स्मृतियों में सुषमा: कहानी प्रखर वक्ता, कुशल नेता और बेमिसाल महिला की
14 फरवरी 1952 को हरियाणा के अंबाला कैंट में जन्मी सुषमा स्वराज ने अपने राजनीतिक जीवन की शुरुआत 1970 के दशक में अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद से की थी। उनके पिता हरदेव शर्मा राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ के प्रमुख सदस्य थे।
आज पूरा देश पूर्व विदेश मंत्री सुषमा स्वराज को उनकी जयंती पर याद कर रहा है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी, भाजपा नेताओं और केंद्रीय मंत्रियों ने भी ट्वीट कर उन्हें याद किया। इससे पहले सरकार दुनियाभर में फैले भारतीय समुदाय से सम्पर्क के प्रमुख सांस्कृतिक केंद्र ‘प्रवासी भारतीय केंद्र’ का नामकरण ‘सुषमा स्वराज भवन’ करने का निर्णय लिया है। विदेश मंत्रालय ने बृहस्पति को यह जानकारी दी। मंत्रालय ने बताया कि इसके अलावा विदेश सेवा संस्थान का नाम बदलकर सुषमा स्वराज इंस्टीट्यूट ऑफ फॉरेन सर्विस करने का फैसला किया है। यह निर्णय पूर्व विदेश मंत्री के सम्मान स्वरूप लिया गया है जो दुनियाभर में फैले भारतीय समुदाय से सम्पर्क और उनके प्रति करूणा के लिये जानी जाती थी। ये दोनों संस्थान राष्ट्रीय राजधानी में स्थित हैं। विदेश मंत्री एस जयशंकर ने अपने ट्वीट में कहा कि हम सुषमा स्वराज को याद कर रहे हैं जिनका कल 68वां जन्मदिन है। विदेश मंत्रालय परिवार को खास तौर पर उनकी कमी खलेगी।
Happy birthday ! @SushmaSwaraj - the joy of our lives.
— Governor Swaraj (@governorswaraj) February 13, 2020
-Bansuri Swaraj@governorswaraj pic.twitter.com/ommuPdvqo3
पूर्व केन्द्रीय विदेश मंत्री एवं भारतीय राजनीति की संभावनाओं भरी उष्मा सुषमा स्वराज का 67 साल की उम्र में 6 अगस्त 2019 को निधन हो गया था। दिल्ली के एम्स में उन्होंने दिल का दौरा पड़ने से अन्तिम सांस ली और अनन्त की यात्रा पर प्रस्थान कर गयी। उनका निधन न केवल भाजपा बल्कि भारतीय राजनीति के लिए दुखद एवं गहरा आघात था। उनका असमय देह से विदेह हो जाना सभी के लिए संसार की क्षणभंगुरता, नश्वरता, अनित्यता, अशाश्वता का बोधपाठ है। वे कुछ समय से अस्वस्थ्य चल रही थी। उनका निधन एक युग की समाप्ति है। भाजपा के लिये एक बड़ा आघात है, अपूरणीय क्षति है। आज भाजपा जिस मुकाम पर है, उसे इस मुकाम पर पहुंचाने में जिन लोगों का योगदान है, उनमें सुषमाजी अग्रणी हैं। वे भारतीय राजनीति की सतरंगी रेखाओं की सादी तस्वीर थी। उन्हें हम भारतीयता एवं भारतीय राजनीति का ज्ञानकोष कह सकते हैं, वे चित्रता में मित्रता की प्रतीक थी तो गहन मानवीय चेतना की चितेरी जुझारु, नीडर, साहसिक एवं प्रखर व्यक्तित्व थी।
Remembering Sushma Ji.
— Narendra Modi (@narendramodi) February 14, 2020
She epitomised dignity, decency and unwavering commitment to public service. Firmly rooted in Indian values and ethos, she had great dreams for our nation. She was an exceptional colleague and an outstanding Minister. pic.twitter.com/IeEJlNRAQB
सुषमा स्वराज भारतीय राजनीति का एक आदर्श चेहरा थी। उन्होंने केन्द्रीय मंत्राी के अपने कार्यकाल के दौरान, कई नए अभिनव दृष्टिकोण, राजनैतिक सोच और कई योजनाओं की शुरुआत की तथा विभिन्न विकास परियोजनाओं के माध्यम से लाखों लोगों के जीवन में सुधार किया, उनमें जीवन में आशा का संचार किया। पिछली बार वे नरेन्द्र मोदी सरकार में एक सशक्त एवं कद्दावर मंत्री थी। भाजपा में वे मूल्यों की राजनीति करने वाली नेता, कुशल प्रशासक, योजनाकार थी। दिल्ली की राजनीति में भी उनका महत्वपूर्ण स्थान था। यह महज संयोग ही है कि एक महीने से भी कम समय में दिल्ली ने अपने दो पूर्व महिला मुख्यमंत्रियों को खो दिया है। 20 जुलाई को दिल्ली की सबसे लंबे अंतराल तक मुख्यमंत्री रही शीला दीक्षित का निधन हुआ तो महज दो हफ्ते बाद दिल्ली की पहली महिला मुख्यमंत्री सुषमा स्वराज भी चल बसीं।
Tributes to an exceptional leader Sushma Swaraj ji on her jayanti.
— Amit Shah (@AmitShah) February 14, 2020
A disciplined karyakarta, a fierce orator and an outstanding parliamentarian who never compromised on her ideals.
She will always be remembered for her kind nature & helping the distressed in their trying times.
14 फरवरी 1952 को हरियाणा के अंबाला कैंट में जन्मी सुषमा स्वराज ने अपने राजनीतिक जीवन की शुरुआत 1970 के दशक में अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद से की थी। उनके पिता हरदेव शर्मा राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ के प्रमुख सदस्य थे। अम्बाला छावनी के सनातन धर्म कॉलेज से संस्कृत और राजनीतिक विज्ञान में स्नातक की पढ़ाई करने के बाद सुषमाजी ने पंजाब विश्वविद्यालय, चंडीगढ़ से कानून की डिग्री ली। कानून की पढ़ाई पूरी करने के बाद 1973 में सुषमाजी ने सुप्रीम कोर्ट से अपनी वकालत की प्रैक्टिस शुरू की। जुलाई 1975 में उनका विवाह सुप्रीम कोर्ट के ही सहकर्मी स्वराज कौशल से हुआ। आपातकाल के दौरान सुषमाजी ने जयप्रकाश नारायण के सम्पूर्ण क्रांति आंदोलन में बढ़ चढ़ कर हिस्सा लिया। आपातकाल के बाद वह जनता पार्टी की सदस्य बन गयीं। इसके बाद 1977 में पहली बार सुषमाजी ने हरियाणा विधानसभा का चुनाव जीता और महज 25 वर्ष की आयु में चौधरी देवीलाल सरकार में राज्य की श्रम मंत्री बन कर सबसे युवा कैबिनेट मंत्री बनने की उपलब्धि हासिल की। दो साल बाद ही उन्हें राज्य जनता पार्टी का अध्यक्ष चुना गया। 80 के दशक में भारतीय जनता पार्टी के गठन पर सुषमाजी भाजपा में शामिल हो गयीं। वह अंबाला से दोबारा विधायक चुनी गयीं और बीजेपी-लोकदल सरकार में शिक्षा मंत्री बनाई गयीं। वे दिल्ली की पहली महिला मुख्यमंत्री बनी। हालांकि दिसंबर 1998 में उन्होंने राज्य विधानसभा सीट से इस्तीफा देते हुए राष्ट्रीय राजनीति में वापसी की और 1999 में कर्नाटक के बेल्लारी से कांग्रेस की राष्ट्रीय अध्यक्ष सोनिया गांधी के खिलाफ चुनाव मैदान में उतरीं लेकिन वे हार गयीं। फिर साल 2000 में उत्तर प्रदेश से राज्यसभा सांसद के रूप में संसद में वापस लौट आयी। वाजपेयी की केंद्रीय मंत्रिमंडल में वे फिर से सूचना प्रसारण मंत्री बनाई गयीं। बाद में उन्हें स्वास्थ्य, परिवार कल्याण और संसदीय मामलों का मंत्री बनाया गया।
सौम्यता और सादगी की प्रतिमूर्ति, ओजस्वी वक्ता एवं पूर्व विदेश मंत्री पद्म विभूषण स्व. सुषमा स्वराज जी की जयंती पर कोटि-कोटि नमन। pic.twitter.com/wKbL6WExeL
— BJP (@BJP4India) February 14, 2020
2009 में जब सुषमा स्वराज मध्य प्रदेश के विदिशा से लोकसभा पहुंची तो अपने राजनीतिक गुरु लालकृष्ण आडवाणी की जगह 15वीं लोकसभा में नेता प्रतिपक्ष बनाई गयीं। 2014 तक वे इसी पद पर आसीन रहीं। 2014 में वे दोबारा विदिशा से जीतीं और मोदी मंत्रिमंडल में भारत की पहली पूर्णकालिक विदेश मंत्री बनाई गयीं। प्रखर और ओजस्वी वक्ता, प्रभावी सांसद और कुशल प्रशासक मानी जाने वाली सुषमा स्वराज अपने समय में वाजपेयीजी के बाद सबसे लोकप्रिय ओजस्वी वक्ता थीं। वे बीजेपी की एकमात्र नेता हैं, जिन्होंने उत्तर और दक्षिण भारत, दोनों क्षेत्र से चुनाव लड़ा है। वे भारतीय संसद की ऐसी अकेली महिला नेता हैं जिन्हें असाधारण सांसद चुना गया। वह किसी भी राजनीतिक दल की पहली महिला प्रवक्ता भी थीं। सात बार सांसद और तीन बार विधायक रह चुकी सुषमा स्वराज दिल्ली की पांचवीं मुख्यमंत्री, 15वीं लोकसभा में नेता प्रतिपक्ष, संसदीय कार्य मंत्री, केंद्रीय सूचना प्रसारण मंत्री, केंद्रीय स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण मंत्री और विदेश मंत्री रह चुकी हैं। बतौर विदेश मंत्री सुषमा स्वराज ट्विटर पर भी काफी सक्रिय रहती थीं। विदेश में फँसे लोग बतौर विदेश मंत्री उनसे मदद मांगते और हजारों संकट में फंसे लोगों को सुरक्षित भारत लाने का काम उन्होंने किया। चाहे पासपोर्ट बनवाने का काम ही क्यों न हो वे किसी को निराश नहीं करतीं। ट्विटर पर सक्रिय रहते हुए लोगों की मदद करना उन दिनों काफी चर्चा में रहा।
29 सितंबर 2018 को संयुक्त राष्ट्र में दिया सुषमाजी का भाषण खूब चर्चा में रहा। इसमें उन्होंने संयुक्त राष्ट्र को परिवार के सिद्धांत पर चलाने की वकालत की। इस भाषण में उन्होंने कहा कि पाकिस्तान के साथ कई मौकों पर बातचीत शुरू हुई लेकिन ये रुक गयी तो उसकी वजह पाकिस्तान का व्यवहार है। सुषमाजी ने 2015 में भी संयुक्त राष्ट्र की महासभा में हिन्दी में भाषण दिया था और उस दौरान भी जम कर पाकिस्तान पर गरजीं थीं। तब उन्होंने पाकिस्तान को ‘आतंकवाद की फैक्ट्री’ कहकर संबोधित किया था। विदेश मंत्री के कार्यकाल के दौरान लगातार यह भी खबर आती रही कि उनकी तबीयत ठीक नहीं है। दो साल बाद नवंबर 2018 में सुषमा ने यह एलान कर दिया था कि वे 2019 का चुनाव नहीं लड़ेंगी। दो दिन पहले खुद सुषमा ने अनुच्छेद 370 को खत्म किए जाने पर ट्वीट किया था और मोदी को बधाई दी।
सुषमा स्वराज की भाषण शैली और वाकपटुता का कोई जोर नहीं था। जब वह बोलती थीं तो विपक्ष भी सन्न रह जाता था। उनके जवाब ऐसे होते थे, कि उसके काट के लिए विरोधी को सोचना पड़ता था। जब वह मनमोहन सरकार में विपक्ष की नेता थीं, तब उनके लोकसभा में दिये गये भाषण काफी लोकप्रिय हुए थे। उन्होंने तत्कालीन पीएम मनमोहन सिंह के लिए शायराना अंदाज में तंज कसा था और कहा था- ‘तू इधर-उधर की बात न कर, ये बता कि काफिला क्यों लुटा? मुझे रहजनों से गिला नहीं, तेरी रहबरी का सवाल है।’ वे सरल एवं सादगी पसंद भी थी। मौलिक सोच एवं राजनीतिक जिजीविषा के कारण उन्होंने पार्टी के लिये संकटमोचन की भूमिका भी निभाई। वे राजनीति में उलझी चालों को सुलझाने के लिये कई दफा राजनीतिक जादू दिखाती रही हैं। उनकी जादुई चालों की ही देन है कि वे अनेक महत्वपूर्ण पदों पर आसीन रही हैं।
सुषमा स्वराज का निधन एक आदर्श एवं बेबाक सोच की राजनीति का अंत है। वे सिद्धांतों एवं आदर्शों पर जीने वाले व्यक्तियों की श्रृंखला की प्रतीक थी। उनके निधन को राजनैतिक जीवन में शुद्धता की, मूल्यों की, राजनीति की, आदर्श के सामने राजसत्ता को छोटा गिनने की या सिद्धांतों पर अडिग रहकर न झुकने, न समझौता करने की समाप्ति समझा जा सकता है। उन्होंने पांच दशक तक सक्रिय राजनीति की, अनेक पदों पर रही, पर वे सदा दूसरों से भिन्न रही। घाल-मेल से दूर। भ्रष्ट राजनीति में बेदाग। विचारों में निडर। टूटते मूल्यों में अडिग। घेरे तोड़कर निकलती भीड़ में मर्यादित। उनके जीवन से जुड़ी विधायक धारणा और यथार्थपरक सोच ऐसे शक्तिशाली हथियार थे जिसका वार कभी खाली नहीं गया। वे जितनी राजनीतिक थी, उससे अधिक मानवीय एवं सामाजिक थी।
पूर्व विदेश मंत्री एवं भारतीय राजनीति की सशक्त हस्ताक्षर, सुषमा स्वराज जी की जयंती के दिन मैं उन्हें स्मरण एवं नमन करता हूँ।
— Rajnath Singh (@rajnathsingh) February 14, 2020
उन्होंने अपने राजनीतिक जीवन में शुचिता का पालन किया और मूल्यों की राजनीति के प्रति उनकी प्रतिबद्धता रही। उनके योगदान के लिए उन्हें हमेशा याद रखा जाएगा।
भारतीय राजनीति की वास्तविकता है कि इसमें आने वाले लोग घुमावदार रास्ते से लोगों के जीवन में आते हैं वरना आसान रास्ता है- दिल तक पहुंचने का। हां, पर उस रास्ते पर नंगे पांव चलना पड़ता है। सुषमाजी इसी तरह नंगे पांव चलने वाली एवं लोगों के दिलों पर राज करने वाली राजनेता थे, उनके दिलो-दिमाग में दिल्ली ही नहीं समूचे देश की जनता हर समय बसी रहती थी। काश ! सत्ता के मद, करप्शन के कद, व अहंकार के जद्द में जकड़े-अकड़े रहने वाले राजनेता उनसे एवं उनके निधन से बोधपाठ लें। निराशा, अकर्मण्यता, असफलता और उदासीनता के अंधकार को उन्होंने अपने आत्मविश्वास, साहसिकता, कर्मठता और जीवन के आशा भरे दीपों से पराजित किया।
सुषमा स्वराज भाजपा की एक नारीरत्न थी। वे भारतीय संस्कृति की प्रतीक आदर्श महिला थी और यह भारतीय संस्कृति उनमें बसी थी। उनका सम्पूर्ण जीवन अभ्यास की प्रयोगशाला थी। उनके मन में यह बात घर कर गयी थी कि अभ्यास, प्रयोग एवं संवेदना के बिना किसी भी काम में सफलता नहीं मिलेगी। उन्होंने अभ्यास किया, दृष्टि साफ होती गयी और विवेक जाग गया। उन्होंने हमेशा अच्छे मकसद के लिए काम किया, तारीफ पाने के लिए नहीं। खुद को जाहिर करने के लिए जीवन जीया, दूसरों को खुश करने के लिए नहीं। उनके जीवन की कोशिश रही कि लोग उनके होने को महसूस ना करें। बल्कि उन्होंने काम इस तरह किया कि लोग तब याद करें, जब वे उनके बीच में ना हों। इस तरह उन्होंने अपने जीवन को एक नया आयाम दिया और जनता के दिलों पर अमिट छाप छोडते हुए निरन्तर आगे बढ़ी। वे भारतीय राजनीति का एक अमिट आलेख हैं।
ಅತ್ಯುತ್ತಮ ಸಂಸದೀಯ ಪಟುವಾಗಿ, ಭಾರತದ ಯಶಸ್ವಿ ವಿದೇಶಾಂಗ ಸಚಿವರಾಗಿ ಅಪಾರ ಜನಮನ್ನಣೆ ಪಡೆದಿದ್ದ ಶ್ರೀಮತಿ ಸುಷ್ಮಾಸ್ವರಾಜ್ ಅವರ ಅಗಲಿಕೆಯ ನಂತರದ ಮೊದಲನೇ ಹುಟ್ಟು ಹಬ್ಬದಂದು ಅವರ ಕರ್ತವ್ಯನಿಷ್ಠತೆಯ ಅನುಕರಣೀಯ ಗುಣವನ್ನು ಸ್ಮರಿಸೋಣ.#sushmaswaraj pic.twitter.com/ivhL9gkqk9
— B Sriramulu (@sriramulubjp) February 14, 2020
सुषमा स्वराज एक ऐसा आदर्श राजनीतिक व्यक्तित्व हैं जिन्हें सेवा और सुधारवाद का अक्षय कोश कहा जा सकता है। उनका आम व्यक्ति से सीधा संपर्क रहा। यही कारण है कि आपके जीवन की दिशाएं विविध एवं बहुआयामी रही हैं। आपके जीवन की धारा एक दिशा में प्रवाहित नहीं हुई, बल्कि जीवन की विविध दिशाओं का स्पर्श किया। यही कारण है कि कोई भी महत्त्वपूर्ण क्षेत्र आपके जीवन से अछूता रहा हो, संभव नहीं लगता। आपके जीवन की खिड़कियां राष्ट्र एवं समाज को नई दृष्टि देने के लिए सदैव खुली रही। इन्हीं खुली खिड़कियों से आती ताजी हवा के झोंकों का अहसास भारत की जनता सुदीर्घ काल तक करती रहेगी।
PRESS RELEASE
— Sushma Swaraj Institute of Foreign Service (@FSI_MEA) February 13, 2020
Foreign Service Institute has been renamed as Sushma Swaraj Institute of Foreign Service
Link : https://t.co/jD0d6pWqCM pic.twitter.com/KOeoXtbjsM
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