उत्तराखंड में राष्ट्रपति शासन ही विकल्प बचा थाः वेंकैया

उत्तराखंड में राष्ट्रपति शासन लगाना अस्थायी उपाय है और राज्यपाल की रिपोर्ट के आधार पर विधानसभा को बहाल किया जा सकता है। उच्च न्यायालय द्वारा राज्य में राष्ट्रपति शासन रद्द करने के एक दिन बाद आज यह बात केंद्रीय मंत्री एम. वेंकैया नायडू ने कही। नायडू ने कहा कि केंद्र सरकार का स्पष्ट मानना है कि उत्तराखंड में संवैधानिक संकट था क्योंकि विधानसभा में विनियोग विधेयक पारित नहीं किया गया।
संसदीय मामलों के केंद्रीय मंत्री नायडू ने कहा, ‘‘हमारा मानना है कि अनुच्छेद 356 के प्रयोग के अलावा कोई रास्ता नहीं था। विधानसभा को भंग नहीं किया गया। क्योंकि संवैधानिक संकट खड़ा हो गया था, अस्थायी रूप से राष्ट्रपति शासन लगाया गया और किसी भी वक्त विधानसभा को बहाल किया जा सकता था।’’ उन्होंने कहा, ‘‘यह राज्यपाल की रिपोर्ट और वहां की स्थिति पर निर्भर करता। जहां तक हमारी बात है तो हम हमेशा कानून का सम्मान करते हैं। हम संविधान का सम्मान करते हैं।’’ उत्तराखंड उच्च न्यायालय द्वारा राज्य में राष्ट्रपति शासन को रद्द करने और हरीश रावत के नेतृत्व वाली कांग्रेस सरकार को पुनर्बहाल करने के एक दिन बाद उनकी यह टिप्पणी आई है। रावत को 29 अप्रैल को विधानसभा में बहुमत साबित करने को कहा गया है। नायडू ने कहा कि एक तरफ तत्कालीन सरकार ने कहा कि विनियोग विधेयक को सर्वसम्मति से पारित कर दिया गया और दूसरी तरफ विधानसभा अध्यक्ष ने कुछ विधायकों को अयोग्य करार देते हुए कहा कि वे सरकार का विरोध कर रहे हैं। उन्होंने कहा, ‘‘ये दोनों बातें एक साथ कैसे हो सकती हैं? एक भ्रम और विरोधाभास है जिसे दूर करना होगा।’’ पिछले महीने संसदीय मामलों की कैबिनेट समिति की बैठक में राष्ट्रपति शासन लागू करने का निर्णय किया गया।
नायडू ने 29 अप्रैल को ऐसे समय में विधानसभा में शक्ति परीक्षण किए जाने पर सवाल खड़ा किया जब कांग्रेस के नौ विधायकों को अयोग्य करार दिया गया है। नायडू ने कहा, ‘‘विधायकों को अयोग्य करार देकर आप शक्ति परीक्षण कैसे करा सकते हैं? शक्ति परीक्षण निष्पक्ष होना चाहिए। आपने नौ विधायकों को अयोग्य करार दिया जो आपका विरोध कर रहे हैं और फिर आप कहते हैं कि मुझे बहुमत प्राप्त हो गया..यह सच्चाई का मजाक बनाना होगा और लोकतंत्र के मूल सिद्धांतों के खिलाफ होगा।’’
उन्होंने कहा कि ‘‘विरोधाभास और भ्रम’’ है जिसे दूर करना होगा। उन्होंने कहा, ‘‘बहस चल रही है और बहस चलने दीजिए। कल अगर कोई स्थिति पैदा होती है और अगर कोई सरकार बहुमत खोती है और अगर कोई विधानसभा अध्यक्ष तय करता है कि अल्पमत (सरकार) ही बहुमत है.. क्या कोई उपचार नहीं है? अगर कोई शक्ति परीक्षण से पहले विधायकों को अयोग्य करार देता है.. क्या कोई उपचार नहीं है? इस पर विचार करना है और चर्चा करनी है।’’ उन्होंने उम्मीद जताई कि ‘‘उच्चतम न्यायालय इन सभी बिंदुओं पर विचार करेगा।’’ उन्होंने कहा, ‘‘हम अदालत के अंतिम फैसले की प्रतीक्षा करें। जहां तक हमारी बात है तो हमारा मानना है कि उत्तराखंड में अनुच्छेद 356 लागू करने के अलावा कोई विकल्प नहीं था क्योंकि संवैधानिक संकट पैदा हो गया था।’’
उन्होंने आरोप लगाए कि मुख्यमंत्री ‘‘बहुमत खो चुके हैं’’ और वह ‘‘अनैतिक कृत्यों में संलिप्त हैं जो टेलीविजन पर प्रसारित हो चुका है। इसका संज्ञान नहीं लिया गया और वे हमें ‘‘प्रवचन’’ दे रहे हैं।’’ नायडू ने दावा किया कि कांग्रेस विधायकों का अपने राज्य और राष्ट्रीय स्तर के नेतृत्व पर विश्वास नहीं है और ‘‘इसलिए कई लोग जा रहे हैं। हमें कैसे जिम्मेदार ठहराया जा सकता है?’’ उन्होंने कहा कि राज्य में राष्ट्रपति शासन लागू करते समय एसआर बोम्मई मामले की भावना को ध्यान में रखा गया। नायडू ने कहा, ‘‘जहां तक हमारी बात है तो हम हमेशा कानून और संविधान का सम्मान करते हैं। उच्चतम न्यायालय जो भी फैसला देगा उसका पालन करना होगा। हम न्यायपालिका और संवधिान का सम्मान करते हैं लेकिन स्थिति को स्पष्ट करना होगा।’’
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