Morarji Desai Unknown Story | देश के पहले गैर कांग्रेसी PM की अनसुनी कहानी | Matrubhoomi

Morarji
Prabhasakshi
अभिनय आकाश । Feb 19 2025 7:20PM

वह नेता जो इमरजेंसी के बाद भारत का प्रधानमंत्री बन गया। उसने इंदिरा गांधी के तमाम फैसलों को पलट दिया। हालांकि एक वक्त वो कांग्रेस का कद्दावर नेता हुआ करता था। लेकिन क्या आपको पता है कि उसे प्रधानमंत्री की कुर्सी मिली कैसे? जबकि उसके साथी चौधरी चरण सिंह उनका विरोध कर रहे थे।

"मैंने क्या कहा वह सुना ही नहीं ऐसा मालूम पड़ता है। मैंने ऐसा कहा ही नहीं कि भारत सबसे समृद्धशाली देश होगा। भारत सबसे सुखी देश का और सुखी होने के लिए सबसे ज्यादा समृद्धि रखने की जरूरत नहीं। बल्कि बहुत ज्यादा समृद्धि रखने से तो ईर्ष्या ही पैदा होती है।

24 मार्च 1977, आजाद भारत के इतिहास का वह दिन जब किसी गैर कांग्रेसी शख्स ने पहली बार प्रधानमंत्री पद की शपथ ली। वह नेता जो इमरजेंसी के बाद भारत का प्रधानमंत्री बन गया। उसने इंदिरा गांधी के तमाम फैसलों को पलट दिया। हालांकि एक वक्त वो कांग्रेस का कद्दावर नेता हुआ करता था। लेकिन क्या आपको पता है कि उसे प्रधानमंत्री की कुर्सी मिली कैसे? जबकि उसके साथी चौधरी चरण सिंह उनका विरोध कर रहे थे। मोरारजी देसाई किया खास अदा हुआ करती थी अगर उनको कोई प्रश्न किया जाए तो उसका उत्तर भी प्रश्न से ही शुरू हुआ करता था। 1977 से 1979 तक भारत के प्रधानमंत्री मोरारजी देसाई के बारे में मशहूर था कि वह सख्त किस्म के गांधीवादी थे, लेकिन दीवानगी की हद तक ईमानदार थे। एक बार उन पर दक्षिणपंथी यानी राइटिस्ट होने का आरोप लगा तो उन्होंने मुस्कुरा कर जवाब दिया था कि जी हां, मैं राइटिस्ट हूं क्योंकि आई बिलीव इन डूइंग राइट। 

नेहरू के बाद कौन? 

आजादी के बाद अविभाजित बाम्बे के मुख्यमंत्री के तौर पर अपना राजनीतिक करियर शुरू करने वाले मोरारजी देसाई 1956 में केंद्र की राजनीति में पहुंचे और नेहरू सरकार में कैबिनेट मंत्री बने। इस दौरान नेहरू और उनके बीच नेहरू की समाजवादी नीतियों को लेकर तकरार भी होती रही। इसके बावजूद मोरारजी देसाई का सरकार में बेहद सम्मान था। उम्र की वजह से ये माना जाता था कि अगर कभी नेहरू नहीं रहे तो उनकी जगह स्वभाविक तौर पर मोरारजी देसाई ही प्रधानमंत्री बनेंगे। 1964 में वो वक्त आ भी गया जब नेहरू नहीं रहे। तब तक कांग्रेस में कामराज प्लान लागू हो चुका था। के कामराज को कांग्रेस का राष्ट्रीय अध्यध बना दिया गया था। नेहरू के निधन के बाद जिम्मेदारी के कामराज के पास ही थी कि कांग्रेस की ओर से देश का अगला प्रधानंत्री चुन सके। इस सवाल का जवाब सिर्फ और सिर्फ एक आदमी के पास था- के कामराज। 27 मई 1964 को कामराज के सामने कांग्रेस पार्टी के अंदर से एक ऐसे व्यक्ति को चुनने की चुनौती थी जिसे सब अपना नेता मान ले। दिल्ली के त्यागराज मार्ग के बंगले में माहौल कुछ अलग था। 27 मई 1964 को जवाहर लाल नेहरू की मौत के दो घंटे के अंदर ही कामराज ने गुलजारी लाल नंदा को देश का कार्यवाहक प्रधानमंत्री बना दिया था। लेकिन सवाल उठ रहे थे कि नेहरू के बाद कौन? सियासी फिंजा में नेहरू सरकार में वित्त मंत्री मोरारजी देसाई, केंद्र में मिनिस्टर लाल बहादुर शास्त्री और इंदिरा गांधी का भी था। खुद शास्त्री भी मानते थे कि अगर इसको लेकर चुनाव हुए तो वे मोररजी देसाई को तो हरा देंगे, लेकिन नेहरू की बेटी इंदिरा से जीत नहीं पाएंगे। इस मुकाबले को टालने के लिए उन्होंने दो नाम जय प्रकाश नारायण और इंदिरा गांधी का सुझाएं। वरिष्ठ पत्रकार कुलदीप नैय्यर के अनुसार इस बात पर मोरारजी देसाई अड़ गए थे। उन्होंने कहा कि जयप्रकाश नारायण तो भ्रमित आदमी है। इंदिर तो छोटी सी छोकरी हैं। अगर मुझे प्रधानमंत्री पद का अकेला दावेदार मान लिया जाए तो मुकाबला टल जाएगा। के कामराज तो पहले से तय कर चुके थे कि कुछ भी हो जाए मोरारजी देसाई को प्रधानमंत्री नहीं बनने देना है। 

कामराज प्लान से देश और कांग्रेस को मिला नेहरू का उत्तराधिकारी 

1963 के सितंबर महीने में कामराज तिरूपति पहुंचे थे। उस वक्त वो कांग्रेस के अध्यक्ष नहीं थे और उनके साथ गैर हिंदी भाषी राज्यों के कई नेता भी थे। नीलम संजीव रेड्डी, निजालिंगप्पा, एसके पाटिल और अतुल्य घोष के साथ बैठक में मोररार जी देसाई के उम्मीदवारी को लेकर खिलाफत के बीज पड़ चुके थे। मोरारजी देसाई चाहते थे कि प्रधानमंत्री चुनने का काम संसदीय दल करेन कि पार्टी। लेकिन कामराज ने कांग्रेस वर्किंग कमेटी का वर्चस्व जारी रखा। कामराज ने कांग्रेस में आम राय बनाने की जिम्मेदारी अपने ऊपर ले ली और तीन दिन तक देशभर के कांग्रेस नेताओं से मुलाकत की। 1 जून 1964 को कामराज और मोरारजी से मुलाकात के बाद लाल बहादुर शास्त्री के रूप में कांग्रेस की राय का ऐलान हो गया। मोरारजी इस बात पर उखड़ गए। लेकिन फिर कामराज ने उन्हें समझाया। ऐसे कांग्रेस और देश को लाल बहादुर शास्त्री के रूप में देश का उत्तराधिकारी मिल चुका था। 

शास्त्री के निधन के बाद फिर से शुरू हुई तलाश 

कहा जाता है कि कामराज इंदिरा गांधी के लिए राजनीतिक पिच तैयार कर रहे थे। नेहरू के निधन के बाद इंदिरा ने शोक में होने की बात कहते हुए पीएम पद को लेकर दावेदारी से स्वयं की अलग हो गईं थी। कामराज को लगता था कि मोरारजी देसाई से मुकाबिल शास्त्री जी कम महत्वकांक्षा रखने वाले राजनेता हैं। जिससे आगे चलकर इंदिरा की राह खुद ब खुद आसान हो जाएगी। लाल बहादुर शास्त्री प्रधानमंत्री बने तो उनके कैबिनेट में बतौर आईबी मिनिस्टर इंदिरा गांधी को जगह मिली। लेकिन ताशकंद में 11 जनवरी 1966 में शास्त्री जी का निधन हो गया। हिन्दुस्तान खबर पहुंची तो लोग हैरान हुए परेशान हुए। ताशकंद समझौते के बाद लाल बहादुर शास्त्री खुद नहीं बल्कि उनका पार्थिव शरीर हिन्दुस्तान पहुंचा। शास्त्री के निधन के बाद के कामराज ने फिर से गुलजारी लाल नंदा को कार्यवाहक प्रधानमंत्री बना दिया। वहीं दिल्ली में एक बार फिर कुर्सी की खींचतान तेज हो गई और इस बार इंदिरा गांधी पूरी तरह से सक्रिय हो गई थी। कांग्रेस अध्यक्ष के कामराज के मन में क्या चल रहा है ये जानने के लिए इंदिरा गांधी उनसे मिलने पहुंची। केयर टेकर प्रधानमंत्री गुलजारी लाल नंदा का जिक्र कर इंदिरा कामराज की मंशा भांपने की कोशिश में थीं। लेकिन वो उसमें नाकाम साबित हुई। कामराज का अगला कदम क्या होगा इसपर सभी की नजर थी। 

कामराज का आखिरी सफल दांव और फिर मोरारजी के हाथ से फिसल गई बाजी 

13 जनवरी 1966 की रात को दिल्ली के 4 जंतर मंतर रोड बंगले पर कांग्रेस के पुराने नेताओं की बैठक हुई। के कामराज भी मौजूद थे। मौजूद नेताओं में से एक ने प्रस्ताव दिया कि क्यों न के कामराज को ही प्रधानमंत्री बनाया जाए। वो पार्टी के सीनियर लीडर हैं और कांग्रेस अध्यक्ष भी। इस प्रस्ताव पर के कामराज तपाक से बोल उठे- नो इंग्लिश, नो हिंदी हाऊ। दरअसल, कामराज को सिर्फ तमिल भाषा ही आती थी। इसलिए वो प्रधानमंत्री बनने से इनकार कर रहे थे। सवाल अपनी जगह पर कायम था। इस बैठक से बेपरवाह इंदिरा के सामने ये सवाल कायम था कि क्या कामराज किंग की जगह किंगमेकर बनने के लिए तैयार थे?कांग्रेस वर्किंग कमेटी की बैठक में प्रधानमंत्री पद के उम्मीदवार मोरारजी देसाई सर्वसम्मति की बात इस बार नहीं माने और वो वोटिंग पर अड़ गए। इंदिरा गांधी को कामराज का समर्थन मिला। उस वक्त इंदिरा गांधी को मोरारजी देसाई के मुकाबले कमजोर माना जाता था लेकिन ये किंगमेकर कामराज का ही कमाल था कि कांग्रेस संसदीय दल में 355 सांसदों का समर्थन पाकर इंदिरा प्रधानमंत्री बन गई। कहा जाता है कि ये कामराज का आखिरी सफल दांव था। 

कांग्रेस ओ के टिकट पर भी हासिल की जीत 

इंदिरा के बैंकों के राष्ट्रीयकरण के मुद्दे को लेकर मोरारजी देसाई ने खिलाफत की। इंदिरा ने उन्हें वित्त मंत्री पद से हटा दिया। हालांकि इंदिर ने उन्हें ऑप्शन दिया कि वो उपप्रधानमंत्री पद पर बने रहे। लेकिन मोरारजी देसाई ने वक्त की नजाकत को समझते हुए कांग्रेस से ही इस्तीफ दिया। बाद में जब कांग्रेस में टूट हुई और इंदिरा ने पार्टी तोड़कर कांग्रेस आर बना ली। फिर मोरारजी कांग्रेस के सिंडिकेट कांग्रेस ओ में शामिल हो गए। 1971 में जब लोकसभा के चुनाव हुए और इंदिरा को बड़ी जीत मिली। तब भी मोरारजी देसाई उन 16 सांसदों में शामिल थे जिन्होंने कांग्रेस ओ के टिकट पर जीत हासिल की। लेकिन फिर आता है इमरजेंसी का दौर। मोरारजी देसाई भी इस दौरान 19 महीने को जेल में रहना पड़ा। बाद में करीब 2 साल के आपातकाल के बाद पीएम इंदिरा गांधी ने 1977 में आम चुनाव कराए। इंदिरा को सत्ता से हटाने के लिए जल्दबाजी में एक हुए विपक्षी नेताओं वाले जनता पार्टी गठबंधन को कुल 345 सीटें मिली थीं। देश में पहली बार गैर-कांग्रेसी सरकार बनने जा रही थी।हर पार्टी का नेता प्रधानमंत्री बनना चाहता था। हालात एक अनार सौ बीमार जैसी हो गई थी। पीएम पद के लिए मुख्य रूप से मोरारजी देसाई, बाबू जगजीवन राम, चौधरी चरण सिंह और चन्द्रशेखर ने दावा किया था। 

ऐसे मोरारजी बने पहले गैर कांग्रेसी पीएम 

मोरारजी देसाई तीसरी बार पीएम बनने का ख्वाब देख रहे थे। तत्कालीन भारतीय जनसंघ गुट को जनता गठबंधन में 345 में से 102 सांसद मिले थे, लेकिन उसने प्रधानमंत्री पद के लिए दावा नहीं किया। राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ ने वेट एंड वॉच की रणनीति अपनाई थी। मोरारजी और जेपी के बीच दशकों से व्यक्तित्व को लेकर टकराव चल रहा था। मोरारजी जेपी से छह साल बड़े थे। चंद्रशेखर भी मोरारजी के नाम पर सहमत नहीं थे। उन्होंने जेपी से कहा कि जगजीवन राम को प्रधानमंत्री बनना चाहिए। इस पार्टी में तरह तरह के लोग हैं। प्रधानमंत्री ऐसा चाहिए जो लोगों की बात सुनकर उन्हें अपने साथ रखने के लिए समझौता कर सके। मोरारजी ऐसे आदमी नहीं हैं। लेकिन चंद्रशेखऱ की बात खारिज कर दी गई। वजह बताई गई कि जगजीवन राम ने इमरजेंसी का समर्थन किया था। मोरारजी देसाई 19 महीने जेल में रहे थे। फिर खुद जयप्रकाश नारायण ने भी मोरारजी के नाम पर सहमति जता दी। जेपी के जेबी आचार्य कृपलानी, नायायण देसाई, राधा कृष्ण भी इस बात पर सहमत हो गए। 24 मार्च 1977 को मोरारजी देसाई ने पहले गैर कांग्रेसी के तौर पर देश के प्रधानमंत्री पद की शपथ ली। 

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