Guru Hargobind Singh Jayanti 2025: परोपकारी और क्रांतिकारी योद्धा थे गुरु हरगोबिंद सिंह, सिख धर्म को दिया था नया आयाम

Guru Hargobind Singh
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पिता और गुरु अर्जुन देव की शहादत और मुगलों के बढ़ते अत्याचारों को देखते हुए गुरु हरगोविंद सिंह ने यह जाना कि सिर्फ आध्यात्मिक उपदेशों से सिख धर्म और इस धर्म को मानने वाले अनुयायियों की रक्षा नहीं की जा सकती है।

आमतौर पर जून महीने में गुरु हरगोविंद सिंह की जयंती मनाई जाती है। इस बार 12 जून 2025 को गुरु हरगोविंद सिंह जयंती मनाई जा रही है। बता दें कि सिख धर्म में यह दिन बड़े धूमधाम से मनाया जाता है। बता दें कि गुरु हरगोविंद सिंह सिखों के 5वें गुरु अर्जुन सिंह और मां गंगा के पुत्र थे। वहीं 1595-1644 ईस्वी में गुरु हरगोविंद सिंह सिख धर्म के छठे गुरु रहे। अपने पिता की शहादत के बाद गुरु हरगोविंद सिंह ने गुरु गद्दी संभाली और सिख धर्म को एक नया आयाम देने का काम किया।

मीरी-पीरी के प्रवर्तक

गुरु हरगोविंद सिंह जी को मीरी-पीरी सिंद्धांत का प्रवर्तक माना जाता है। उनका यह सिद्धांत सिख धर्म के इतिहास में एक महत्वपूर्ण मोड़ माना जाता है। बता दें कि गुरु हरगोविंद सिंह जी ने दो तलवारें धारण करना शुरूकर दिया था। जोकि एक मीरी का प्रतीक हुआ करती थी और दूसरी पीरी का। गुरु हरगोविंद सिंह का यह संदेश था कि सिख धर्म सिर्फ आध्यात्मिक उन्नति का मार्ग नहीं बल्कि यह अपने अनुयायियों के खिलाफ उत्पीड़न और अन्याय के खिलाफ खड़े होने के लिए सैन्य और शारीरिक रूप से भी तैयार करना है।

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सैन्यीकरण

पिता और गुरु अर्जुन देव की शहादत और मुगलों के बढ़ते अत्याचारों को देखते हुए गुरु हरगोविंद सिंह ने यह जाना कि सिर्फ आध्यात्मिक उपदेशों से सिख धर्म और इस धर्म को मानने वाले अनुयायियों की रक्षा नहीं की जा सकती है। ऐसे में उन्होंने सिखों को आत्मरक्षा के लिए अस्त्र-शस्त्र का प्रशिक्षण लेने और सैन्य बल के तौर पर संगठित करने के लिए प्रेरित किया।

अकाल तख्त

गुरु हरगोविंद सिंह ने अमृतसर में हरमंदिर साहिब यानी की स्वर्ण मंदिर के सामने अकाल तख्त का निर्माण कराया। यह सिख समुदाय के लिए सामाजिक, राजनीतिक और न्यायिक केंद्र बन गया था। जहां पर महत्वपूर्ण निर्णय लिए जाते थे।

मृत्यु

मुगल शासक जहांगीर ने गुरु हरगोविंद सिंह जी को ग्वालियर के किले में कैद कर लिया था। वहीं रिहाई के समय उन्होंने अपने साल 52 हिंदू राजाओं को भी आजाद कराया था। वहीं अंत समय में उन्होंने कश्मीर के पहाड़ों में शरण ली। वहीं पंजाब के कीरतपुर में 1644 ईस्वी में गुरु हरगोविंद सिंह जी की मृत्यु हो गई।

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