वकील के जरिए प्रतिनिधित्व कराने का अधिकार कानूनी प्रक्रिया का हिस्सा है: उच्चतम न्यायालय

Supreme Court

उच्चतम न्यायालय ने उच्च न्यायालय से कहा कि अगर मामले में याचिकाकर्ता का प्रतिनिधिनत्व कोई वकील नहीं कर रहा हो तो वह अपनी सहायता के लिए अदालत मित्र (एमीकस क्यूरी) नियुक्त कर सकता है।

नयी दिल्ली। उच्चतम न्यायालय ने कहा है कि किसी मामले में वकील के जरिए प्रतिनिधित्व कराने का अधिकार कानूनी प्रक्रिया का हिस्सा है। इसी के साथ शीर्ष अदालत ने वह अपील खारिज करने का इलाहाबाद उच्च न्यायालय का फैसला रद्द कर दिया जिसे 1987 में एक शख्स की हत्या के लिए दोषी ठहराए गए व्यक्ति ने दायर की थी जिसमें उसने कहा था कि उसका वकील सुनवाई के दौरान मौजूद नहीं था। शीर्ष अदालत ने अपील बहाल करते हुए उच्च न्यायालय से कहा कि वह जल्दी किसी तारीख पर इसपर सुनवाई करने के लिए विचार करे। साथ में उच्चतम न्यायालय ने उच्च न्यायालय से यह भी कहा कि अगर मामले में याचिकाकर्ता का प्रतिनिधिनत्व कोई वकील नहीं कर रहा हो तो वह अपनी सहायता के लिए अदालत मित्र (एमीकस क्यूरी) नियुक्त कर सकता है। 

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न्यायमूर्ति यूयू ललित की अगुवाई वाली पीठ ने कहा, “यह स्वीकार्य है कि वकील के जरिए प्रतिनिधित्व कराने का अधिकार कानूनी प्रक्रिया का हिस्सा है और यह भारत के संविधान के अनुच्छेद 21 के तहत अधिकार गारंटी को संदर्भित है।“ इस पीठ में न्यायमूर्ति विनीत सरण और न्यायमूर्ति एस रविंद्र भट भी शामिल थे। पीठ ने 18 दिसंबर को पारित अपने आदेश में कहा कि मामले में आरोपी का प्रतिनिधित्व कर रहा वकील किसी कारण से उपलब्ध नहीं है तो अदालत अपनी सहायता के लिए एमीकस क्यूरी नियुक्त करने के लिए स्वतंत्र है लेकिन किसी भी मामले में ऐसा नहीं होना चाहिए कि मामले का प्रतिनिधित्व नहीं हो रहा हो। 

शीर्ष अदालत ने उच्च न्यायालय के अप्रैल 2017 में फैसले के खिलाफ दोषी की याचिका पर सुनवाई के दौरान यह आदेश दिया है। उच्च न्यायालय ने हत्या के एक मामले में दोषी को उम्र कैद की सज़ा सुनाए जाने के निचली अदालत के फैसले के खिलाफ उसकी अपील खारिज कर दी थी। उसने याचिकाकर्ता के वकील के इस अभिवेदन पर ध्यान दिया कि अपीलकर्ता की ओर से किसी भी प्रतिनिधित्व की अनुपस्थिति में उच्च न्यायालय ने अपील का निपटारा किया था। पीठ ने कहा कि उच्च न्यायालय ने यह देखते हुए भी मामले की सुनवाई की कि व्यक्तिका प्रतिनिधित्व कोई वकील नहीं कर रहा था और निचली अदालत के नजरिया की पुष्टि कर दी। 

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शीर्ष अदालत ने कहा, “ ऐसी परिस्थिति में, हमारे पास उच्च न्यायालय द्वारा पारित आदेश को निरस्त करने और आपराधिक अपील को बहाल करने के सिवाए कोई विकल्प नहीं है... “ पीठ ने कहा कि उच्च न्यायालय अपील का नए सिरे से निपटारा करे। उच्चतम न्यायालय ने रेखांकित किया कि उच्च न्यायालय में अपील के लंबित रहने के दौरान व्यक्ति जमानत पर था लेकिन उसे हिरासत में ले लिया गया है। पीठ ने कहा, “ ऐसी परिस्थिति में हम उच्च न्यायालय से आग्रह करते हैं कि वह आपराधिक अपील पर जल्दी किसी तारीख पर सुनवाई करने पर विचार करे और हम उच्च न्यायालय की रजिस्ट्री को निर्देश देते हैं कि वह अपील को निर्देशों के लिए 11 जनवरी 2021 को उचित अदालत के समक्ष सूचीबद्ध करे।“

पीठ ने कहा कि उच्च न्यायालय में अपील के लंबित रहने तक अपीलकर्ता को हिरासत में रखा जा सकता है। शीर्ष अदालत ने इसी के साथ उसकी अपील का निपटान कर दिया। इस व्यक्ति को अन्य आरोपी के साथ हत्या के एक मामले में निचली अदालत ने उम्र कैद की सज़ा सुनाई है।

डिस्क्लेमर: प्रभासाक्षी ने इस ख़बर को संपादित नहीं किया है। यह ख़बर पीटीआई-भाषा की फीड से प्रकाशित की गयी है।


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