Shaurya Path: Prithviraj Chavan ने Operation Sindoor की सफलता पर सवाल उठाकर सीधे-सीधे Indian Armed Forces का अपमान किया है

 Operation Sindoor and Prithviraj Chavan
ANI

जब पूरी दुनिया के रक्षा विशेषज्ञ, युद्ध विश्लेषक और सैन्य संस्थान ऑपरेशन सिंदूर को एक सफल, सटीक और निर्णायक सैन्य अभियान मान रहे हैं, तब भारत के भीतर से किसी वरिष्ठ नेता का यह कहना दुर्भाग्यपूर्ण है कि “भारत पहले ही दिन पूरी तरह हार गया”।

महाराष्ट्र के पूर्व मुख्यमंत्री पृथ्वीराज चव्हाण का ऑपरेशन सिंदूर को लेकर दिया गया बयान न केवल तथ्यहीन है, बल्कि भारतीय सैन्य बलों के शौर्य, बलिदान और वैश्विक प्रतिष्ठा पर सीधा हमला भी है। देखा जाये तो पृथ्वीराज चव्हाण ने सवाल नहीं पूछा है बल्कि भारतीय सेना का सीधे-सीधे अपमान किया है। देखा जाये तो जब कोई नेता भारतीय संविधान की दुहाई देकर सवाल पूछने की बात करता है, तब यह देखना भी ज़रूरी हो जाता है कि वह सवाल राष्ट्रहित में हैं या राष्ट्र को नीचा दिखाने के लिए है। यह सही है कि पृथ्वीराज चव्हाण को संविधान ने अधिकार दिया है सवाल पूछने का। लेकिन देश को भी अधिकार है यह पूछने का कि क्या ऐसे सवाल दुश्मन को ताकत नहीं देते?

जब पूरी दुनिया के रक्षा विशेषज्ञ, युद्ध विश्लेषक और सैन्य संस्थान ऑपरेशन सिंदूर को एक सफल, सटीक और निर्णायक सैन्य अभियान मान रहे हैं, तब भारत के भीतर से किसी वरिष्ठ नेता का यह कहना दुर्भाग्यपूर्ण है कि “भारत पहले ही दिन पूरी तरह हार गया”। पृथ्वीराज चव्हाण ने जो कहा वह या तो जानबूझकर दिया गया राष्ट्रविरोधी वक्तव्य है या फिर उनमें सैन्य समझ का घोर अभाव है। पृथ्वीराज चव्हाण को भारतीय वायुसेना पर हमला बोलने से पहले यह देखना चाहिए था कि दुनिया के सबसे प्रतिष्ठित सैन्य विश्लेषक यह बता चुके हैं कि पिछले कई दशकों की सबसे बड़ी स्टैंडऑफ एरियल एंगेजमेंट में भारतीय वायुसेना ने चीनी तकनीक से लैस पाकिस्तानी सिस्टम को निष्प्रभावी कर दिया था। पृथ्वीराज चव्हाण को बताना चाहिए कि अगर उनके अनुसार भारत “पूरी तरह हार गया” था, तो पाकिस्तान को युद्धविराम के लिए फोन क्यों करना पड़ा? पृथ्वीराज चव्हाण को बताना चाहिए कि यदि उनके अनुसार, भारतीय वायुसेना ग्राउंडेड थी, तो पाकिस्तानी एयरबेस तबाह कैसे हुए थे? पृथ्वीराज चव्हाण को बताना चाहिए कि अगर उनके मुताबिक भारतीय सेना हार गयी थी तो तमाम देशों की मिलिट्री अपने जवानों को प्रशिक्षण के दौरान ऑपरेशन सिंदूर के तहत भारतीय सेना के पराक्रम का पाठ क्यों पढ़ा रही है?

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पृथ्वीराज चव्हाण कह रहे हैं कि वह माफी नहीं मांगेंगे। देखा जाये तो उन्हें माफी मांग कर अपना समय बर्बाद नहीं करना चाहिए क्योंकि उनके घोर आपत्तिजनक वक्तव्य के लिए भारतीय उन्हें कभी माफ नहीं करेंगे। कांग्रेस पार्टी को चाहिए कि वह पृथ्वीराज चव्हाण पर सख्त कार्रवाई करे लेकिन इसकी संभावना बेहद कम है क्योंकि कांग्रेस पार्टी के तमाम नेता पूर्व में सर्जिकल स्ट्राइक के सबूत मांग चुके हैं, बालाकोट एयरस्ट्राइक पर सवाल उठा चुके हैं और अब जब ऑपरेशन सिंदूर को भारत की हार बताया जा रहा है तो पार्टी चुपचाप तमाशा देख रही है। देशभक्त जनता आगामी चुनावों में इसका जवाब अवश्य ही कांग्रेस को देगी।

देखा जाये तो कांग्रेस पार्टी के नेताओं को ऑपरेशन सिंदूर भले हार लगे लेकिन यह भारत की आतंकवाद के खिलाफ बहुत बड़ी जीत थी और यह सिर्फ बदले की कार्रवाई नहीं न्याय की प्रतीक थी। पहलगाम हमले के बाद भारत ने जब ऑपरेशन सिंदूर शुरू किया तो उसने दक्षिण एशिया की रणनीतिक तस्वीर बदल कर रख दी थी। ऑपरेशन सिंदूर को समझने के लिए यह जानना ज़रूरी है कि यह कोई भावनात्मक प्रतिक्रिया नहीं थी। यह एक नियोजित, बहु-स्तरीय और माइक्रो-लेवल इंटेलिजेंस आधारित अभियान था। भारत ने आतंक के पूरे इकोसिस्टम को स्कैन किया था। इसमें दुश्मन के प्रशिक्षण शिविर, लॉन्चपैड, हथियार डिपो तथा कमांड सेंटर शामिल थे और फिर बेहद सीमित समय में, बेहद सीमित हथियारों से बेहद सटीक वार कर दिया था। इस तरह ऑपरेशन सिंदूर का उद्देश्य बदला लेना नहीं, बल्कि न्याय स्थापित करना था। यह उन हाथों को तोड़ने की कार्रवाई थी जो भारत की ओर बार-बार उठते रहे हैं। साथ ही आतंकियों को और उन्हें पालने-पोसने वाले ढांचे को भी सख्त संदेश देना था। साथ ही भारत के लक्ष्य नागरिक और आबादी वाले क्षेत्र नहीं बल्कि आतंकी अड्डे थे। यही वह नैतिक अंतर है जो भारत को आतंक के प्रायोजकों से अलग खड़ा करता है।

हम आपको बता दें कि भारतीय वायुसेना ने राफेल, स्कैल्प और हैमर जैसे अत्याधुनिक हथियारों का उपयोग करते हुए केवल 23 मिनट में मिशन को अंजाम दिया था। पाकिस्तान के चीनी एयर डिफेंस सिस्टम को जाम कर दिया गया था, उसके रडार अंधे कर दिए गए थे और आतंकी ढांचे को ध्वस्त कर दिया गया था। ऑपरेशन सिंदूर के बाद पाकिस्तान ने हताशा में सीमावर्ती इलाकों के रिहायशी मकानों, मंदिरों, गुरुद्वारों और चर्चों को निशाना बनाया था। पाकिस्तान जब नहीं माना तो भारत ने लाहौर और गुजरांवाला के रडार सिस्टम तबाह कर दिए। साथ ही पाकिस्तान की ओर से भेजे जाने वाले तुर्की और चीन के सारे ड्रोन हमले विफल कर दिये गये। इसके बाद, 10 मई को पाकिस्तान के DGMO को भारत के DGMO से युद्धविराम की बात करनी पड़ी। युद्धविराम के बाद भी पाकिस्तान अपनी फितरत से बाज नहीं आया। ड्रोन और UAV भारतीय सैन्य और नागरिक इलाकों में भेजे गए, जिन्हें भारतीय वायु रक्षा प्रणाली ने पूरी तरह नाकाम कर दिया।

पृथ्वीराज चव्हाण को पता होना चाहिए कि ऑपरेशन सिंदूर की सबसे निर्णायक चोट केवल सैन्य नहीं थी। भारत ने गैर-सैन्य मोर्चे पर भी पाकिस्तान की रीढ़ तोड़ दी थी। सिंधु जल संधि को निलंबित करना एक ऐतिहासिक निर्णय था। पाकिस्तान की कृषि, उसकी अर्थव्यवस्था और उसकी जनसंख्या का बड़ा हिस्सा इसी जल प्रणाली पर निर्भर है। यह फैसला पाकिस्तान के लिए एक रणनीतिक झटका था। संदेश साफ था कि खून और पानी एक साथ नहीं बह सकते। इसके साथ ही अटारी-वाघा सीमा बंद कर दी गई थी, द्विपक्षीय व्यापार पूरी तरह रोक दिया गया था, पाकिस्तानी नागरिकों के वीज़ा रद्द किए गए थे और सांस्कृतिक मंच पूरी तरह बंद कर दिए गए थे। इसके अलावा, कूटनीतिक स्तर पर पाकिस्तानी उच्चायोग के सैन्य सलाहकारों को अवांछित घोषित कर उसके स्टाफ में भी कटौती की गई थी।

इस पूरे घटनाक्रम में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का नेतृत्व निर्णायक साबित हुआ। उन्होंने एक नया राष्ट्रीय सुरक्षा सिद्धांत स्थापित किया कि भविष्य में कोई भी आतंकी हमला युद्ध की कार्रवाई माना जाएगा। 12 मई को राष्ट्र के नाम संबोधन में प्रधानमंत्री ने स्पष्ट शब्दों में कहा था कि ऑपरेशन सिंदूर केवल एक नाम नहीं, बल्कि करोड़ों भारतीयों की भावनाओं और न्याय के संकल्प का प्रतीक है। उन्होंने दो टूक कहा था कि आतंक और बातचीत साथ नहीं चल सकते, आतंक और व्यापार साथ नहीं चल सकते और पानी व खून एक साथ नहीं बह सकते।

बहरहाल, कुल मिलाकर देखें तो ऑपरेशन सिंदूर की उपलब्धियाँ अभूतपूर्व रहीं। नौ बड़े आतंकी ठिकाने नष्ट किए गए, सौ से अधिक आतंकवादी मारे गए, पाकिस्तान के भीतर गहराई तक प्रहार हुआ, उसके एयर डिफेंस सिस्टम ध्वस्त हुए और भारतीय सेनाओं ने अभूतपूर्व समन्वय का प्रदर्शन किया। यह केवल एक सैन्य जीत नहीं थी, यह भारत के आत्मविश्वास और वैश्विक कद की घोषणा थी।

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