पारम्परिक कश्मीरी संगीत वाद्ययंत्र बनाने वाले पद्मश्री Ghulam Mohammad Zaz से खास बातचीत

Ghulam Mohammad Zaz
Prabhasakshi

गुलाम मोहम्मद जाज ने बताया कि पंडित शिव कुमार शर्मा, भजन सोपोरी और कई अन्य संगीतकारों ने उनके द्वारा निर्मित संतूर वादन का उपयोग अपने कई राष्ट्रीय-अंतरराष्ट्रीय कार्यक्रमों के दौरान किया है। उन्होंने बताया कि उनके पूर्वजों ने लगभग 200 साल पहले कश्मीरी संतूर बनाना शुरू किया था।

पारम्परिक कश्मीरी संगीत वाद्ययंत्र संतूर, रबाब और सारंगी बनाने वाले 85 वर्षीय गुलाम मोहम्मद ज़ाज़ चाहते हैं कि आज की पीढ़ी भी इन वाद्ययंत्रों को बजाना सीखे। पद्मश्री पुरस्कार विजेता गुलाम मोहम्मद ज़ाज़ से जब प्रभासाक्षी संवाददाता ने बातचीत की तो उन्होंने अपनी जीवन यात्रा के दौरान आये उतार-चढ़ावों पर विस्तार से चर्चा की। उन्होंने बताया कि उनके बनाये वाद्ययंत्रों को कई प्रसिद्ध संगीतकारों ने पसंद किया है। उन्होंने बताया कि उनके संगीत वाद्ययंत्रों का उपयोग यूरोप, अमेरिका और मध्य पूर्व के संगीतकारों द्वारा भी किया गया है।

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उन्होंने बताया कि पंडित शिव कुमार शर्मा, भजन सोपोरी और कई अन्य संगीतकारों ने उनके द्वारा निर्मित संतूर वादन का उपयोग अपने कई राष्ट्रीय-अंतरराष्ट्रीय कार्यक्रमों के दौरान किया है। उन्होंने बताया कि उनके पूर्वजों ने लगभग 200 साल पहले कश्मीरी संतूर बनाना शुरू किया था। हम आपको बता दें कि गुलाम मोहम्मद ज़ाज़ अपने परिवार की आठवीं पीढ़ी हैं जोकि इन वाद्ययंत्रों को बनाती है। उनका परिवार ऐसा एकमात्र परिवार भी है जिसने कश्मीरी संतूर बनाया था। हालांकि उन्हें इस बात का दुख है कि उनके परिवार की इस परम्परा को आगे बढ़ाने वाला कोई नहीं है।

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