Birsa Munda Birth Anniversary: 25 साल की उम्र में बिरसा मुंडा बने 'धरती आबा', अंग्रेजों के खिलाफ चलाया था आंदोलन

Birsa Munda
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आज ही के दिन यानी की 15 नवंबर को बिरसा मुंडा का जन्म हुआ था। बिरसा मुंडा को सिर्फ झारखंड ही नहीं बल्कि देश-दुनिया में धरती आबा के नाम से जाना जाता है। बिरसा मुंडा ने जनजातीय समाज की पहचान बनाने के लिए काफी संघर्ष किया।

जिस समय भारत के राष्ट्रपति महात्मा गांधी दक्षिण अफ्रीका में रंगभेद के खिलाफ आवाज उठा रहे थे। उसी समय भारत में बिरसा मुंडा गुलामी के खिलाफ लड़ रहे थे। आज ही के दिन यानी की 15 नवंबर को बिरसा मुंडा का जन्म हुआ था। बिरसा मुंडा को सिर्फ झारखंड ही नहीं बल्कि देश-दुनिया में धरती आबा के नाम से जाना जाता है। बिरसा मुंडा ने जनजातीय समाज की पहचान बनाने के लिए काफी संघर्ष किया। उन्होंने ईसाई धर्म के खिलाफ बिरसाइत धर्म की शुरूआत की। वहीं सिर्फ 25 साल की उम्र में बिरसा मुंडा ने देश के लिए बड़ा इतिहास लिख दिया था। तो आइए जानते हैं उनकी बर्थ एनिवर्सरी के मौके पर बिरसा मुंडा के जीवन से जुड़ी कुछ रोचक बातों के बारे में...

जन्म और शिक्षा

झारखंड के खूंटी जिले के उलीहातू गांव में 15 नवंबर 1875 को बिरसा मुंडा का जन्म हुआ था। इनके पिता का नाम करमी और मां का नाम सुगना था। उनकी शुरूआती शिक्षा सलमा में हुई और फिर वह मिशन स्कूल में पढ़ने गए। साल 1890 में उन्होंने चाईबासा छोड़ा और साल 1895 में बिरसा मुंडा ने मुंडाओं को एकजुट करके उलगुलान शुरू किया। उनका प्रभाव इतना अधिक था कि सरकार आंदोलन के योद्धा भी उलगुलान से जुड़ गए। वहीं बिरसा मुंडा की बढ़ती लोकप्रियता से अंग्रेज काफी परेशान थे।

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बिरसा मुंडा से डरने लगे अंग्रेज

बहुत कम समय में बिरसा मुंडा इतने अधिक लोकप्रिय हो गए कि अंग्रेज उनसे डरने लगे थे। ब्रिटिश सरकार ने बिरसा मुंडा पर 500 रुपए का इनाम घोषित किया। उन्होंने जनजातीय समाज को बचाने के लिए काफी काम किया। इसलिए लोग उनको धरती आबा कहते थे। बिरसा मुंडा ने कहा कि ईसाई धर्म जनजातीय संस्कृति को खत्म करने का प्रयास कर रहा है। इसलिए बिरसा मुंडा ने बिरसाइत धर्म को शुरू किया। जनजातीय लोगों को उनकी पहचान बनाए रखने में यह धर्म मदद करता है। उन्होंने समाज की बुराइयों के खिलाफ आवाज उठाई। 

अंग्रेजों के साथ अंतिम लड़ाई

खूंटी जिले में एक पहाड़ी का नाम डोंबारी बुरू है। यह पहाड़ी झारखंड की पहचान और संघर्ष का प्रतीक है। इस पहाड़ी पर बिरसा मुंडा ने अंग्रेजों के खिलाफ अंतिम लड़ाई लड़ी थी। वहीं सइल रकब पहाड़ी पर बिरसा मुंडा के समर्थकों पर 09 जनवरी 1900 को पुलिस ने अंधाधुंध गोलियां चलाईं। यह बिरसा मुंडा के समर्थकों की शहादत की भूमि है। यहां पर शहीदों की याद में 110 फीट ऊंचा विशाल स्तंभ बनाया गया है।

मृत्यु

वहीं ब्रिटिश सरकार ने बिरसा मुंडा पर 500 रुपए का इनाम घोषित कर दिया। साल 1895 में पहली बार और 1900 में दूसरी बार बिरसा मुंडा को गिरफ्तार किया गया। वहीं 09 जून 1900 को रांची जेल में बिरसा मुंडा की मौत हो गई।

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