Why BJP Lose in Ayodhya | अयोध्या में भाजपा के साथ क्या गलत हुआ? इस तरह के राजनीतिक झटके को समझना जरुरी

Ayodhya
ANI
रेनू तिवारी । Jun 6 2024 2:28PM

भले ही भाजपा अपने दम पर बहुमत पाने में विफल रही और तीसरी बार सत्ता हासिल करने के लिए अपने सहयोगियों पर निर्भर रही, लेकिन फैजाबाद में पार्टी की आश्चर्यजनक हार, जहां अयोध्या में राम मंदिर है, सुर्खियों में है और इस पर बहस छिड़ गई है।

भले ही भाजपा अपने दम पर बहुमत पाने में विफल रही और तीसरी बार सत्ता हासिल करने के लिए अपने सहयोगियों पर निर्भर रही, लेकिन फैजाबाद में पार्टी की आश्चर्यजनक हार, जहां अयोध्या में राम मंदिर है, सुर्खियों में है और इस पर बहस छिड़ गई है। वास्तव में, भाजपा की हार अयोध्या में भव्य मंदिर में राम लला की नई मूर्ति के प्राण प्रतिष्ठा समारोह के ठीक चार महीने बाद हुई। समाजवादी पार्टी के अवधेश प्रसाद ने भाजपा के लल्लू सिंह को 54,500 मतों से हराया। 

 

 राम मंदिर नगरी में भाजपा की करारी हार के लिए कई कारण बताए जा रहे हैं।

भाजपा से ओबीसी और दलितों का अलगाव, अखिलेश यादव की ठोस जातिगत समीकरण बनाने की चाल, अयोध्या के विकास के लिए ली गई जमीन का मुआवजा न मिलने से स्थानीय लोगों में नाराजगी कुछ कारण हैं। एक वर्ग ने भाजपा की हार को पार्टी की दिल्ली और लखनऊ इकाइयों के बीच तनाव से भी जोड़ा।

भाजपा का '400 पार' का नारा कैसे उल्टा पड़ गया

इसके अलावा, फैजाबाद भी उन सीटों में से एक है, जहां समाजवादी पार्टी के वोट बैंक के पक्ष में सबसे मजबूत जातिगत समीकरण है। साथ ही, समाजवादी पार्टी के लिए जो बात कारगर साबित हुई, वह यह कि भाजपा को पूर्ण बहुमत मिलने पर वह संविधान बदल देगी।

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दरअसल, भाजपा के लल्लू सिंह ने अयोध्या में सबसे पहले कहा था कि अगर भाजपा को 400 से अधिक सीटें मिलीं तो संविधान बदल दिया जाएगा। इसके बाद समाजवादी पार्टी ने इस मुद्दे पर एक कहानी गढ़ी और आरोप लगाया कि भाजपा संविधान में बदलाव करके पिछड़ों, दलितों, अल्पसंख्यकों को दिए जाने वाले आरक्षण को खत्म करना चाहती है।

इस मुद्दे ने इतना तूल पकड़ा कि भाजपा पूरे चुनाव में इस पर सफाई देती रही और अपनी बात से भटक गई। 1984 से लेकर अब तक समाजवादी पार्टी और कांग्रेस ने फैजाबाद सीट दो-दो बार जीती है। अयोध्या में 1991 के बाद भाजपा का दबदबा बढ़ा।

 

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कुर्मी और हिंदुत्ववादी चेहरा रहे भाजपा के विनय कटियार ने तीन बार यहां से जीत दर्ज की, जबकि समाजवादी पार्टी के मित्रसेन यादव 1989, 1998 और 2004 में यहां से चुने गए।

2004 में भाजपा ने अपने ओबीसी चेहरे कटियार को हटाकर लल्लू सिंह को उम्मीदवार बनाया। सिंह ने 2014 और 2019 में लगातार दो बार सीट जीती। भाजपा ने पिछले दो चुनाव "मोदी लहर" पर सवार होकर जीते, लेकिन जैसे ही जाति मुख्य मुद्दा बनी, पार्टी हार गई।

अखिलेश यादव ने जाति समीकरण को साधा

फैजाबाद में जाति समीकरण को भाजपा की हार के पीछे मुख्य कारण माना जा रहा है। अयोध्या में सबसे ज्यादा ओबीसी मतदाता हैं, जिनमें कुर्मी और यादव सबसे ज्यादा हैं। ओबीसी मतदाताओं की संख्या 22% और दलित 21% हैं। दलितों में पासी समुदाय के मतदाता सबसे ज्यादा हैं। विजयी उम्मीदवार अवधेश प्रसाद पासी समुदाय से आते हैं। मुस्लिम मतदाता भी 18% हैं। इन तीनों समुदायों को मिलाकर कुल मतदाताओं का 50% बनता है। इस बार तीनों समुदाय - ओबीसी, दलित और मुस्लिम - ने मिलकर फैजाबाद में समाजवादी पार्टी को यादगार जीत दिलाई। इसके अलावा, अयोध्या के विकास के लिए उनकी जमीनें लिए जाने के बाद मुआवजा न मिलने से स्थानीय लोगों में व्यापक आक्रोश था।

 

ऐसी चर्चा थी कि अयोध्या का विकास हो रहा है और राम मंदिर का निर्माण हो रहा है, लेकिन दूरदराज के गांवों के लोगों को इसका कोई लाभ नहीं मिल रहा है। स्थानीय लोगों के बीच यह भी चर्चा थी कि बाहर से आने वाले व्यापारियों को लाभ मिल रहा है, जबकि अयोध्या के लोग बड़ी परियोजनाओं के लिए अपनी जमीन खो रहे हैं। भाजपा ने न केवल अयोध्या खोई, बल्कि मंदिर नगरी - बस्ती, अंबेडकरनगर, बाराबंकी से सटी सभी सीटें भी खो दीं। अयोध्या के परिणाम को न केवल भाजपा की हार के रूप में देखा जा रहा है, बल्कि उनके हिंदुत्व के दृष्टिकोण की हार के रूप में भी देखा जा रहा है।

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