेशन का मुद्दा मैं विगत कई सालों से उठाता आ रहा हूं तथा विशेषज्ञों को अप्वॉइंट करवाकर उनके साथ इसका नक्शा भी मैंने बनवाया है। अब मुझे उम्मीद है कि इस समस्या का समाधान शीघ्र निकलेगा।
गाजियाबाद विकास प्राधिकरण और गाजियाबाद नगर निगम की आपसी खींचातानी में इंदिरापुरम के 7 वार्डों के लोग बरसात में नारकीय जीवन जीने को अभिशप्त हो जाते हैं। कहने को तो जीडीए ने नगर निगम को इंदिरापुरम की कॉलोनियों को हस्तांतरित नहीं किया है, क्योंकि इसके एवज में नगर निगम मोटी धनराशि की मांग कर रहा है। लेकिन इसी ऊहापोह में यहां की पॉश कॉलोनियों सहित आम कॉलोनियों के लोगों की जो फजीहत हो रही है।
यह स्थिति इस बात की चुगली कर रही है कि राजनीतिक सत्ता बदलने से प्रशासनिक संस्कार नहीं बदल जाते। लालफीताशाही नहीं बदल जाती है! और जबतक यह नहीं बदलेगी, इंदिरापुरम के लोगों का समग्र कल्याण होना कठिन है। हैरत की बात तो यह है कि मोदी सरकार के 9 साल, योगी सरकार के 6 साल और नगर निगम सरकार में भाजपा सरकार के ढाई दशक से अधिक बीत जाने के बावजूद आज जो इंदिरापुरम की हालत है, उसपर तरस खाना स्वाभाविक है।
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ऐसा नहीं है कि मैं अपनी पार्टी या उसके मातहत चल रहे प्रशासन की आलोचना कर रहा हूँ, बल्कि आप लोगों से वह अनुभूत सत्य साझा कर रहा हूँ, जिस पर न केवल जनता बल्कि जनप्रतिनिधियों को भी गौर करना चाहिए। ऐसा आलम इसलिए है कि आपसी तालमेल और विभागीय समझदारी विकसित न होने की वजह से बेतरतीब तरीके से फाइलें तो बढ़ती चली जाती हैं, वर्ष दर वर्ष वो मोटी होती जाती हैं, लेकिन जनता को समाधान नहीं मिलता। हां, यह बात जरूर है कि जनता को समाधान देने की कोशिश में धनराशि के वारे-न्यारे होते रहते हैं।
यूँ तो वर्षा पर चर्चा करना यहां जरूरी है। क्योंकि पहले तो हम सभी वर्षा ऋतु का इंतजार करते हैं और बारिश ना हो तो मायूस हो जाते हैं, और फिर यदि एक या दो दिन भी बारिश बरस जाए तो सड़कों पर जलभराव के कारण परेशान भी हो जाते हैं। क्योंकि जलभराव यहां की एक प्रमुख समस्या बना दी गई है। जीडीए प्रशासन बिल्डिंग पर बिल्डिंग के प्लान सैंक्शन करता जा रहा है। जीडीए खुशी खुशी बिल्डर द्वारा जमा कराए गए एडिशनल टॉवर की मोटी फीस लेता रहा, परंतु यह ध्यान नहीं दिया कि आवश्यक इंफ्रास्ट्रक्चर जैसे कि नाली, सीवर, पानी की सप्लाई, सड़कों का चौड़ीकरण आदि को भी बढ़ाने की जरूरत होगी। इस मसले पर सपा-बसपा की सरकार और उसके मातहत प्रशासन की उदासीनता तो समझ में आती है, लेकिन भाजपा सरकार का 6 साल गुजर जाना और जनता को समाधान नहीं मिलना, चिंतित करता है।
वैसे तो वर्ष 2017 में भाजपा उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव में जीत कर आई तथा कुछ माह पश्चात ही नगर निकाय के चुनाव भी हुए। जिसमें वार्ड नम्बर 99 से पार्षद का चुनाव जीतने के बाद गाजियाबाद विकास प्राधिकरण के अधिकारियों के साथ बैठक कर इन समस्याओं को उठाया। चूंकि मैं आर्किटेक्चर बैकग्राउंड से हूं और बहुत से मॉल, होटल एवं बड़ी-बड़ी बिल्डिंगों के निर्माण का मैं हिस्सा रहा हूं और एक अच्छे डिजाइन की अहमियत को जानता हूं। इसीलिए मैंने इंदिरापुरम के नाली आदि के नक्शे को पढ़ने की इच्छा अधिकारियों से जताई, परंतु अधिकारियों ने कुछ दिन बाद यह बताया कि प्राधिकरण में इन सर्विसेस को लेकर कोई भी नक्शे उपलब्ध नहीं हैं, जिससे मुझे बड़ा आश्चर्य हुआ। चूंकि यूपी में एक लंबे समय तक समाजवादी पार्टी तथा बहुजन समाज पार्टी की सरकार रही है, इसलिए मैं इस सोच में पड़ गया कि आखिरकार किस तरह से गाजियाबाद विकास प्राधिकरण काम करता रहा है, इस पर मुझे बहुत खेद हुआ।
परंतु मैंने उस समय के चीफ इंजीनियर बीएन सिंह से कहा कि एक बार एजेंसी को अपॉइंटमेंट कर इंदिरापुरम के इन सभी सर्विसेज का सर्वे कराकर एक बीपीएल एवं डिजाइन करवाया जाए। तकरीबन 8 महीने के टेंडर की प्रक्रिया के बाद एक एजेंसी अपॉइंट की गई, जिसने सारे इंदिरापुरम की नालियों के वाटर लेवल का सर्वे आदि करने का काम शुरू किया। हालांकि उसके कुछ समय बाद ही वैश्विक महामारी कोरोना के आने के कारण जीडीए की प्राथमिकता बदल गई एवं यह कार्य पीछे छूट गया। फिर कोरोना काल के समाप्त होने के बाद यह कार्य फिर आरंभ हुआ। ततपश्चात उस एजेंसी ने 2022 के अंत तक अपनी संपूर्ण रिपोर्ट प्राधिकरण में जमा कर दी।
मैंने पाया कि इसी सर्वे रिपोर्ट के अनुरूप सीआईएसएफ रोड पर एक मोटी रकम खर्च करके प्राधिकरण के द्वारा एक बड़े सीवर की लाइन भी डाली गई, परंतु ड्रेनेज की रिपोर्ट सबसे आखिर में जमा होने के कारण तथा सभी पार्षदों का कार्यकाल समाप्त हो जाने के बाद यह विषय बीच में ही रुक गया। हमारा मानना है कि भारत एक विकासशील देश है और यहां पर नागरिक, जनप्रतिनिधि तथा प्रशासन सभी की जिम्मेदारी है कि अपने देश और प्रदेश के लिए कुछ समय निकालें एवं अपनी जिम्मेदारियों का जागरूक रहकर निर्वहन करे।
आपको बता देना चाहता हूं कि अपनी इसी जिम्मेदारी को समझते हुए अपना कार्यकाल समाप्त हो जाने के बावजूद भी इस सर्वे एवं रिपोर्ट की बात बदले हुए अधिकारियों की जानकारी में डाला। नगर निगम के पार्षदों के कार्यकाल के समाप्त हो जाने के बाद प्रशासन द्वारा इंदिरापुरम को जीडीए से नगर निगम में हस्तांतरित किए जाने मुहिम चली। पार्षद नगर निगम के सदन में अपने क्षेत्र के विकास के लिए आवाज उठा सकता है, परंतु इस अधिकार से इंदिरापुरम के पार्षद वंचित हैं, क्योंकि नगर निगम बड़ी आसानी से यह कह देता है कि इंदिरापुरम अभी नगर निगम को हैंड ओवर नहीं हुआ है। वाह रे वाह, इंदिरापुरम से नगर निगम भी टैक्स लेगा और जीडीए भी टैक्स लेगा, परंतु जनहित के काम करने के समय एक दूसरे के ऊपर डाला जाएगा। यह प्रशासनिक और नीतिगत विडम्बना नहीं है तो क्या है? इसी मुद्दे को पूरे जोर से इंदिरापुरम के पार्षद समय-समय पर सदन में उठाते आए हैं तथा अब आलम यह है कि अधिकारीगण यदि नहीं चेते तो एक जबर्दस्त आंदोलन भी बहुत जल्द किया जाएगा। इंदिरापुरम की जनता जबतक सड़कों पर नहीं उतरेगी, तबतक उसकी समस्याओं का समाधान नहीं मिलेगा, ऐसा प्रतीत होता है।
स्मरण करवा दें कि अभी हाल ही में इंदिरापुरम के सभी भाजपा पार्षद गाजियाबाद विकास प्राधिकरण में जीडीए सेक्रेटरी (पीसीएस अधिकारी) से मिले तथा इंदिरापुरम की जलभराव की समस्या उठाई। सभी जनप्रतिनिधियों ने एक सुर में इस समस्या के स्थाई निराकरण के लिए एजेंसी द्वारा जमा कराई गई डीपीआर के अनुसार काम करने के लिए भी कहा। जिस पर सेक्रेटरी बृजेश कुमार ने तुरंत इंजीनियरिंग टीम के अधिकारियों को अपने समक्ष बुलाकर पूछताछ की। तब अभियांत्रिकी टीम ने बताया कि डीपीआर के अनुसार इंदिरापुरम को जलभराव से मुक्ति दिलाने के लिए 300 करोड़ रुपए का खर्चा आएगा, जिसे सुनकर अधिकारीगण भी सोच में पड़ गए। परंतु हमने उन्हें बताया कि इसमें से सीवर लाइन पर भी एक करोड़ के लगभग काम हो चुका है। नगर निगम भी इंदिरापुरम कॉलोनी को टेक ओवर करने के लिए विकास प्राधिकरण से 200 करोड़ पर मांगता है, लेकिन विकास प्राधिकरण 100 करोड़ रुपए किस्तों में नगर निगम को देने के लिए इस शर्त पर राजी है कि यह सारा पैसा इंदिरापुरम योजना में ही खर्च होगा।
बहरहाल, आलम यह है कि ना नौ मन तेल होगा, ना राधा नाचेगी। यह परेशानी आरडब्ल्यूए, जो कि जीडीए को मेंटेनेंस शुल्क जमा कराने में सहायक रहती है, निगम पार्षद, विधायक एवं सांसद के सामूहिक प्रयास से ही हल/निस्तारण होगी। वर्षा में जलभराव स्वाभाविक है परंतु घंटे 2 घंटे में सड़कों पर से ड्रेन क्लियर हो जाना चाहिए। मेरा मानना है कि जलभराव की समस्या से पूर्ण रूप से निजात पाया जा सकता है परंतु उसके लिए एक बहुत बड़ा बजट एवं रिफॉर्मेशन की आवश्यकता है। वहीं, तत्काल समाधान के लिए नालियों की सफाई, एसटीपी में पंपों द्वारा पानी का खींचे जाना आदि प्रावधानों से राहत मिल सकती है।
यूँ तो वर्षा द्वारा जलभराव करीब-करीब संपूर्ण भारत में देखा जाता है। लेकिन अब देखना यह है कि एक बड़े बजट के साथ तथा एक अच्छे सुपरविजन में क्या इंदिरापुरम को कोई स्थाई सलूशन मिल सकेगा। आपको पता होना चाहिए कि जलभराव की इस समस्या को लेकर और उससे जुड़े इन सभी सूक्ष्म तथ्यों को पता लगाने के लिए हमने सड़क पर रहकर एवं विशेषज्ञों के साथ पूर्ण मेहनत की है। पहले एक पार्षद और अब पूर्व पार्षद होने के नाते सांसद जनरल वी के सिंह, विधायक सुनील शर्मा एवं मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ की सहायता से इंदिरापुरम को स्थाई सलूशन मिले, इसके लिए पूरा प्रयास किया जा रहा है।
- अभिनव जैन
पूर्व निगम पार्षद, वार्ड नम्बर 99
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