सबरीमला मंदिर का फैसला लटका, असहमति के चलते 7 जजों की बेंच को भेजा गया

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पांच जजों की बेंच ने 3:2 के अनुपात से मामले को बड़ी बेंच को सौंप दिया है। फिलहाल जो पिछला फैसला था वो बना रहेगा।

नयी दिल्ली। केरल में स्थित सबरीमला मंदिर में सभी आयु वर्ग की महिलाओं को प्रवेश की अनुमति देने के सुप्रीम कोर्ट के फैसले पर पुनर्विचार के लिये दायर याचिकाओं पर सर्वोच्च अदालत ने कहा कि मामले को 7 जजों की बेंच के पास भेजा जाए। आपको बता दें कि पांच जजों की बेंच ने 3:2 के अनुपात से मामले को बड़ी बेंच को सौंप दिया है। फिलहाल जो पिछला फैसला था वो बना रहेगा। 

  • प्रधान न्यायाधीश ने कहा कि धार्मिक स्थलों पर महिलाओं के प्रवेश पर प्रतिबंध केवल सबरीमला तक ही सीमित नहीं है बल्कि अन्य धर्मों में भी ऐसा है।
  • मस्जिदों में महिलाओं के प्रवेश पर रोक का हवाला देते हुए प्रधान न्यायाधीश ने कहा कि उच्चतम न्यायालय को सबरीमला जैसे धार्मिक स्थलों के लिए एक समान नीति बनाना चाहिए।

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प्रधान न्यायाधीश रंजन गोगोई की अध्यक्षता वाली पांच सदस्यीय संविधान पीठ 28 सितंबर, 2018 के फैसले के पश्चात हुये हिंसक विरोध के बाद 56 पुनर्विचार याचिकाओं सहित कुल 65 याचिकाओं पर फैसला सुनायेगी। संविधान पीठ ने इन याचिकाओं पर इस साल छह फरवरी को सुनवाई पूरी की थी और कहा था कि इन पर फैसला बाद में सुनाया जायेगा।

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इन याचिकाओं पर सुनवाई करने वाली संविधान पीठ के सदस्यों में न्यायमूर्ति आर एफ नरिमन, न्यायमूर्ति ए एम खानविलकर, न्यायमूर्ति धनन्जय वाई चन्द्रचूड़़ और न्यायमूर्ति इन्दु मल्होत्रा शामिल हैं। सबरीमला मंदिर में 10 से 50 वर्ष की आयु की महिलाओं का प्रवेश वर्जित होने संबंधी व्यवस्था को असंवैधानिक और लैंगिक तौर पर पक्षपातपूर्ण करार देते हुये 28 सितंबर, 2018 को तत्कालीन प्रधान न्यायाधीश दीपक मिश्रा की अध्यक्षता वाली संविधान पीठ ने 4:1 के बहुमत से फैसला सुनाया था। इस पीठ की एक मात्र महिला सदस्य न्यायमूर्ति इन्दु मल्होत्रा ने अल्पमत का फैसला सुनाया था।

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