Uniform Civil Code I | विविधताओं वाले देश में एक समान कानून को लेकर है क्या चुनौतियां | Teh Tak

Uniform Civil Code
prabhasakshi
अभिनय आकाश । Jul 10 2023 5:43PM

भारत का संविधान देश के सभी नागरिकों को धार्मिक स्वतंत्रता का अधिकार देता है। अपनी प्रथाओं, परपरंपराओं, मान्यताओं को मानने और संरक्षित करने का अधिकार देता है। इसलिए अलग-अलग समुदाय के लोगों के लिए कई सारे व्यक्तिगत कानून यानी पर्सनल लॉ की व्यवस्थाएं हैं।

100 साल से ज्यादा हो गए लेकिन ये मुल्क यूनिफॉर्म सिविल कोड की पहेली को सुलझा नहीं पाया। जब भी यूनिफॉर्म सिविल कोड को कानूनी जामा पहनाने की कोशिश हुई, विरोध की तलवारें चमकी और फिर इसे ठंडे बस्ते में डाल दिया गया। भारत में समान नागरिकता कानून लाए जाने को लेकर बहस भी लगातार चल रही है। इसकी वकालत करने वाले लोगों का कहना है कि देश में सभी नागरिकों के लिए एक जैसा नागरिक कानून होना चाहिए, फिर चाहे वो किसी भी धर्म से क्यों न हो। वैसे तो हमारा देश विविधिताओं से भरा हुआ है। कश्मीर से कन्याकुमारी तक और काठियावार से कोहिमा तक सैकड़ों समुदाय हैं और लोग हैं। उनकी अपनी भाषा-बोली है। परंपरा, प्रथा, सामाजिक और धार्मिक मान्यता से लेकर खान-पान है। इन्हीं के आधार पर अलग-अलग समुदायों के लोग विवाह, उत्तराधिकार, तलाक, अलगाव, गुजारा भत्ता, संपत्ति का बंटवारा आदि करते आए हैं। भारत का संविधान देश के सभी नागरिकों को धार्मिक स्वतंत्रता का अधिकार देता है। अपनी प्रथाओं, परपरंपराओं, मान्यताओं को मानने और संरक्षित करने का अधिकार देता है। इसलिए अलग-अलग समुदाय के लोगों के लिए कई सारे व्यक्तिगत कानून यानी पर्सनल लॉ की व्यवस्थाएं हैं। जैसे हिंदुओं के लिए चार अलग-अलग मैरिज एक्ट हैं-

हिंदू विवाह अधिनियम (1955)

हिंदू उत्तराधिकार अधिनियम (1956)

हिंदू अप्राप्तवयता और संरक्षकता अधिनियम (1956)

हिंदू दत्तक तथा भरण पोषण अधिनियम (1956)

ये चारों कानून हिंदू समुदाय के साथ-साथ जैन, बुद्ध, सिख धर्म पर भी लागू होते हैं। 

इसी तरह मुस्लिम धर्मों के लिए पर्सनल लॉ- काजी अधिनियम (1880)

शरीयत अधिनियम (1937)

मुस्लिम विवाह अधिनियम ( 1939)

मुस्लिम महिला (तलाकों पर अधिकार संरक्षण) अधिनियम (1986)

क्रिश्चनों के लिए भारतीय ईसाई विवाह अधिनियम (1872)

पारसी समुदाय के लिए पारसी विवाह और तलाक अधिनियम ( 1936)

यानी अलग-अलग धर्म को उनकी मान्यताओं के साथ प्रक्रिया फॉलो करने की आजादी मिली हुई है। कई परंपराएं ऐसी भी जो अमाननीय और भेदभाव वाली भी थी। खासकर महिलाओं को लेकर। लगभग सभी धर्मों के पर्सनल लॉ में यही देखने को मिलता है। ये उस समय की जरूरत या हालात के साथ बनी थी लेकिन समय के साथ इसमें कुछ सुधार हुए और कुछ होने बाकी है। वक्त बे वक्त देश की विभिन्न अदालतों की ओर से भी ऐसी रूढ़िवादी परंपराओं को खत्म करने के सुधारात्मक फैसले भी दिए जाते रहे हैं। 

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क्या है यूनिफॉर्म सिविल कोड

ये तीन शब्दों से मिलकर बना है। यूनिफॉर्म का मतलब होता है एकरूपता यानी एक समान। फ़िज़िक्स का बेसिक पढ़ते हुए यूनिफॉर्म मोशन जैसी चीज़ें पढ़ी होंगी। कॉन्सेप्ट वही है। जो एक समान हो। वही यूनिफ़ॉर्मिटी जब कपड़ों में लायी गयी तो सभी एक-से कपड़े पहनने लगे और वह कपड़ा यूनिफॉर्म हो गया। मकसद समानता लाने भर का था। स्कूल में पढ़ने वाले बच्चे खुद को एक समान समझें। मंत्रा का बेटा हो या संतरी का, हिन्दू का बच्चा हो या मुसलमान का। स्कूल में दाखिल होते ही सब एक समान। सिविल शब्द दो पार्टियों के बीच अधिकारों को लेकर होते हैं। जैसे पारिपारिक मामले, मालिकाना हक के मामले, संपत्ति का बंदवारा, ठेका, आदि के मामले। कोड का मतलब होता है बहुत सारे कानूनों का एक समूह। जैसे अपराध से जुड़े सारे कानूनों को भारतीय ढंड संहिता (आईपीसी) में एकट्टा किया गया है। 

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