हजारों परेशानियों से लदे हुए शास्त्रीजी मां की आवाज सुनते ही हो जाते थे नॉर्मल

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[email protected] । Jan 11 2020 10:05AM

देश के दूसरे प्रधानमंत्री रहे स्वर्गीय लाल बहादुर शास्त्री अपनी सारी व्यस्तताओं के बावजूद अपनी मां के साथ कुछ पल बिताना नहीं भूलते थे और बाहर से चाहे वे कितना ही थक कर आयें अगर मां आवाज देती थीं तो वह उनके पास जाकर जरूर बैठते थे।

भारत की स्वतंत्रता की लड़ाई के दौरान शास्त्री 9 साल तक जेल में रहे थे। असहयोग आंदोलन के लिए पहली बार वह 17 साल की उम्र में जेल गए, लेकिन बालिग ना होने की वजह से उन्हें छोड़ दिया गया था। 1940 का दौर था और उस दौरान लाला लाजपत राय की संस्था लोक सेवक मंडल स्वतंत्रता सेनानियों के परिवारों की आर्थिक मदद किया करती थी। उसी दौरान लाल बहादुर शास्त्री जेल में थे तो उन्होंने अपनी मां को एक ख़त लिखा। इस खत में उन्होंने पूछा था कि क्या उन्हें संस्था से पैसे समय पर मिल रहे हैं और वे परिवार की जरुरतों के लिए पर्याप्त हैं। शास्त्री जी की मां ने जवाब दिया कि उन्हें पचास रुपए मिलते हैं जिसमें से लगभग चालीस खर्च हो जाते हैं और बाकी के पैसे वे बचा लेती हैं। जिसके बाद शास्त्री जी ने लोक सेवक मंडल को भी एक पत्र लिखा और धन्यवाद देते हुए कहा कि अगली बार से उनके परिवार को चालीस रुपए ही भेजे जाएं और बचे हुए पैसों से किसी जरूरतमंद की मदद कर दी जाए।

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देश के दूसरे प्रधानमंत्री रहे स्वर्गीय लाल बहादुर शास्त्री अपनी सारी व्यस्तताओं के बावजूद अपनी मां के साथ कुछ पल बिताना नहीं भूलते थे और बाहर से चाहे वे कितना ही थक कर आयें अगर मां आवाज देती थीं तो वह उनके पास जाकर जरूर बैठते थे। लाल बहादुर शास्त्री पर उनके पुत्र सुनील शास्त्री द्वारा लिखी पुस्तक ‘‘लाल बहादुर शास्त्री, मेरे बाबूजी’’ में बताया गया है कि शास्त्री जी की मां उनके कदमों की आहट से उनको पहचान लेती थीं और बड़े प्यार से धीमी आवाज में कहती थीं.. ‘‘नन्हें, तुम आ गये?’’ सुनील शास्त्री ने कहा कि आज की पीढ़ी जहां अपने बुजुर्गों की उपेक्षा करती है और आमतौर पर बुजुर्गों की शिकायत रहती है कि उनकी संतान उनकी अवहेलना करती है वहीं शास्त्री जी अपनी सभी व्यस्तताओं के बावजूद मां की कभी अनदेखी नहीं करते थे।

किताब के अनुसार शास्त्री जी ‘‘चाहे कितनी ही परेशानियों से लदे हुए आये हों, मां की आवाज सुनते ही उनके कदम उस कमरे की तरफ मुड़ जाते थे, जहां उनकी मां की खाट पड़ी थी।’’ पुस्तक में लेखक ने लिखा है कि ‘‘सारी उलझनों के बावजूद वे पांच एक मिनट अपनी मां की खाट पर जा बैठते। मैं देखता, दादी का अपने बेटे के मुंह पर, सिर पर प्यार से हाथ फेरना और भारत के प्रधानमंत्री, हजार तरह की देशी, अंतरदेशी परेशानियों से जूझते जूझते अपनी मां के श्रीचरणों में स्नेहिल प्यार में लोट पोट।’’

अधिकतर देखने में आता है कि 60 वर्ष या इससे ज्यादा की उम्र वाली आबादी के लगभग 31 प्रतिशत बुजु्र्गों को अपने परिवार के सदस्यों की उपेक्षा, अपमान और गाली गलौज झेलना पड़ता है और पांच में से एक बुजुर्ग परिवार का साथ तलाश रहा है। पुस्तक के अनुसार शास्त्री जी की मां रामदुलारी 1966 में शास्त्री जी के निधन के बाद नौ माह तक जीवित रहीं और इस पूरे समय उनकी फोटो सामने रख उसी प्यार एवं स्नेह से उन्हें चूमती रहती थीं, मानों वह अपने बेटे को चूम रही हों। सुनील शास्त्री के अनुसार उनकी दादी कहती थीं.. ‘‘इस नन्हें ने जन्म से पहले नौ महीने पेट में आ बड़ी तकलीफ दी और नहीं जानती थी कि वह इस दुनिया से कूच कर मुझे नौ महीने फिर सतायेगा।’’

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किताब के अनुसार शास्त्री जी के निधन के ठीक नौ माह बाद उनकी माता का निधन हो गया था। लेखक लिखते हैं, ‘‘दादी का प्राणांत बाबूजी के दिवंगत होने के ठीक नौ महीने बाद हुआ। पता नहीं कैसे दादी को मालूम था कि नौ महीने बाद ही उनकी मृत्यु होगी।’’ वर्ष 1965 में भारत पाकिस्तान युद्ध के बाद शास्त्री जी दोनों देशों में संधि के लिये बातचीत करने ताशकंद गये थे और वहीं 11 जनवरी 1966 को उनका निधन हो गया था।

शास्त्री जी की मौत पर इसलिए भी सवाल उठते रहे हैं क्योंकि भारत सरकार इससे जुड़े कागजात दिखाने से हमेशा इंकार करती रही। लाल बहादुर की मौत के करीब छठे दशक में पहुंच चुके वक्त में लाल किले से लाल बहादुर की वो हुंकार आज भी प्रत्येक देशवासी के दिलों में जोश भर देती है और इतने साल बाद भी लोगों की आंखें भारत के लाल की याद में नम हो जाती हैं। धीरे-धीरे समय का पहिया आधी सदी आगे बढ़ चुका है। लेकिन मौत का राज उस वक्त की तरह आज भी घना और गहरा है।

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