सुल्ली डील्स ऐप: सुप्रीम कोर्ट ने आरोपी की याचिका को तत्काल सूचीबद्ध करने से किया इनकार, कहा- अपराध किया है तो सामना करना पड़ेगा

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चीफ जस्टिस ने आगे कहा यह उस फैसले के तहत आता है या नहीं, यह फैसला किया जाएगा। आरोपी ओंकारेश्वर ठाकुर की ओर से 24 जनवरी को यह याचिका दाखिल की गई थी। इसमें सुल्ली डील ऑफ द डे ऐप से संबंधित अपराधियों के संबंध में पूरे देश में दर्ज की गई

सुप्रीम कोर्ट ने शुक्रवार को उस याचिका को तत्काल सूचीबद्ध करने से इंकार कर दिया जिसमें सुल्ली  डील ऑफ द डे नामक ऐप से जुड़े अपराधों पर देशभर में दर्ज एफआईआर को एक साथ (क्ल्ब) करने की मांग की गई थी। उच्चतम न्यायालय ने आरोपी से कहा, आपने अपराध किया है तो सामना करना ही पड़ेगा।

चीफ जस्टिस एनवी रमन्ना की तीन सदस्यीय पीठ के समक्ष वकील साहिल भलियाक ने कहा, मेरे मुवक्किल के खिलाफ कई एफ आई आर दर्ज हैं। उन्होंने याचिका को तत्काल सूचीबद्ध करने की मांग की। उन्होंने कहा यह टीटी एंटनी के फैसले के तहत आता है। इस पर चीफ जस्टिस ने कहा, यदि आपने कोई अपराध किया है तो आपको इसका सामना करना पड़ेगा।

चीफ जस्टिस ने आगे कहा यह उस फैसले के तहत आता है या नहीं, यह फैसला किया जाएगा। आरोपी ओंकारेश्वर ठाकुर की ओर से 24 जनवरी को यह याचिका दाखिल की गई थी। इसमें सुल्ली डील ऑफ द डे ऐप से संबंधित अपराधियों के संबंध में पूरे देश में दर्ज की गई अलग-अलग एफआईआर को क्लब करने की मांग की गई थी। आपको बता दें याचिकाकर्ता के खिलाफ नई दिल्ली, नोएडा और मुंबई में तीन एफआईआर दर्ज हैं।

सुल्ली डील ऑफ द डे नामक ऐप के जरिए पिछले वर्ष मुस्लिम महिलाओं को निशाना बनाया गया था। इस ऐप में मुस्लिम महिलाओं की सहमति के बिना उनकी तस्वीरों को अपलोड किया किया गया था। उस समय इसे लेकर बहुत हंगामा भी हुआ था। आपकी जानकारी के लिए बता दें बुल्ली बाई मामला सुली डील्स ऐप का क्लोन माना जाता है।

टीटी एंटनी बनाम केरल सरकार मामले में क्या हुआ था

 याचिकाकर्ता की ओर से जो दलील दी गई थी की मौजूदा रिट याचिका में मांगी गई राहत सुप्रीम कोर्ट द्वारा टीटी एंटनी बनाम केरल राज्य में दिए गए फैसले के तहत आता है। आपको बता दें यह फैसला पहले को छोड़कर सभी एफआईआर को दर्ज करने के संदर्भ में था। इस फैसले में कहा गया था कि मामले की एकल जांच को आगे बढ़ाया जा सकता है।

 आपकी जानकारी के लिए बता दें इस मामले में पहली एफआईआर स्पेशल सेल, दिल्ली पुलिस की ओर से दर्ज की गई थी। याचिका में दिल्ली यूपी और महाराष्ट्र में एफआईआर दर्ज करना सीआरपीसी की धारा 154 और 156 के दायरे से बाहर है और यह एक ऐसा मामला है जो अलग-अलग जांच एजेंसियों द्वारा जांच की वैधानिक शक्ति का दुरुपयोग भी दर्शाता है।

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