जनसंख्या विस्फोट जैसे गंभीर विषय पर राजनीतिक दलों का चर्चा से कतराना दुर्भाग्यपूर्ण: उपराष्ट्रपति

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[email protected] । Feb 14 2020 5:10PM

उपराष्ट्रपति वेंकैया नायडू ने देश की बढ़ती आबादी पर चिंता जताते हुए कहा कि राजनीतिक दलों, नेताओं तथा सांसदों का इस बारे में चर्चा करने से बचना दुर्भाग्यपूर्ण है। उन्होंने कहा कि राजनेता, राजनीतिकदल और सांसद देश में बढ़ती आबादी की समस्या पर ध्यान नहीं दे रहे हैं, जबकि इसके कारण खाद्य सुरक्षा समेत कई चुनौतियां उत्पन्न हो रही हैं।

नयी दिल्ली। उपराष्ट्रपति एम.वेंकैया नायडू ने देश की बढ़ती आबादी पर चिंता जताते हुए शुक्रवार को कहा कि राजनीतिक दलों, नेताओं तथा सांसदों का इस बारे में चर्चा करने से बचना दुर्भाग्यपूर्ण है। उन्होंने कहा कि राजनेता, राजनीतिक दल और सांसद देश में बढ़ती आबादी की समस्या पर ध्यान नहीं दे रहे हैं, जबकि इसके कारण खाद्य सुरक्षा समेत कई चुनौतियां उत्पन्न हो रही हैं। उपराष्ट्रपति ने भारतीय कृषि शोध संस्थान के 58वें दीक्षांत समारोह को संबोधित करते हुए कहा कि वैश्विक भूख सूचकांक की सूची में भारत का निम्न श्रेणी में होना चिंताजनक है। उन्होंने कहा कि नीति निर्माताओं और कृषि वैज्ञानिकों को आत्मचिंतन करना चाहिये तथा देश में खाद्य एवं पोषण सुरक्षा सुनिश्चित करते हुए इस मुद्दे का हल निकालना चाहिये।

इसी संदर्भ में देश में तेजी से बढ़ती जनसंख्या का जिक्र करते हुए उन्होंने कहा, ‘‘बढ़ती आबादी वाले भारत जैसे देश में, यह दुर्भाग्यपूर्ण है कि कोई भी जनसंख्या की समस्या पर ध्यान नहीं दे रहा है। राजनीतिक दल मुंह छुपा रहे हैं, नेता भी मुंह छुपा रहे हैं, संसद में भी इस मुद्दे पर पर्याप्त चर्चा नहीं होती है।’’ उपराष्ट्रपति ने कहा कि भारत में आबादी बेतहाशा बढ़ रही है और यातायात जैसी समस्याएं उत्पन्न कर रही है। उन्होंने कहा, ‘‘आबादी की समस्या और कृषि उत्पादन बढ़ाना न सिर्फ हमारी खाद्य सुरक्षा बल्कि वैश्विक खाद्य सुरक्षा के लिये आवश्यक है। यदि आबादी इसी तरह से बढ़ती रही और आपने इसी हिसाब से उपज में वृद्धि नहीं की, आने वाले समय में समस्या उत्पन्न होगी।’’

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नायडू ने कहा, ‘‘देश का खाद्यान्न उत्पादन 2,833.7 लाख टन है और इस हिसाब से भारत अच्छी स्थिति में है। हालांकि भारत वैश्विक भूख सूचकांक में 102वें स्थान पर है। यह चिंता का विषय है।’’ उन्होंने कहा, ‘‘नीति निर्माताओं, राजनेताओं, सांसदों, कृषि विश्वविद्यालयों और कृषि वैज्ञानिकों को इस बारे में गंभीरता से सोचना चाहिये कि हम अभी भी वैश्विक भूख सूचकांक में 102वें स्थान पर क्यों हैं।’’ उन्होंने कहा, ‘‘क्या नीति में कहीं कमी है, या कार्यप्रणाली में खामी है, या क्रियान्वयन अथवा प्राथमिकताओं के साथ समस्या है, हमें गंभीरता से विचार करने तथा चिंता को दूर करने की जरूरत है।’’

उपराष्ट्रपति ने कहा कि देश का कुल खाद्यान्न उत्पादन 1950-51 के 510 लाख टन से बढ़कर 2,833.7 लाख टन पर पहुंच गया है। चावल और गेहूं का उत्पादन कृषि वर्ष 2018-19 में 1,000 लाख टन से अधिक रहा है। उन्होंने कहा, ‘‘हमने खाद्य के मामले में आत्मनिर्भरता हासिल कर ली लेकिन महज खाद्य सुरक्षा पर्याप्त नहीं है। हमें पोषण की सुरक्षा की जरूरत है। हर व्यक्ति में विटामिन की कमी है। हमें पोषण की दिक्कत को निश्चित दूर करना चाहिये।’’ उन्होंने कहा कि पोषक अनाजों, दालों और बागवानी उत्पादों का उत्पादन बढ़ाने की जरूरत है।

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नायडू ने कृषि वैज्ञानिकों से कृषि उत्पादकता और उत्पादन का स्तर बढ़ाने पर ध्यान देने को कहा। वियतनाम का उदाहरण देते हुए उन्होंने कहा कि वहां चावल का उत्पादन भारत की तुलना में 10 गुना है। उपराष्ट्रपति ने कहा कि भारत जैसा देश खाद्य सुरक्षा के लिये आयात पर निर्भर नहीं रह सकता है। उन्होंने कहा, ‘‘आपको घरेलू स्तर पर खाद्य सुरक्षा सुनिश्चित करनी होगी। यह हम सभी के लिये प्राथमिकता होनी चाहिये।’’ नायडू ने कहा कि वैज्ञानिक, प्रौद्योगिकी तथा औद्योगिक मोर्चे पर तमाम प्रगति के बाद आज भी 60 प्रतिशत भारतीय आबादी कृषि एवं इससे जुड़ी गतिविधियों पर निर्भर है।

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