क्या खत्म हो गया हरीश रावत का राजनीतिक करियर ? 4 धाम 4 काम का नारा हुआ विफल, 2017 के चुनावों में भी मिली थी करारी शिकस्त

Harish Rawat
प्रतिरूप फोटो

साल 2017 के चुनावों में भी हरीश रावत को हार का सामना करना पड़ा था। आपको बता दें कि हरीश रावत ने 2017 में हरिद्वार ग्रामीण और किच्छा से अपनी किस्मत आजमाई थी और दोनों ही सीटों पर पराजित हुए थे। हालांकि मौजूदा चुनाव में हरीश रावत की पुत्री अनुपमा ने हरिद्वार ग्रामीण सीट से चुनाव जीत लिया।

देहरादून। उत्तराखंड में सारे मिथकों को तोड़ते हुए एक बार फिर से भगवा लहर आई है। इस चुनाव में मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी खटीमा सीट से हार गए लेकिन 70 में से 47 सीटों पर भाजपा ने जीत दर्ज की। जबकि कांग्रेस को 19 सीटें ही मिल पाई हैं। इतना ही नहीं पार्टी महासचिव और पूर्व मुख्यमंत्री हरीश रावत को लालकुआं सीट से करारी शिकस्त का सामना करना पड़ा है। जिसके साथ ही उनके राजनीतिक भविष्य पर चर्चा छिड़ गई है। 

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साल 2017 के चुनावों में भी हरीश रावत को हार का सामना करना पड़ा था। आपको बता दें कि हरीश रावत ने 2017 में हरिद्वार ग्रामीण और किच्छा से अपनी किस्मत आजमाई थी और दोनों ही सीटों पर पराजित हुए थे। हालांकि मौजूदा चुनाव में हरीश रावत की पुत्री अनुपमा ने हरिद्वार ग्रामीण सीट पर पुष्कर सिंह धामी सरकार के कैबिनेट मंत्री स्वामी यतीश्वरानंद को 4,472 वोटों से हराकर सभी को चौंका दिया है। इतना ही बेटी अनुपमा की जीत ने पिता की हार के दर्द को भी कम करने का काम किया है।

क्या है हार की वजहें ?

राजनीतिक पंडित हरीश रावत की हार के पीछे अंतिम समय में उनकी सीट परिवर्तन और राज्य में देरी से सक्रिय होने को बताते हैं। पिछले विधानसभा चुनाव में भी उन्हें करारी हार का सामना करना पड़ा था। उत्तर प्रदेश से अलग होने के बाद उत्तराखंड में हर पांच साल में सत्ता परिवर्तन होता रहा है और यहां पर एक बार कांग्रेस की तो अगली बार भाजपा की सरकार बनती रही है। लेकिन इस बार उत्तराखंड की जनता ने इस मिथक को समाप्त कर दिया और फिर से भाजपा की सरकार बना दी। लेकिन जब बात हरीश रावत की आती है तो इसके पीछे उन्हें सही सीट का न मिल पाना भी एक वजह रही है। 

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चुनाव से ठीक पहले हरीश रावत को रामनगर की जगह लालकुआं से पार्टी ने उतारने का फैसला किया। क्योंकि रामनगर में उन्हें अपनी ही पार्टी के लोगों का सामना करना पड़ रहा था और फिर लालकुआं में भी कुछ यही देखने को मिला। हरीश रावत से पहले लालकुआं से कांग्रेस उम्मीदवार संध्या डालाकोटी को टिकट दिया गया था और फिर उन्होंने पार्टी से विद्रोह कर निर्दलीय चुनाव लड़ा। जिसका सीधा फायदा भाजपा उम्मीदवार मोहन​ सिंह बिष्ट को पहुंचा।

इसके अतिरिक्त हरीश रावत विधानसभा चुनाव से छह महीने पहले तक पंजाब में पार्टी की अंतर्कलह को सुलझाते रह गए और उनके गृह राज्य में भी कई सारे खेमे खड़े हो गए। हालांकि उन्होंने प्रदेश पंजाब प्रभारी का पद छोड़ दिया और अपने गृह राज्य लौट आए लेकिन कोई करिश्मा नहीं कर पाए और 4 धाम 4 काम का नारा विफल हो गया।

पराजय के बाद क्या बोले रावत ?

हरीश रावत ने एक भावुक संदेश में अपनी पराजय को स्वीकार करते हुए कहा कि मैं लालकुआं क्षेत्र के लोगों से जिनमें बिंदुखत्ता, बरेली रोड के सभी क्षेत्र सम्मिलित हैं, क्षमा चाहता हूं कि मैं उनका विश्वास अर्जित नहीं कर पाया और जो चुनावी वादे उनसे मैंने किए, उनको पूरा करने का मैंने अवसर गंवा दिया है, बहुत अल्प समय में आपने मेरी तरफ स्नेह का हाथ बढ़ाने का प्रयास किया। मैं अपने आपको आपके बड़े हुए हाथ की जद में नहीं ला पाया। कांग्रेसजनों ने अथक परिश्रम कर मेरी कमजोरियों को ढकने और जनता के विश्वास को मेरे साथ जोड़ने का अथक प्रयास किया। उसके लिए मैं अपने सभी कार्यकर्ता साथियों को बहुत-बहुत धन्यवाद देता हूं। 

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उन्होंने कहा कि एक बार राजनीतिक स्थिति में स्थायित्व आ जाए, लोगों का ध्यान अपने दैनिक कार्यों पर आ जाए तो मैं, लालकुआं क्षेत्र के लोगों को धन्यवाद देने के लिए उनके मध्य पहुंचूंगा। उन्होंने मुझसे श्रेष्ठ उम्मीदवार को अपना प्रतिनिधि चुना है, उनको और उनके द्वारा चयनित उम्मीदवार को मेरी ओर से बहुत-बहुत बधाई और आगे के लिए ढेर सारी शुभकामनाएं।

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