नेताओं को साथ लाने और सोशल इंजीनियरिंग करने के बाद भी क्यों नहीं जीते अखिलेश, समझे समीकरण

Akhilesh yadav

ऐसे में बीजेपी की उस परसेप्शन की काट सपा को खोजनी होगी, जो उनके खिलाफ जमीन पर काम करता है। उदाहरण के तौर पर सपा की सरकार आई तो गुंडाराज लौट आएगा, सपा के कार्यकर्ता बेकाबू हो जाएंगे। इसका जवाब सपा को तलाशना होगा।

उत्तर प्रदेश के चुनावी नतीजों ने योगी आदित्यनाथ और भाजपा की दोबारा सत्ता में वापसी करा दी। वहीं उसकी मुख्य प्रतिद्वंदी कही जाने वाली सपा को एक बार फिर हार का मुंह देखना पड़ा है, लेकिन इसने तमाम समीकरणों को भी बदल दिया है। हमेशा मुस्लिम और यादव की पार्टी कही जाने वाली समाजवादी पार्टी और अखिलेश यादव ने इस बार छोटी पार्टियों से गठजोड़ किया था जो अलग-अलग जातियों में अपनी पैठ रखती हैं। समाजवादी पार्टी को इसका लाभ भी हुआ और सपा का मत प्रतिशत 22 की बजाय 32% तक बढ़ गया है। इसे अखिलेश यादव की सफलता से जोड़कर देखा जा रहा है, लेकिन फिर भी भाजपा के वोट शेयर के आगें  यह कम पड़ गया और अखिलेश यादव फिर विपक्ष में ही बैठेंगे।

सिर्फ जातिगत राजनीति करने वाले नेताओं को साथ लाना काफी नहीं

अखिलेश यादव का मुस्लिम, यादव प्लस फैक्टर भी बीजेपी से टकराने में समर्थ नहीं है। आरएलडी, सुभासपा, अपना दल कमेरावादी, महान दल जैसी पार्टियों के साथ अखिलेश यादव के गठजोड़ की काफी चर्चा थी, लेकिन अखिलेश अपनी इस रणनीति को जीत में बदलने में कामयाब नहीं हो सके। अब सवाल है कि चूक कहां हो गई? सियासी जानकारों का मानना है कि लाभार्थी वर्ग बीजेपी के लिए तुरुप का इक्का साबित हुआ है। इस वर्ग के लोग हर जाति और समुदाय में है, जिनके बड़े हिस्से ने बीजेपी को वोट किया है। यही वजह रही कि पिछड़ों के नाम पर बीजेपी को छोड़ने वाले स्वामी प्रसाद मौर्य जैसे नेता भी सपा को लाभ नहीं पहुंचा पाए और अपनी सीट भी गंवा बैठे।

परसेप्शन की लड़ाई में पिछड़ गई सपा

बेरोजगारी महंगाई आवारा पशुओं जैसे मुद्दों पर भी भारी पड़ा लाभार्थी ट्रंप कार्ड, कहा जा रहा था कि लोग महंगाई बेरोजगारी से काफी नाराज हैं। ऐसे में अखिलेश क्या कर सकते हैं कि भविष्य में वह बीजेपी को चुनौती दे सकें? इसका जवाब है कि उन्हें भाजपा से परसेप्शन के लेवल पर लड़ाई लड़नी होगी। इस चुनाव के नतिजों ने एक बात तो साफ कर दी कि जाती आधारित नेताओं की गोलबंदी करने से उस जाति का पूरा समाज आपके साथ नहीं आता है। ऐसे में बीजेपी की उस परसेप्शन की काट सपा को खोजनी होगी, जो उनके खिलाफ जमीन पर काम करता है। उदाहरण के तौर पर सपा की सरकार आई तो गुंडाराज लौट आएगा, सपा के कार्यकर्ता बेकाबू हो जाएंगे। इसका जवाब सपा को तलाशना होगा।

कानून व्यवस्था को लेकर भी जनता को यकीन नहीं दिला पाए अखिलेश

यूपी के सियासी समझ रखने वाले विश्लेषकों का कहना कि पूरे प्रचार के दौरान अखिलेश यादव जनता को यह यकीन दिलाने में नाकाम रहे कि यदि उनकी सरकार आई तो पहले जैसी गलती नहीं होगी। वह कानून व्यवस्था को ठीक करेंगे। यही वजह थी कि महिला सुरक्षा और कानून व्यवस्था के मुद्दे और लाभार्थी वर्ग जैसे समर्थन के आधार पर बीजेपी ने सपा पर बढ़त बना ली। इसके अलावा अखिलेश यादव ने नौकरियां देने और पुरानी पेंशन स्कीम लागू करने का भी वादा किया, लेकिन इस बात को लेकर भी वह जनता को यकीन नहीं दिला सके।

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