गर्भ गिराने को लेकर संसद में पास हुआ MTP बिल क्या है? जानें इसके फायदे और नुकसान

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रेनू तिवारी । Mar 18 2021 12:53PM

महिलाओं के स्वास्थ्य से जुड़ी समस्याओं के समाधान करने की पहल में सरकार ने एक कदम और आगे बढ़ाया गया। राज्यसभा ने 17 मार्च 2021 को गर्भ का चिकित्सकीय समापन संशोधन विधेयक 2020 (edical Termination of Pregnancy Amendment Bill 2020) पारित कर दिया।

महिलाओं के स्वास्थ्य से जुड़ी समस्याओं के समाधान करने की पहल में सरकार ने एक कदम और आगे बढ़ाया गया। राज्यसभा ने 17 मार्च 2021 को गर्भ का चिकित्सकीय समापन संशोधन विधेयक 2020 (edical Termination of Pregnancy Amendment Bill 2020) पारित कर दिया जिसमें गर्भपात की मंजूर सीमा को वर्तमान 20 सप्ताह से बढ़ाकर 24 सप्ताह करने का प्रावधान किया गया है। स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण मंत्री हर्षवर्धन ने सदन में विधेयक पर हुयी चर्चा का जवाब देते हुए कहा कि इसे व्यापक विचार विमर्श कर तैयार किया गया है। उन्होंने कहा कि विभिन्न मंत्रालयों के अलावा राज्य सरकारों, विभिन्न पक्षों, गैर-सरकारी संगठनों (एनजीओ), डॉक्टरों और महिला डॉक्टरों के संगठनों से भी इस पर विचार विमर्श किया गया है। उन्होंने कहा कि इस संबंध में चर्चा के लिए सड़क परिवहन और राजमार्ग मंत्री नितिन गडकरी के नेतृत्व में मंत्रियों का एक समूह (जीओएम) भी गठित किया गया था। उन्होंने कहा कि आचार समिति के साथ भी चर्चा की गयी, तब जाकर इस विधेयक को आकार दिया गया। उन्होंने कहा कि लोकसभा में भी इस पर विस्तृत चर्चा हुयी थी और इस विधेयक को सर्वसम्मति से पारित किया गया था।

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पहले मेडिकल टर्मिनेशन ऑफ प्रेग्नेंसी (संशोधन) विधेयक 2020 के अनुसार कोई महिला 20 हफ्ते बाद अपना अबॉर्शन नहीं करवा सकती थी। डॉक्टर महिला का अबॉर्शन तब भी नहीं कर सकते जब महिला की जान को प्रेग्नेंसी के कारण खतरा हो। कानून के अनुसार डॉक्टर को अबॉर्शन करने की अनुमति तब थी जब प्रेग्नेंसी 20 हफ्ते से कम की हो। अब नये नियम के अनुसार 20 हफ्ते की अवधि बढ़ाकर 24 हफ्ते कर दी गयी है। इस प्रावधान से रेप पीड़िता या किसी बीमारी से ग्रसित, विकलांग महिलाओं को फायदा होगा। फेडरेशन ऑफ ऑब्स्टेट्रिक एंड गायनेकोलॉजिकल सोसाइटीज़ के पूर्व महासचिव डॉ. नोज़र शेरियार ने कहा कि ये संशोधन बहुत पहले हो जाना चाहिए था लेकिन देर से ही सही हुआ तो, हमें इस बात की खुशी हैं।

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यह ऐतिहासिक क्यों है

केंद्रीय मंत्रालय और यूनिसेफ के रिकॉर्ड के अनुसार 2017 में भारत में 100,000 गर्भवती महिलाओं में 35,000 महिलाओं की मौत बच्चे को जन्म देने के दौरान हुई थी। ऐसा इस लिए क्योंकि महिलाओं में कई बार कुछ परेशानियां 6 से 7 महीने के गर्भ के बाद आती है लेकिन पुराने नियमों के अनुसार किसी भी किमत में 5 महीमें के बाद अबॉर्शन कानूनी तौर पर नहीं करवाया जा सकता है। रिकॉर्ड के अनुसार 35 हजार महिलाओं की मौत के पीछे का कारण अनसेफ अबॉर्शन है। अब कानूनी तौर पर अबॉर्शन के 6 महीने (24 हफ्ता) तक करवाया जा सकता है। इस पहल से मातृ मृत्यु गर में कमी आएगी। 

बिल से जुड़ी जानकारी

महिलाओं के गर्भपात से जुड़े इस बिल का नाम है- मेडिकल टर्मिनेशन ऑफ प्रेगनेंसी बिल 2020, जिसे शॉर्ट में MTP बिल कहते हैं। एफआईटी के साथ एक पूर्व साक्षात्कार में फेडरेशन ऑफ ऑब्स्टेट्रिक एंड गायनेकोलॉजिकल सोसाइटीज़ ऑफ इंडिया के पूर्व महासचिव डॉ. नोज़र शेरियार ने कहा कि प्रसवोत्तर रक्तस्राव और संक्रमण के बाद गर्भपात मातृ मृत्यु का तीसरा सबसे आम कारण था। 2018 एक अध्ययन के अनुसार, भारत में प्रति 1,000 महिलाओं पर 47 गर्भपात 15-49 आयु वर्ग के हैं। सस्ती, सुलभ गर्भनिरोधक विकल्पों की कमी, सामाजिक कलंक और कानूनों की जागरूकता की कमी के कारण हजारों महिलाएं इसका शिकार हो जाती है। 1971 में मेडिकल टर्मिनेशन ऑफ प्रेग्नेंसी एक्ट (MTP Act) के आने के बाद से भारत में गर्भपात 47 साल से कानूनी है, लेकिन महिला का अधिकार बनना अभी बाकी है। डॉ. नोज़र के लिए, जिन्होंने भारत के एमटीपी अधिनियम, 1971 पर काम किया, का मामना है कि यह गर्भपात कानूनों में सुधार और असुरक्षित गर्भपात की संख्या को कम करने के लिए एक महत्वपूर्ण कदम है।

गर्भपात की जरुरतो को स्वीकार करता है एमपीटी बिल

पूनम मुटरेजा, पॉपुलेशन फाउंडेशन ऑफ इंडिया की कार्यकारी निदेशक ने कहा, एमटीपी संशोधन विधेयक पहली बार अविवाहित महिलाओं की गर्भपात की जरूरतों को स्वीकार करता है और महिलाओं और लड़कियों के लिए सुरक्षित गर्भपात सेवाओं तक सार्वभौमिक पहुंच सुनिश्चित करने में एक कदम आगे है। पूनम मुटरेजा कहती हैं, "महिलाओं की विशेष श्रेणियों (बलात्कार से पीड़ित, विकलांग महिलाओं आदि) को इससे लाभ मिलेगा। 

संसद में गिनाए गये बिल से होने वाले नुकसान

चर्चा में कई सदस्यों ने कहा था कि इस विधेयक के प्रावधानों से महिलाओं की गरिमा एवं सम्मान पर असर पड़ेगा। इस संदर्भ में हर्षवर्धन ने कहा कि नरेंद्र मोदी सरकार ऐसा कोई कानून नहीं बनाएगी जो किसी भी तरीके से महिलाओं के खिलाफ हो या उनके लिए अहितकारी हो। मंत्री के जवाब के बाद सदन ने विधेयक को ध्वनिमत से पारित कर दिया। इससे पहले सदन ने विधेयक को प्रवर समिति में भेजने सहित अन्य विपक्षी संशोधनों को अस्वीकार कर दिया वहीं सरकार द्वारा लाए गए संशोधनों को स्वीकार कर लिया। इससे पूर्व कांग्रेस सहित कई दलों ने विधेयक को गहन चर्चा के लिए प्रवर समिति में भेजने की मांग की और कहा कि प्रभावित पक्षों से भी बातचीत की जानी चाहिए। विपक्ष ने कहा कि बलात्कार जैसे मामलों में गर्भपात को लेकर संवेदनशील व्यवहार किया जाना चाहिए तथा विधेयक के प्रावधानों से महिलाओं को गरिमा और न्याय नहीं मिल सकेगा।

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