भावुक कवियत्री थीं अमृता प्रीतम, जानिए शख्सियत से जुड़े बड़े पहलू

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पंजाब के मशहूर लेखकों में शामिल अमृता प्रीतम का जन्म पंजाब के गुंजारवाला जिले में 1919 में हुआ था। उनका बचपन लाहौर में हुआ था और प्रारम्भिक शिक्षा-दीक्षा भी वहीं सम्पन्न हुई।

पंजाबी की पहली कवयित्री के नाम से जानी जाने वाले अमृता प्रीतम बेहद भावुक, संवेदशील और आजाद ख्यालों की महिला थीं। अपने कविता से लोगों के दिलों में बसने वाली अमृता प्रीतम का आज जन्मदिन है तो आइए हम आपको उस बेमिसाल कवियत्री के बारे में कुछ जानकारी देते हैं। 

शुरूआती जीवन 

पंजाब के मशहूर लेखकों में शामिल अमृता प्रीतम का जन्म पंजाब के गुंजारवाला जिले में 1919 में हुआ था। उनका बचपन लाहौर में गुजरा था और प्रारम्भिक शिक्षा-दीक्षा भी वहीं सम्पन्न हुई।

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आजाद ख्यालों की थी अमृता प्रीतम

जी हां यह बात बिल्कुल सच है कि अमृता बेहद आजाद ख्यालों की महिला थीं। लेकिन उनकी यह आजादी केवल भावनात्मक और सामाजिक आजादी स्तर पर थी। आज कई साल पहले जब लिव-इन में रहने की बात सोचना भी मुश्किल था लेकिन अमृता ने यह क्रांतिकारी कदम भी उठाया। अमृता की शादी बहुत ही कम उम्र में हुई थी। जब वह मात्र 16 साल की थी तभी उनकी शादी  प्रीतम सिंह से हो गई थी। अमृता आम लड़की नहीं थीं। वह खूबसूरत होने के साथ ही बेहद भावुक भी थीं। उन्हें अपने रिश्तों में बेहद खूबसूरती से सामंजस्य बिठाना आता था। उनकी इस शादी से बच्चे भी हुए। लेकिन उनकी जिंदगी में साहिर आए। जिनसे वह बहुत मुहब्बत करती थीं। साहिर से इस लगाव ने उन्हें शादीशुदा जिंदगी से बाहर निकलने मजबूर कर दिया। बाद में जीवन के आखिरी वक्त में उन्हें जिस सच्चे प्यार की तलाश थी वह इमरोज के रूप में मिलें। इमरोज उनके साथ आखिरी वक्त तक रहे। अमृता की मौत के बाद भी इमरोज कहते अमृता उन्हें छोड़ कर नहीं गयी है उन्होंने बस अपना जिस्म छोड़ा है। अमृता अभी भी उनसे मिलने आती है। जीवन के आखिरी वक्त में अमृता की देखभाल इमरोज ने ही की थी। 

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सम्मान

अमृता प्रीतम को 1956 में साहित्य अकादमी पुरस्कार से सम्मानित किया गया। अमृता प्रीतम पहली महिला साहित्यकार थीं जिन्हें साहित्य अकादमी पुरस्कार मिला था। उसके बाद  1958 में पंजाब सरकार के भाषा विभाग ने पुरस्कार दिया। यही नहीं 1988 में उन्हें अन्तर्राष्ट्रीय स्तर पर बल्गारिया वैरोव पुरस्कार दिया गया। भारत में सर्वोच्च साहित्य पुरस्कार ज्ञानपीठ पुरस्कार से 1982 में  नवाजा गया। इसके अलावा उन्हें पद्म विभूषण से भी पुरस्कृत किया गया था।  उनको अपनी सुंदर कविताओं के लिए जाना जाता है। साथ ही उन्हें अपनी पंजाबी कविता अज्ज आखां वारिस शाह नूं बहुत पसंद की गयी। यह कविता बहुत खास किस्म की है। इसमें आजादी के बाद भारत विभाजन के समय पंजाब में हुई भयानक घटनाओं का अत्यंत दुखद चित्रण किया गया है। इस कविता को भारत और पाकिस्तान दोनों देशों में सराहा गया है।

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प्रमुख कृतियां

अमृता की कविताएं प्रेम  और भावनाओं से भरी होती थीं। उनकी लगभग 100 किताबें लिखीं। उनकी कृतियों का दूसरी भाषा में भी अनुवाद किया गया है। वह अपनी आत्म कथा रसीदी टिकट के लिए जानी जाती है। कुछ चर्चित उपन्यासों में पांच बरस लंबी सड़क, सागर और सीपियां पिंजर, कोरे कागज़, अदालत और उन्चास दिन थे। इसके अलावा उनका कहानी संग्रह कहानियां जो कहानियां नहीं हैं और कहानियों के आंगन में भी हैं। साथ ही उनके कुछ संस्मरण भी बहुत चर्चित रहे उनमें कच्चा आंगन और एक थी सारा था। 

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