किंगमेकर थे के कामराज, जिन्होंने राजनीति से लेकर शिक्षा को दी नई पहचान

K kamaraj
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रितिका कमठान । Oct 2 2022 10:00AM

के कामराज को भारतीय राजनीति का किंगमेकर कहा जाता है। ये ऐसे राजनेता थे जिन्होंने दो बार प्रधानमंत्री बनने का मौका मिलने के बाद भी इस पद को ठुकराया। उनके कारण लाल बहादुर शास्त्री और इंदिरा गांधी को प्रधानमंत्री बनने का मौका मिला।

भारत रत्न और भारतीय राजनीति के किंगमेकर कहे जाने वाले के कामराज की आज पुण्यतिथि है। के कामराज का दो अक्टूबर 1975 को गांधी जयंती के मौके पर निधन हो गया था। उनकी मौत का कारण हार्ट अटैक रहा। मृत्यु के समय उनकी उम्र 72 वर्ष थी। भारत सरकार ने मरणोपरांत वर्ष 1976 में उन्हें भारत रत्न से सम्मानित किया था। देश आज उनकी 47वीं पुण्यतिथि मना रहा है।

भारतीय राजनीति में के कामराज उत्कृष्ट प्रशासन, सादगी और कामराज प्लान के लिए जाने जाते है। उनके प्लान ने भारतीय राजनीति में हलचल पैदा की थी। पंडित जवाहरलाल नेहरू के निधन के बाद लाल बहादुर शास्त्री और इंदिरा गांधी को प्रधानमंत्री की कुर्सी तक पहुंचाने में उनकी भूमिका थी। कामराज ने खुद प्रधानमंत्री पद को स्वीकार न करते हुए दोनों नेताओं को ये पद सौंपा। भारतीय राजनीति में आने से पहले उन्होंने स्वतंत्रता आंदोलन में भी बढ़ चढ़कर हिस्सा लिया था। यही कारण है कि उनका नाम देश के महान स्वतंत्रता सेनानियों में लिया जाता है।

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तमिलनाडु में हुआ जन्म

के कामराज का जन्म 15 जुलाई 1903 को तमिलनाडु के मदुरै स्थित विरुधनगर में हुआ था। शुरुआती पढ़ाई के लिए उनका दाखिला गांव के ही प्रारंभिक स्कूल में कराया गया। बाद में विरुधुनगर हाई स्कूल में उनकी आगे की शिक्षा हुई। इसी बीच मात्र छह वर्ष की आयु में ही इनके सिर से पिता का साया उठ गया। पारिवारिक परिस्थितियों को देखते हुए उन्होंने मात्र 11 वर्ष की उम्र में स्कूल जाना छोड़ा। इसी के साथ उनकी रूचि सामाजिक कार्यों में बढ़ने लगी। वर्ष 1920 तक के कामराज राजनीति में काफी सक्रिय हो गए थे। इस दौरान तक उन्होंने ना सिर्फ राजनीति में बढ़ चढ़कर हिस्सा लिया था बल्कि वो कांग्रेस के साथ भी जुड़ गए थे। दो वर्ष के अंतराल में ही यानी वर्ष 1922 में उन्होंने गांधी जी के असहयोग आंदोलन में भी हिस्सा लिया था। इसके बाद उन्होंने नमक सत्याग्रह में हिस्सा लिया, जिसके लिए उन्हें जेल की हवा खानी पड़ी। इसके बाद उनका जेल जाना काफी आम हो गया था, क्योंकि राजनीति और आंदोलन में वो बढ़ चढ़कर हिस्सा लेते थे। इसी बीच कांग्रेस पार्टी में भी उनकी पकड़ काफी मजबूत होती रही। उनकी काबिलियत को देखते हुए उन्हें 1946 से 1952 तक मद्रास प्रोविंशियल और मद्रास स्टेट कांग्रेस कमेटी का अध्यक्ष चुना गया। वर्ष 1954 में वो मद्रास विधानसभा के सदस्य चुने गए।

मद्रास के बनाए गए मुख्यमंत्री

के कामराज को मद्रास का मुख्यमंत्री उस समय बनाया गया जब सी राजगोपालाचारी ने अपने पद से इस्तीफा दे दिया था। उन्होंने 13 अप्रैल 1954 से 2 अक्टूबर 1963 तक मुख्यमंत्री पद संभाला। इस्तीफा देने के बाद उन्होंने अपना पद छोड़ा था। खास बात रही कि मद्रास का मुख्यमंत्री बनने की उन्होंने हैट्रिक मारी। अपने कार्यकाल के दौरान उन्होंने इतने बेहतरीन काम किए की खुद प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू ने उनके राज्य को बेहतरीन राज्य बताया था।

उन्होंने तमिलनाडु की बुनियादी संरचना को मजबूती देने के साथ ही शिक्षा के क्षेत्र में अहम काम किए। उनकी देखरेख में ही राज्य में मिड डे मील योजना की शुरुआत की गई, जो आज भी देशभर में सुचारू रूप से चालू है। मिड डे मील योजना लागू करने के पीछे उनका तर्क था कि गरीब बच्चों को कम से कम दिन में एक बार भरपेट भोजन मिल सकेगा। उन्होंने स्कूलों में मुफ्त यूनिफॉर्म योजना भी चलाई। अपने कार्यकाल के दौरान उन्होंने हर गांव में प्राइमरी स्कूल और हर पंचायत में हाईस्कूल खोलने की योजना चलाई। उनका विजन था कि राज्य के हर छात्र को 11वीं कक्षा तक मुफ्त और अनिवार्य शिक्षा मिलनी चाहिए।

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संगठन को मजबूती देने के लिए दिया इस्तीफा

पार्टी को मजबूती देने के लिए उन्होंने अपने पद से इस्तीफा दिया। उनका मानना था कि पार्टी के वरिष्ठ नेताओं को पद का लोभ ना करते हुए संगठन को मजबूती देने की तरफ लौटना चाहिए। उन्होंने नए नेताओं को आगे बढ़ने का भी मौका दिया। उनका ये कदम पंडित जवाहरलाल नेहरू को भी काफी पसंद आया था। उन्होंने के कामराज के इस फैसले को देशभर में लागू किया था, जिसकी वजह से छह कैबिनेट मंत्रियों और छह राज्यों के मुख्यमंत्रियों को अपने पद से इस्तीफा देना पड़ा था।

सादगी में जीया था जीवन

के कामराज काफी सादगी से अपना जीवन व्यतीत करते थे। मुख्यमंत्री होने के बाद भी वो जेड श्रेणी की सुरक्षा नहीं लेते थे। उनका मकसद सीधे जनता से संवाद करने का होता था। पंडित जवाहरलाल नेहरू की मृत्यु के बाद कांग्रेस अध्यक्ष बनने पर भी उन्होंने पार्टी को फिट रखने पर ही अपना फोकस रखा। अंग्रेजी का ज्ञान ना होने पर भी पार्टी में हो रही हर उथल पुथल को अपने नेतृत्व की क्षमता से उन्होंने दूर किया।

  

निधन के समय थी इतनी संपत्ति

के कामराज कितनी सादगी के साथ जीते थे इसका उदाहरण तब देखने को मिला जब दो अक्टूबर 1975 को उनका हार्टअटैक से आकस्मिक निधन हो गया। निधन के समय लंबे समय तक कांग्रेस में मजबूत पकड़ होने के बाद भी उनके पास सिर्फ 130 रुपये, दो जोड़ी चप्पल, चार शर्ट और कुछ किताबें थी। 

- रितिका कमठान

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